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History

आधुनिक भारत के सच्चे निर्माता कौन- NEHRU या कोई और ?

VINOD TAKIAWALA, Journalist

आधुनिक भारत के सच्चे निर्माता कौन है – खबरीलाल विश्व के सबसे बड़े व प्राचीन प्रजातंत्र भारत में इन दिनों एक बहस की शुरुआत हो गयी कि आधुनिक भारत के र्निमाता स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु जी है या कोई और है।आधुनिक भारत के निर्माता का सरताज का असली हकदार नेहरू जी ना हो कर -सन 2014 के बाद में ही भारत को आजादी मिली व आधुनिक भारत का नव निर्माण कार्य शुरू किया है।सर्वविदित रहे कि स्वतंत्र लोकतंत्र की स्वस्थ्य प्रम्पराओ में स्वस्थ्य चर्चा होना अच्छी बात है।लेकिन बिना सिर पैर के कही,कुछ भी चर्चा के नाम बहस करना है लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है।भारत को 1947 में आजादी नही मिली बल्कि 2014 में भाजपा के कुशल नेतृत्व में मिली है।आज हम अपने इस आलेख में चिन्तन मनन कर रहें है।क्या जो देश सर्दीयों से गुलामी के बेड़ियो म जकड़े था।वर्षो रहने के बाद आखिरकार हमारा देश स्वतंत्र हुआ।यह जग जाहिर था हमारी वास्तविक स्थिति राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय स्तर पर क्या रही होगी!आजादी के पूर्व कुछ लोग आज भी साक्षी है।अंग्रेजो ने हमें आजादी तो दी,लैकिन देश को चलाने के लिए ना तो कोई संसाधन ना कोई धन का श्रोत।हाँ 1947 में हमारे देश को दो टुकड़े कर अंग्रेजो ने दो भाई में एक दुशमनी की दीवार खड़ी कर दी।ऐसे में तत्कालीन प्रधानमंत्री व राजनेताओ के समाने देश को सुचारू रूप से चलाने व भारत की एक नई पहचान अन्तराष्ट्रीय मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कोई आसान काम नही था।ऐसे विषय परिस्थित में मै यहाँ कुछ घटनाओं का उल्लेख कर रहा हूँ।बात सन 1950 के दशक के आखिरी साल थे।स्वतंत्र भारत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू चाहते थे कि देश की राजधानी नई दिल्ली के मध्य में विदेशी दूतावासों तथा उच्चायोगों के लिए जगह निकाला जाए।आप को स्पष्ट कर दें कि उस समय अमेरिकी, ब्रिटिश, पाकिस्तान वगैरह देशों के दूतावास बंगलों या छोटी जगहों से चल रहे थे।इसके बाद शहरी विकास मंत्रालय तथा नई दिल्ली नगर परिषद(NDMC) ने नेहरू जी के सपनों को साकार करते हुए जगहों को विकसित किया जिसे चाणक्यपुरी के नाम से लगा।यह नाम स्वयं नेहरू जी ने खुद चाणक्यपुरी नाम तय किया था।इसके पीछे पं० नेहरू की गहन सोच थी कि कूटनीति,अर्थनीति, राजनीति के महाविद्वान थें जिन्होने अपने ज्ञान का हमेशा ही सदुपयोग, जनकल्याण तथा अखंड भारत के निर्माण जैसे सृजनात्मक कार्यो में करने के कारण चाणक्य के प्रति सारा देश कृतज्ञ रहता है।उन्हें ही कौटिल्य भी कहा गया।आप को स्पष्ट कर दे कि चाणक्य और कौटिल्य दोनों एक हैं।जो चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधान सलाहकार थे।राजधानी के इसी डिप्लोमेटिक एरिया चाणक्यपुरी की एक खास सड़क का नाम पंचशील मार्ग रखा गया है।इसके पीछे तर्क यह थी कि भारत-चीन के बीच रहने वाली तनातनी के चलते पंचशील शब्द बेमानी हो गया है।लैकिन इन दोनों देशों ने विश्व कूटनीति को पंचशील का सिद्धांत दिया। पंचशील मार्ग 1960 में दिल्ली के नक्शे में आया था।पंचशील शब्द मूलतः बौद्ध साहित्य व दर्शन से जुड़ा शब्द है।चौथी-पांचवी शताब्दी के बौद्ध दार्शनिक बुद्धघोष की पुस्तक “विशुद्धमाग्गो” में “पंचशील” मतलब,पांच व्यवहार की विस्तृत चर्चा है जिस पर बौद्ध उपासकों को अनुसरण करने की हिदायत दी गई है।पंचशील में शामिल सिद्धांत थे राष्ट्रवाद,मानवतावाद, स्वाधीनता,सामाजिक न्याय और ईश्वरआस्था की स्वतंत्रता।इतने महत्वपूर्ण शब्द पर राजधानी की एक खास सड़क का नाम रखा जाना सुखद है।पंचशील शब्द पर सड़क का नाम रखने का सुझाव डॉ विधिवेत्ता डॉ. लक्ष्मीमल सिंघवी ने दिया था।नेहरू जी ने इस पर मोहर लगाई थी।डॉक्टर सिंघवी के पुत्र अभिषेक मनु सिंघवी जो काँग्रेस के नेता हैं।कूटनीति के जानकार डॉ भगवान प्रसाद सिन्हा कहते हैं कि 29 जून 1954 को तिब्बत के मसले पर भारत और चीन के बीच एक समझौता हुआ।इस समझौते में भारत और चीन के संबंधों तथा अन्य देशों के साथ पारस्परिक संबंधों में भी शांतिपूर्ण सह- अस्तित्व के पांच आधारभूत सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया।इन्हीं पांच सिद्धांतों का नाम “पंचशील” रखा गया जो इस बात पर जोर देता था कि सभी राष्ट्र एक दूसरे की संप्रभुता एवं प्रादेशिक अखंडता का सम्मान करेंगे।जग जाहिर है,इस शब्द का अर्थ गहरा है।एक बात जान लें कि चाणक्यपुरी क्षेत्र का समय के साथ विस्तार होता रहा।वहां पर विभिन्न देशों को अपने दूतावास बनाने के लिए स्पेस मिलते रहे।जिस सड़क पर संयुक्त अरब अमीरत एंबेसी और अमेरिकन स्कूल है उसका नाम रखा गया चंद्रगुप्ता मौर्या मार्ग।चंद्रगुप्त मौर्या ने संसार को केन्द्रीयकृत शासन का विचार दिया।चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने शासनकाल में जितनी भी सफलताएं प्राप्त की थी,इतनी उपलब्धियां किसी अन्य भारतीय शासक ने प्राप्त नहीं की।उनके नाम पर कभी किसी को आपति हो ही नहीं सकती।चाणक्यपुरी इलाके में आप को मिलेगा न्याय मार्ग।चूंकि नेहरू लोकतंत्र और न्याय को एक-दूसरे का पर्याय ही मानते थे इसलिए उनकी प्रेरणा से रखा गया न्याय मार्ग।नेहरू जी के 27 मई,1964 को दिवंगत होने के बाद भी चाणक्यपुरी में जिन सड़कों के नाम रखे गए उनमें उनका असर मिलता है।वे गुट निरपेक्ष आंदोलन के जनक थे।इसलिए न्याय मार्ग पर घाना के स्वतंत्रता आंदोलन के शिखर नेता के नाम पर क्वामे नकरूमा मार्ग है।नकरूमा भी निर्गुट आंदोलन के असरदार नेता थे।नेहरू जी अफ्रीका के मित्र थे।उन्होंने सूडान के लिए चाणक्यपुरी की मेन रोड पर एंबेसी के लिए जगह उपलब्ध कराया था।बाद में यहाँ अफ्रीका फ्रेंडशिप रोज गॉर्डन भी बना। इधर गुलाब के गुलों से आने वाली महक से आप खुश हो जाएंगे।इन गुलाबों को देखकर नेहरू जी की शेरवानी पर लगे गुलाब की याद भी आ सकती है।जिस देश के पास सदियों का गुलाम रखने का अनुभव था !एक सूई तक नही बनती थी।उन्होंने अपनी सोच समझ से देश को सभी क्षेत्रों चाहे वह शिक्षा -स्वास्थ्य,अन्तराष्ट्रीय विदेश नीति हो,रक्षा का क्षेत्र हो पड़ोसी देशो से मित्रता व कुटनीति का क्षेत्र हो।उसी राजनेता व पं० नेहरू व उनके परिवार व काँग्रेश पार्टी के आज जगह-जगह एक प्रशन उठाया जाता है,कि 70 बर्षो में एक राजनीतिज्ञ ने क्या किया है।जो इन्होंने 10 बर्ष के अल्प कार्यकाल किया है।श्याद उन्हे मेरा आलेख प्रसंद ना आये।मुझे उन्हे तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी तक प्रसंद नही है,लैकिन जब उन्हे उनकी जरूरत पड़ती है उनकी समाधि पर जाकर उन्हें अपनी उपस्थिति दर्ज कराने से भुलते नही है।कुछ लोग ऐसे भी है जो भारत के आजादी-2014 के बाद मानते है।अच्छे दिन आयेंगे,मेक इण्डिया,आजादी का अमृत महोत्सव,अमृतकाल व मोदी की गारंटी आदि के सहारे आधुनिक भारत का निर्माता तक स्वयं भू घोषित कर दिया है।मुझे क्या।यें आप पर पर र्निभर करता है कि आप किसे आधुनिक भारत का असली निर्माता मानते है।उन्हें जिन्होंने अंग्रेजों सें लड़कर ना केवल भारत माता को आजादी दिलाई ब्लकि अपने नागरिकों व अपने देश को अन्तराष्ट्रीय मंच लाकर आत्म निर्भर बनाया है।ना केवल जुमले बाजी,वाक्य पटुता,बेरोजगारी,भुखमरी,प्रेस स्वतंत्रता के 161 स्थान तो 80 करोड़ देश वासियों 5 किलो अनाज के लिए कतार में लाकर खड़ा कर दिया।इतना ही नही कई सरकारी,अर्द्ध सरकारी कम्पनियों के प्राईवेट कम्पनी के हाथ सौप दिया,पारदर्शिता के नाम पर इल्कट्रोल ब्राण्ड को अकेला चन्दा वसूल किया।लोक सभा 24 के चुनाव में पार्टी 244 सीटों पर लाकर खड़ा कर दिया,फिर भी 60 वर्ष के अपने तीसरे कार्यकाल की सता के सिंधासन पर ऐन -केन – प्रकरेण आसीन होकर फूले नही समा रहें है।चहुँ दिशाओ में शंखनाद कर रहें 60 बाद तीन बार प्रधानमंत्री बन गए । पं० नेहरू से अपनी तुलना करने लगे है।ऐसे में तो यही कह सकता हूँ कि जाकि भावना जैसी प्रभु नजर आये तिन तैसी!फिलहाल यह कहते हुए विदा लेते है-ना ही काहूँ से दोस्ती ना ही काहुँ से बैर खबरीलाल तो माँगे सबकी खैर।फिर मिलेंगें तीरक्षी नजर से तीखी खबर के संग,तब तक के लिए अलविदा। आलेख-विनोद तकियावाला, सम्पर्क-8368393253 मेल-journalist.takiawala@gmail.com,

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