प्रयागराज डायरी I काफी हाउस प्रयाग की राजनीतिक गतिविधियों का गढ़ है।


VIVEK SHUKLA
कुंभ में संगम में डुबकी लगाने के अलावा भी लगता है कि इधर बहुत कुछ हो रहा है। सिविल लाइंस के इंडियन कॉफी हाउस में बैठकी करना और साथ की टेबलों में बैठे लोगों की गुफ्तगू को सुनना एक अनुभव रहा। साथ वाली टेबल पर दो नौजवान मोदी जी की हालिया अमेरिका यात्रा पर गंभीर चर्चा कर रहे थे।
दोनों एक मत थे कि ट्रंप भारत विरोधी हैं। ट्रंप को धूर्त कहा जा रहा था। कॉफी हाउस में समाजवादी पार्टी के एक्टिविस्ट भी बैठे थे। इन सबको अपने नेता धर्मेंद्र यादव से मिलना था। धर्मेंद्र यादव संगम में डुबकी लगाने आए हुए हैं। यहां ही अवनीश मिले। मेडिकल कॉलेज में जॉब करते हैं। बता रहे थे कि ये काफी हाउस प्रयाग की राजनीतिक गतिविधियों का गढ़ है। भारत के कई प्रधानमंत्री इधर आते रहे हैं।
गले में गमछा
पूर्वांचल में लगता है कि गले में गमछा डालना एक तरह का फैशन स्टेटमेंट है। हमें बहुत सारे नौजवान और अधेड़ दिखाई दे रहे हैं, जिन्होंने गले में गमछा डाला हुआ है। कुछ ने गमछे को सिर पर भी बांधा हुआ है। गमछा डाले लोग बुलेट और लग्जरी कारों को चला रहे हैं।
जलेबी दही के साथ
प्रयाग के कान्हा श्याम होटल में सुबह नाश्ते पर जलेबी और दही का आनंद लिया। दिल्ली में जलेबी और रबड़ी खाता रहा हूं। जलेबी को दही के साथ खाकर अच्छा लगा। इधर पता चला कि जलेबी और दही को बड़े चाव के साथ खाया जाता है। इधर ही कचौड़ी और आलू की सब्जी का ज़ायका भी अच्छा लगा।
दोनों में कम मिर्च थी। दिल्ली में हनुमान मंदिर या बंगाली मार्केट की हैवी कचौड़ी अब झेली नहीं जाती।
भैया, कान्यकुब्ज हो या…
प्रयागराज में दूसरा दिन खत्म होते होते 9 शुक्ल जी मिल चुके हैं। E रिक्शा के ड्राइवर से लेकर पुलिस के अफसर। जब उन्हें पता चलता है कि हमारा सरनेम भी शुक्ला है, तो वे पहला सवाल यही करते हैं, क्या आप कान्यकुब्ज हैं? हमारे से मिलने आए एक लोकल पत्रकार यादव जी ने भी हम से वही सवाल किया जो बाकी कर रहे हैं।
दीवारों पर कलाकारी
सारे प्रयागराज की दीवारों पर बहुत सुंदर पेटिंग्स देखी जा सकती हैं। पेड़ों, पौधों, परिंदों वगैरह की। एक बात कहनी होगी कि इतने बड़े आयोजन के बावजूद सारा शहर साफ सुथरा है। कहीं गंदगी के ढेर दिखाई नहीं देते।
जारी
The coffee house of Allahabad in Civil Lines has always been the centre of political and intellectual discussion and debate. I always visit this coffee house whenever I visit Allahabad for memory sake. In fact Allahabad is one of my favourite cities because I did my graduation from Allahabad University. I love the ambience and spirit of the city. Once an Allahabadi is always an Allahabadi.
This comment is from former DGP of Kerala and former UPS K.S.Jangpangiji , send on my WhatsApp after reading this story.
SUNIL NEGI