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ENTERTAINMENT, FILMS

संस्कृति-नाटक “देवभूमि” ने मचाया धमाल, उठाये सवाल


18 मार्च सोमवार को मंडी हाउस (दिल्ली) स्थित एल.टी. जी. सभागार में पर्वतीय कला केंद्र दिल्ली द्वारा मंचित नाटक “देवभूमि” ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। समय से पहले ही सभागार प्रबुद्ध नाट्य रसिक-दर्शकों से खचाखच भर गया था।
उत्तराखंड की पृष्ठभूमि पर श्री चंद्र मोहन पपनै द्वारा लिखित और श्री सुमन वैद्य (NSD) द्वारा निर्देशित नाटक “देवभूमि” को उत्तराखंड की जन सामान्य की कठिनाइयों, समस्याओं और देवभूमि के संस्कारों को कलुषित करती स्थितियों को जिस गहन संवेदना से लिखा गया, उसी भाव से निर्देशित किया गया और कलाकारों ने निर्देशक की उम्मीदों को साकार करने का प्रयास भी किया। नाटक हिंदी में था लेकिन कुछ पात्रों ने अपने संवादों में पहाड़ी पुट देकर दर्शकों की तालियों को समेटने का सटीक उपाय अपनाया। बेरोज़गारी, पलायन, नारी का कठिन जीवन, घास-पानी की समस्या, दुधारू पशुओं को पालने में कठिनाई, सरकार की वन नीति, भ्रष्ट प्रशासन तंत्र, स्थानीय कर्मचारियों की मनमानी और शोषण, गांवों के नवजवानों को पथभ्रष्ट करने के तरीके, ड्रग्स का विस्तार, दारू का प्रचलन, चोरी, भ्रष्टाचार में आकंठ वरिष्ठ अधिकारी स्थानीय छुट भय्यों की सांठगांठ साथ ही देवभूमि की आध्यात्मिकता, सामूहिकता, नारीशक्ति व देशभक्ति, सैनिक सम्मान,जनभावना का सम्मान जैसे विषयों को बेहतर ढंग से नाटक के संवादों, कथोपकथन में पिरोया गया था।
नाटक का आरंभ मसकबीन, हुडकवादन का समागम ढोल-दमाऊ वादन में सम्मिलन कर धमार ताल से होली का माहौल बनाना नाट्यनिर्देशन की ऊंची समझ का द्योतक था। दृश्यपरिवर्तन का आधार रेडियो समाचार बनाना बहुत अच्छा लगा। उसमें भी देवकीनंदन पांडेय द्वारा समाचार पढ़ना उत्तराखंडी दर्शकों को आत्मीयबोध कराता है और सामान्य दर्शकों को समाचार वाचक के प्रतीक रहे व्यक्ति का स्मरण कराता है। अन्य दृश्य परिवर्तन में अधिकतर (फोग) इफ़ेक्ट का प्रयोग किया गया। सीमा पर दुश्मन देश के साथ युद्ध चल रहा है, ग्रामीण लोग आशंकाओं में जी रहे है। गॉंव का एक सैनिक गंभीर सिंह (डॉ सतीश कलेश्वरी) युद्ध विजय के बाद गॉंव लौटता है। गॉंव में उसका स्वागत होता है। लोगों में देशभक्ति और उत्साह दिखाई देता है। उत्तराखंड का शायद ही कोई गाँव हो जिस गॉंव से कोई न कोई भारत माता की रक्षा के लिए सेना में न हो। भारत माता की जय के नारे यही भाव प्रकट कर रहे थे।


उत्तराखंड से यहां के निवासियों का उत्तराखंड से पलायन का सबसे बड़ा कारण है अति आवश्यक सुविधाओं का अभाव। नाटक में महिला की इस विवशता को शालीन तरीके से दिखाया गया है कि पति शहर में होटल में नौकरी करने गया है पत्नी गॉंव में खेती बाड़ी, पशुपालन कर जीवन यापन कर रही है। घर परिवार के लिए कमाना है इस लिए पति साल में कभी कभार गॉंव आता है। गॉंव की महिलाओं की समस्या यह है कि उनका अपना जंगल उनका अपना न रहा। जब से वन विभाग ने जंगल मे पतरोल रखा है गॉंव की महिलाओं को घास काटने और सूखी लकड़ी बीनने की आज़ादी भी नही रही। घास काटने जंगल मे गई महिलाओं को दुराचारी पतरोल (महेंद्र सिंह लटवाल) उनकी दाथी (हसिया) छीनकर भगा देता है। वह फारेस्ट ऑफिसर शंकर गिरी (वीरेंद्र सिंह गुसाईं) को लेकर आता है, जिससे लगे के पतरोल बहुत निष्ठावान कर्मचारी है। पतरोल गॉंव की घसेरी महिला दुर्गा (चंद्रा बिष्ट) पर बुरी नज़र रखता है। वह उसे जंगल से घास-लकड़ी ले जाने का लालच देता है। चंद्रा एक सीमा तक उसे सहन करती है लेकिन पतरोल जैसे ही करीब आने की कोशिश करता है दुर्गा में पहाड़ी स्वाभिमान जगता है और वह उसके विरुद्ध गॉंव के सभी लोगों को जोड़कर जंगल में पतरोल कई जमकर पिटाई कर देते हैं। गॉंव के दो होनहार नौजवानों रमुआ (ख़िलानंद भट्ट) और हरिया (दीपक राणा) जो सेना में भर्ती होने के लिए अभ्यास कर रहे है, जंगल की ओर जाते उन्हें घायल पतरोल दिखाई दिया, जिसकी उन्होंने सहायता की। पतरोल को पता चला कि ये लड़के दुर्गा के ही गॉंव के हैं, पतरोल में उन्हें धूम्रपान, मदिरापान की लत लगा दी। उन्हें नशाखोरीऔर ड्रग के धंधे में ही नही बल्कि वन्य जानवरों का अवैध शिकार का धंधा भी सिखा दिया। अधिकारियों और अपराधियों की मिलीभगत से देवभूमि राक्षसभूमि बन गई। हमारी अपनी संस्कृति विकृत कर दी गई है। हमारी सामाजिक स्वतंत्रता, जीवन यापन के साधन सभी पर सरकार का हस्तक्षेप बढ़ गया है। लोग यहां जियें तो कैसे जियें। गाँव की महिलाओं ने सभी को एकजुट कर पतरोल को घेरा वह भागता फिरता जान बचाने के लिए उन्ही साधुओं के पास गया जिन्होंने उसे शुरू में सफल होने का संकेत दिया था। साधुओं ने उसे प्रायश्चित का मार्ग बताया। शिवरात्रि पर वह गॉंव के शिवालय में जाता है। गाँव के लोग उसे उन अपराधों का प्रायिश्चित करने की सजा देते हैं, जो पतरोल ने किए थे।
पतरोल को सज़ा सुनाते सुनाते दृश्य उत्साह में बदल जाता है। होली के हुड़दंग का थडिया नृत्य की धमाल में बदल जाता है। धमाल तालियों की गड़गड़ाहट में बदल जाता है फोकस स्टेज से हटकर दर्शक दीर्घा पर आ जाता है। कलाकारों के प्रदर्शन, दर्शकों का उत्साह, तालियों की गड़गड़ाहट, जन उमंग और तंरंग ने प्रमाणित कर दिया कि नाटक अपने उद्देश्य में सफल रहा। चर्चित भूमिकाएं मधुली अमा (बबीता पांडेय), दुर्गा ( चंद्रा बिष्ट), उमा (सविता पंत), तुलसी (लक्ष्मी महतो) नंदी (तूलिका बिष्ट) पतरोल (महेंद्र सिंह लटवाल), श्वेता चंद, नेहा भट्ट, जयति वैद्य, सभी ग्रामीण महिलाएं, हरीश शर्मा (वाद्य-मसकबीन, ढोल, हुड़का, बांसुरी), मोहित शर्मा ( दमाऊ, रणसिंघा), कुबेर चंद कोटियाल, दीवान कंवल खुशाल सिंह रावत सभी ग्रामीण के अलावा सहायक भूमिकाएं भी सराहनीय थी। प्रस्तुति को रंग देने में संगीत पक्ष का बहुत बड़ा योगदान रहा। चैत्र माह में जब पहाड़ रंगबिरंगे फूलों से लकदक हो जाते हैं तब स्वर्ग लोक की अप्सराएं भी पहाड़ की वादियों में सुरीले गीत गाने गाँव की चौपाल में मस्तियाँ करती हैं। पारंपरिक लोक गीत संगीत ने दर्शकों को उत्साहित कर बांधे रखा।
समीक्षात्मक दृष्टि से देखा जाय तो ललित कलाओं में सौंदर्यीकरण की संभावना सदैव बनी रहती है। दृश्य के अनुसार सज्जा परिवर्तन, संस्कृति के अनुसार व्यवहार, पात्र के अनुसार संवाद, स्थिति के अनुसार स्पेशल इफेक्ट, मंचीय दृश्य-उपकरण किसी नाटक को जीवंत बना देते हैं। नाटक विषयवस्तु, अभिनय, रसनिष्पत्ति और लक्ष्य तक अपनी बात पहुंचाने में सफल रहा। लेखक, निर्देशक और कलाकार सफल प्रस्तुति के लिए बधाई के पात्र हैं। कुछ बिंदु हैं जहाँ संवाद,गति, यति, स्पष्टता की जरूरत है उन बिंदुओं से नाटक के लेखक श्री चंद्र मोहन पपनै व निर्देशक सुमन वैद्य सुपरिचित हैं। अति अल्प समय में इतना अच्छा नाटक देना। पर्वतीय कला केंद्र इतनी अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई के पात्र है।
नाट्य प्रस्तुति से पहले स्वागत संबोधन में श्री के सी पांडेय ने पर्वतीय कला केंद्र के इतिहास, गतिविधियों और संभावनाओं से अवगत किया। पर्वतीय कला केंद्र के अध्यक्ष एवं नाटक देवभूमि के लेखक श्री चंद्र मोहन पपनै ने आमंत्रित दर्शकों का स्वागत किया। श्री पपनै ने बताया उनका प्रयास है कि इस मंच पर गढ़वाल, कुमाऊं और जौनसार की सहभागिता सदैव बनी रहे। इस नाटक में भी तीनों अंचलों की सहभागिता है। विशिष्ठ अतिथि दर्शक पद्मश्री शेखर पाठक ने लेखक निर्देशक व कलाकारों को उनकी प्रस्तुति पर बधाई दी। पर्वतीय कला केंद्र को संबल देने वाले समाज अग्रणियों में श्री टी सी उप्रेती, श्रीमती रमा उप्रेती,श्री नरेन्द्र लड़वाल, श्री संजय जोशी, श्री सुरेश पांडेय श्री के सी पांडेय, श्री सुखेश नैथानी, श्री हीरा बल्लभ, डॉ हरि सुमन बिष्ट उपस्थित थे। आयोजन को सफलता का स्वरूप देने वाले अनेक सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक, चिंतक, पत्रकार, संस्कृतिकर्मी, कलाकार व नाट्य प्रेमी नाटक देखने के लिए सभागार में थे।

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