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Uttrakhand

प्रयाग महाकुम्भ मे उत्तराखण्ड से दर्शनो के लिए लायी हुयी बद्री गाय बनी हुयी है – चर्चा का विषय

प्रयाग महाकुम्भ मे उत्तराखण्ड से दर्शनो के लिए लायी हुयी बद्री गाय चर्चा का विषय बनी हुयी है। एक पत्रकार वार्ता मे पूछे गये प्रश्न के उत्तर मे उत्तराम्नायज्योतिषपीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने इस महत्व को बताया कि गङ्गा और यमुना दोनो का उद्गम स्थान हिमालय स्थित उत्तराखण्ड है, जो दोनो पवित्र नदियां प्रयाग आकर पुनः एक हो जाती हैं। मां गङ्गा का उद्गम इस धरा के लिए गौमुख से है।

तो गाय जो कि बद्रीनाथ क्षेत्र की बद्रीगाय है उसका संगम क्यों न कराया जाय जिससे कुम्भ स्नान और अधिक दिव्य रूप दिया जा सके। गौगङ्गा कृपा कांक्षी गोपाल मणी जी महाराज का कहना है कि आपके सभी सत्कर्म तभी फलित होंगे जिस दिन माला करने वाले गौमुखी मे रखी माला तात्पर्य समझ सकेंगे। उनका कहना है कि आपके मन्त्र तभी सिद्ध हो सकते हैं जब आपका मन मस्तिस्क गौमुखी अर्थात गाय को दर्शन करने वाला बने। माला का तात्पर्य है कि मां ला अर्थात गौमाता को ला। जवकि पूरा देश गाय को छोड रहै है फिर आपका मन्त्र और माला दोनो निरर्थक हैं।

सभी सनातनियों को गौमुखी बनकर गाय घर मे रख कर कार्य करने चाहिए इससे आपके सभी प्रयोजन सिद्ध होंगें। बद्री गाय को संगम लोवर मार्ग सेक्टर 22 मे परमधर्म संसद के पास ही नार्थ व्लाक की तरफ सुन्दर कुटिया बना कर रखा गया है। जहां पर नित्य उसकी सेवा, पूजा,वन्दना,भोग आदि से की जाती है। कुम्भ स्नान एवं कल्पवासियों के लिए अतिरिक्त पुण्य लाभ हो रहा है। बद्रीगाय के गव्य दिव्यगुणकारी है। यह हिमालय क्षेत्र की औषधियों का चुगान करती है।

यह प्रजाति वही नन्दनी गाय की प्रजाति है जिसकी सेवा कभी भगवान राम के पूर्वज महाराज दिलीप एवं सुदक्षिणा नेकी और मनोवांछित वर भी प्राप्त किया। यह प्रजाति अब वर्तमान मे बहुत कम सख्यां मे इसका संरक्षण एवं संवर्धन आवश्यक है। इसी उद्देश्य को ध्यान मे रखते हुये।

अनुसूया प्रसाद उनियाल अपने उत्तराखण्ड के टिहरी मे सकलाना स्थित पैत्रिक गांव उनियाल गांव मे बद्री गौधाम की स्थापना कर वंहा पर बद्रीगायों का संरक्षण व संवर्धन का कार्य कर रहे हैं साथ ही वैदिक वैक्सीन जो कि परम पवित्र पथ्य पञ्चगब्य है जो सभी प्रकार के रोगों को मारने मे सक्षम है पञ्चगब्य पान भी कराते हैं।

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