तिवारी का खक्चर से पतन
राजीव नयन बहुगुणा , वरिष्ठ पत्रकार
मैं पाठक को अपनी सद्य हर्षिल, गंगोत्री यात्रा कथा सुनाने का वचन देता हूँ.
लेकिन जब भी मैं यहाँ का प्रसंग छेड़ता हूँ, तो मेरे अनेक पाठक मुझसे अंग्रेज़ फेडरिक विल्सन के आख्यान सुनाने का भी इसरार करते हैं, जो एक साहसी अनवेषक, शिकारी, व्यापारी, वनो तथा वृक्षों का निर्मम हंता एवं एक कामुक पुरुष था.
उसने यहाँ दो विधिवत शादियां कीं. इसके सिवा उसकी तथा उसके पुत्र हेनरी की काम लीलाओं का कोई ओर छोर नहीं है.
उसके पुत्र हेनरी को स्थानीय बोली में इंद्री कहा जाता था, जो सार्थक भी है. उसके विवरण पढ़ सुन कर मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ, कि वह मनुष्य होने की बजाय सिर्फ़ इन्द्रिय ही था, जो कभी भी, कहीं भी सक्रिय हो जाता था.
अतः जब मैं कहता हूँ कि उसने यहां सेब, आलू तथा राजमा के अलावा मनुष्यों की भी नई नस्लों का रोपण किया, तब मेरे स्थानीय मित्र नाराज़ होते हैं, अतः मैं मनुष्यों के नस्ल रोपण संबंधित अपनी बात वापस लेता हूँ.
विल्सन ने यहाँ देवदार की लकड़ी का एक बड़ा कोठार बना रखा था, जिसका वर्णन मैंने अपने पिता से सुना है.
मेरे पिता ने उसके अनेक प्रकरण अपने पिता, अर्थात मेरे दादा से सुने हैं, जो उसके समकालीन थे. तथा स्वयं भी एक वनाधिकारी होने के नाते विलसन से उनका कई बार वास्ता पड़ा होगा.
विल्सन उस लकड़ी के कोठार पर दाल, अनाज, कलदार तथा कस्तूरी का भंडारण करता था. किसी मनुष्य से रुष्ट होने पर वह वह उसे नँगा कर इसी काष्ठ कारा में डाल देता था.
अन्य रोचक प्रसंग मैंने एक पुलिस अफसर से सुना है.
उत्तरप्रदेश के काबिल मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा को छल बल से अपदस्थ कर संजय गाँधी के चाटुकार नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने, तो वह सबसे पहले हर्षिल आये.
संजय गाँधी अपने नाना नेहरू जी के साथ यहाँ खूब आता था, अतः उसे हर्षिल का ताज़ा सेब तथा राजमा पहुंचाने तिवारी यहाँ चले आये होंगे.
हेलीकोप्टर से उतरते ही वह एक खच्चर पर बैठे. खक्चर आर्मी का था, तथा खूब फुर्तीला तथा हठीला था. उसने बैठते ही तिवारी को झटक कर गिरा दिया.
प्रत्यक्ष दर्शी डिप्टी मुझे वह आँखों देखा हाल, सजीव तथा चटकारे लेकर सुनाते थे.
कैसे तिवारी पत्त से अनाज के बोरे की तरह गिरे. कैसे उनका चश्मा चिटका, जिसे पकड़ने के चककर में उन्होंने संतुलन खोया. कैसे गिरने के बाद जिबह होते मुर्गे की तरह उनकी दोनों टांगे ऊपर हो गयी. कैसे बधिया किये जाते बैल की तरह उनके मुंह से गिरने के बाद गों गों की आवाज़ निकली, यह वर्णन वह विधिवत करते थे, और मैं बार बार उनसे यह सुनता था.
उन्ही दिनों मैं एक बार लखनऊ गया, और अनेक नेताओं, पत्रकारों तथा अफसरों को यह कथा सुनाई.
फिर उत्तरकाशी के कलेक्टर लखनऊ गये, और किसी ने उन्हें यह बात बता दी.
कलेक्टर ने उत्तरकाशी लौट कर डिप्टी को बहुत डांटा, कि तू राजीव को वह कथा न सुनाया कर, अन्यथा सी एम तेरा वहीँ हाल करेगा, जो स्वयं उसका खक्चर से गिरते वक़्त हुआ है.
इसके बाद डिप्टी साहब ने मुझे वह कथा सुनाने से मना कर दिया, पर तब तक मेरे पास पूरी पटकथा, कथोप कथन तथा कथा सार आ चुका था.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)