संघर्ष के साथ ही सचेत करना भी हमारी अपनी जिम्मेदारी

पुरुषोत्तम शर्मा

उत्तराखण्ड में आज जिस समझ के लोग “बोल पहाड़ी हल्ला बोल” बोल रहे हैं, 1994 में वही समझ वाले पिछड़े वर्गों के लिए शैक्षणिक आरक्षण का विरोध करते करते पूरे उत्तराखंड को ही 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के दायरे में लेने की मांग पर उत्तराखण्ड बंद और सड़कें जाम कर रहे थे।

उस समय भी अकेले हम ही थे, जिन्होंने उस मांग को उत्तराखण्ड राज्य की मांग को कमजोर करने वाला बताते हुए उस जाम व बंद के बावजूद हल्द्वानी में 20 जुलाई 1994 को उत्तराखण्ड राज्य की मांग उठाते हुए एक बड़ी रैली कर उस आंदोलन को सही रास्ते पर लाने का प्रयास किया था।

उसके बाद हमारे साथियों के सचेत प्रयास से ही राज्य की मांग पर जोर देने के लिए श्रीनगर गढ़वाल में छात्र युवा संघर्ष समिति का गठन किया गया था, जिसके संयोजक उस समय के शोध छात्र एसपी सती थे, जो अब जाने माने भू वैज्ञानिक हैं। उस संघर्ष समिति ने ही पृथक उत्तराखण्ड राज्य के लिए पौड़ी की उस पहली ऐतिहासिक रैली का आह्वान किया था, जहां से उस आंदोलन को हड़पने के राजनीतिक खेल शुरू हुए। हमारे इन दो सचेत प्रयासों से ही आरक्षण के सवाल पर भटक रहे उस आंदोलन के बीच से उत्तराखण्ड राज्य की मांग प्रमुख मांग बन गई थी।

पौड़ी की रैली के बाद जब “झंडा डंडा छोड़ो” के नारे के साथ उत्तराखण्ड आंदोलन में कांग्रेस भाजपा नेताओं के लिए प्रवेश के दरवाजे खोल दिए गए, हमने अपने झंडे डंडे के साथ पूरे उत्तराखण्ड में 16 दिनों तक यात्रा निकालकर 50 जन सभाएं की और राज्य आंदोलन व भावी राज्य की दिशा के सवाल को शिद्दत से उठाया।

अगर राज्य आंदोलन के बीच में उन सवालों पर अन्य संगठनों की ओर से भी संजीदगी दिखाई गई होती तो उत्तराखण्ड की राजनीति और इस राज्य की दशा आज ऐसी नहीं होती जिसके लिए लोग आज आसूं बहाते पलायन कर रहे हैं।

आज भी ठीक ऐसी ही स्थिति है। जब उत्तराखण्ड में कृषि भूमि के संरक्षण का कानून सहित राज्य का अपना एक संपूर्ण भूमि सुधार कानून बनाने की मांग और राज्य में चल रही कारपोरेट/माफिया लूट की नीतियों को पलटने की आवाज उठानी चाहिए, तब बड़े लुटेरों और उनको प्रसय देने वाली सत्ता को बचाने के लिए दूसरे राज्यों से आए मजदूरों / मध्यवर्ग को निशाना बनाया जा रहा है। ऐसा कर जाने-अनजाने लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा-आरएसएस की राजनीति के लिए जमीन तैयार करने का काम किया जा रहा है।

यह जनता के हितों की रक्षा के लिए बुनियादी समझ का सवाल है। हम शासक वर्ग की भावनात्मक लिबास में लिपटी शातिराना राजनीति की चाल से भटकने वाले नहीं हैं। संघर्ष को सही दिशा में लड़ते हुए सबको समय पर सचेत करना हम हर दौर में अपनी जिम्मेदारी समझते हैं।

( ये विचार पुरषोत्तम शर्मा के हैं, यूके नेशन न्यूज़ जवाबदेह नहीं है))

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