नीति निर्देश तत्व – ४५ साल पुरानी यादें, पिता सुंदरलाल बहुगुणा जी के साथ
राजीव नयन बहुगुणा
पिथौर गढ़ के तिब्बत सीमांत की यह कोई 45 साल पुरानी तस्वीर मुझे अभी अपने संग्रह में मिली है.
इसके ज़रिये मैं तत्कालीन समाज, राजनीति और नौकरशाही का चरित्र चित्रण करना चाहता हूँ.
इस इलाके में प्रचण्ड भू स्खलन होते थे. इस रास्ते मानसरोवर यात्रा तब कई वर्ष बाद पुनः शुरू हुई थी.
प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने मानसरोवर से लौटे अनेक यात्रियों से इन आपदाओ का कारण पूछा, पर कोई नहीं बता पाया. क्योंकि उन्हें सिर्फ़ भगवान शंकर दिखते थे.
तब एक बार आयरन लेडी ने मेरे पिता का आह्वान किया, सुन्दर लाल जी, आप ही जाकर पता लगाओ. यह ईश्वर का प्रकोप है, या कुछ और.
इस तरह हम लोग, अर्थात मैं और मेरे पिता अपनी पीठ पर अपना बोझा लादे दरमा, दान्तु, दुगतु, सीपू और नारायण आश्रम को चले.
तब वहां चंद्र सिंह नामक एक आदर्श वादी गढ़वाली अफसर अतिरिक्त जिला अधिकारी के रूप में तैनात थे. वह भी पीठ पर अपना बोझ लादे साथ चल पड़े.
चित्र उन्ही ने खींचा है.
तहसीलदार और बोझा ढोने वाले खच्चर को वापस भिजवा दिया गया. तय हुआ कि अनावश्यक सामान धारचूला में ही छोड़ दिया जाये, तथा हर यात्री अपना सामान स्वयं उठा ले चले.
डाकबंगला में बनवाया गया भोजन तथा नए बिस्तर व्यर्थ चले गये. क्योंकि यह भी निर्णय लिया गया कि रात का पड़ाव किसी ग्रामीण के घर पर ही लगेगा.
जिस गाँव में कभी पटवारी भी नहीं गया था, वहां adm को आया देख कोलाहल पड़ गया.
मेरे पिता भी तब तक एक पर्यावरण योद्धा के रूप में ख्याति पा चुके थे, अतः उन्हें देखने भी सीमांत जन आने लगे.
रात के पड़ाव पर एक हारमोनियम पहले से मंगवा कर रख दिया जाता था , जिस पर मैं स्थानीय कलाकारों के साथ न्यूली और शौका गीत गाता था. भाषण की बजाय संवाद होता था.
कई दिन पैदल घूमने के बाद लौट कर मेरे पिता ने इंदिरा गाँधी को रिपोर्ट दी :-
सीमान्त को बचाने के लिए बनाई जा रही सड़कें ही सीमांत को नष्ट कर देंगी.
निर्माण मैनुअल हो. विस्फोट कतई नहीं.
- आपदा प्रूफ भवन बनाने के नाम पर सीमेंट की ईंटो का प्रयोग मूर्खता पूर्ण है. ( ऐसी इंटें चित्र में दिख रही हैं )
स्थानीय तकनीक पर बने लकड़ी के भवन ही श्रेयष्कर हैं.
वनो पर स्थानीय नियंत्रण हो. - चीड़ का रोपण तत्काल बंद किया जाये.
- पर्यटको और तीर्थ यात्रियों की भीड़ नियंत्रित हो.
लीसा, लकड़ी के चोरों पर कड़ी निगाह रहे. - चीन पर अंतर राष्ट्रीय दबाव बनाया जाये, कि वह विकास के नाम पर प्रकृति संहार बंद करे.
हम भी यही नीति अपनाएं.
लकड़ी का एक लोकल और वोकल ठेकेदार हमारे दल के सामने रास्ता रोक कर लेट गया. उस वक़्त उसे समझाइश से हटाया गया.
हमारे लौटने के बाद पुलिस ने उसकी एक टांग तोड़ दी.
खनन, लकड़ी और सड़क माफिया की पहले तो दोनों, अन्यथा कमसे कम एक टांग तोड़ा जाना आज भी आवश्यक है. - ABOVE
( चित्र में पीठ पर भारी बोझ उठाये मेरे पिता. कम बोझ के कारण भी तिरछी हो चुकी कमर के साथ मैं. तथा संभवतः वहां की महान शिक्षा प्रसरक गंगोत्री गर्बयाल )