न खाता न बही, जो जल संस्थान कहे वो सही : RTI activist Girish Brijwasi

न खाता न बही, जो जल संस्थान कहे वो सही
आप सोच रहे होंगे कि ऐसे दृष्टांत तो दूर लोग ऐसे मुहावरे भी भूल गए हैं, जी नहीं, आप गलत हैं, कोई आशंका हो तो उत्तराखंड जल संस्थान के रवैये को देख सकते हैं। जल संस्थान उत्तराखंड के लोगों को पानी पिलाता है पर उसे यह नहीं पता कि वह एक आदमी को कितना और एक परिवार को कितना पानी उपलब्ध कराता है। दूसरी बात यह कि वह एक आदमी से पानी के बिल के नाम पर उतना ही पैसे वसूलता है जितना एक परिवार से। साथ ही उन घरों से भी वसूलता है जो महीनों-महीनों बंद रहते हैं, क्योंकि जल संस्थान टोंटी के हिसाब से बिल वसूलता है, बेशक उस टोंटी में पानी आता भी है अथवा नहीं, इसका भी प्रमाण उसके पास नहीं होता। पानी की आपूर्ति व शुद्धता को लेकर भी उसके दावे संदेह के घेरे में रहने के पर्याप्त कारण हैं।

आर टी आई एक्टिविस्ट गिरीश बृजवासी के मुताबिक कनैक्शन लेने पर वितरण लाईन से अपने घर तक पानी पहुँचाने के लिए नल व अन्य सामग्री की व्यवस्था उपभोक्ता को खुद करनी होती है।

उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों में जल संस्थान की इस प्रकार की कारगुजारी है जबकि 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तराखंड की 69.77 % आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में है। जल संस्थान से संबंधित इन तथ्यों का खुलासा जल संस्थान के नैनीताल कार्यालय से सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत मांगी गई जानकारी से हुआ है।

आर टी आई एक्टिविस्ट गिरीश बृजवासी के मुताबिक यह हालत तब है जब अधिकांश योजनाएं प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त नि:शुल्क जल पर आधारित हैं। पानी के समुचित बंटवारे का प्रावधान न होने तथा ठोस व्यवस्था के अभाव में कर्मचारियों को भी मनमानी करने का मौका मिल रहा है। इसके अतिरिक्त जल संस्थान से संबंधित कई अन्य तथ्य हैं जिन पर तत्काल गौर किए जाने की आवश्यकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *