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दो दिवसीय यह आयोजन दिनांक 18-19 अक्टूबर, 2024 को दिल्ली के मंडी हाउस स्थित ‘एलटीजी सभागार’ में संपन्न होगा- आवाहन-2024′ ABHIVYAKTI KAARYASHAALA

‘आवाहन-2024’ के पहले दिन उत्तराखंड के लोक गीतों का आयोजन होगा जिसे ‘लोक के रंग, फ्यूजन के संग’ नाम से प्रस्तुत किया जायेगा। इसमें उत्तराखंड के जाने-माने युवा गायकों के अलावा नये गायकों को आप सुन पायेंगे। इसका संगीत निर्देशन ‘पहाडी़ सोल’ के राकेश ‘राही’ करेंगे। दूसरे दिन दो नाटकों का मंचन किया जाएगा। पहला नाटक सुपरिचित कहानीकार-पत्रकार नवीन जोशी के उपन्यास ‘बाघैन’ पर आधारित है। इसे ‘भाव राग ताल नाट्य अकादमी’ पिथौरागढ़ मंचित करेगी। इसका निर्देशन ‘संगीत नाटक अकादमी’ पुरस्कार प्राप्त युवा निर्देशक कैलाश कुमार करेंगे।

‘बाघैन’ नामक चर्चित कहानी पहाड़ी परिवेश पर आधारित है। नाटक का मुख्य पात्र आनंद सिंह है जो एक रिटायर्ड आर्मी का सिपाही है। अपनी मिट्टी से आनंद सिंह को बेपनाह मोहब्बत है साथ ही वो कर्तव्यपरायण, आत्मनिर्भर, नियमों-कानूनो का पक्का, जिम्मेदार और एक कर्मठ बुजुर्ग है। आनंद सिंह मल्ला-सेरा के एक गांव में रहता है, जहां उसके सिवा उसके साथ एक कुत्ता रहता है शेरू नाम का कुत्ता। उसके लिए एक कुत्ता ही नहीं, बल्कि उसके सुख-दुःख सुनने वाला साथी और दोस्त है जिसे सूबेदार सारी बातें बताता है। उन दोनों के अलावा उस गांव में कोई नहीं रहता है क्योंकि उस गांव से लोगों का पलायन हो चुका है। नाटक की शुरुआत शहरी परिवेश से होती है धीरे-धीरे नाटक पहाड़ में रह रहे आनंद सिंह पर केंद्रित हो जाता है। आनंद सिंह की यादों में उसकी पत्नी और उसके गांव के पुरानी साथी हमेशा आ जाते रहते हैं। बेटी के आग्रह पर आनंद सिंह मजबूरन कुछ दिन शहर जाने के लिए तैयार हो जाता है, लेकिन वहां रहना संभव नहीं हो पाता। बेटी और पिता का रिश्ता नाटक में मार्मिक पूर्ण स्थिति उत्पन्न कर देता है। नाटक विकास के मॉडल को प्रश्नांकित करने के साथ-साथ बुजुर्ग पीढ़ी के अपने मिट्टी से लगाव और नई पीढ़ी की अपनी मिट्टी को छोड़ने की विवशता को जीवंत और मर्मस्पर्शी ढंग से दिखाता है। नाटक का अंत गहन उदासी और नई उम्मीदों के साथ समाप्त हो जाता है।

दूसरा नाटक है ‘फट जा पंचधार’ जो हिंदी सुप्रसिद्ध कहानीकार विद्यासागर नौटियाल जी की कहानी पर आधारित है। इस एकल प्रस्तुति को ‘संभव’ नाट्य संस्था की ओर से कुसुम पंत करेंगी। कुसुम पंत रंगमंच का एक सुपरिचित नाम है।

‘फट जा पंचधार’ विद्यासागर नौटियाल की विलक्षण कहानियों में से एक है। कहानी की केन्द्रीय पात्र एक युवती ‘रक्खी’ है। रक्खी का पूरा जीवन त्याग, प्रेम, बलिदान, शोषण, उत्पीड़न, उपेक्षा, तिरस्कार, घृणा के अनेक धरातलों से गुजरता है। आखिर में एक अंधी अंधेरी गुफा के मुहाने पर खत्म होने की कगार पर आकर मार्मिक चीत्कार, झुंझलाहट, दहाड़ व आर्तनाद का रूप ले लेता है। और फूटता है उस विशेष स्थान पर जिसे पंचधार के नाम से जाना जाता है। इस जगह पर पंच गांव की सीमा मिलती है। जहां से दोहरे मापदंड, खोखली मानसिकता, गिरते जीवन मूल्यों, नारी दोहन, दलित उत्पीड़न की दुर्गधंमय जलवायु वातावरण को दूषित करती आ रही है, सदियों से। सडी़-गली व्वस्थाओं के रहते मानवीय संवेदाओं के कपाट जहां पर खुलते ही नहीं। रक्खी के लिये जब सब कुछ सहना असहनीय हो जाता है तो वो एक ऐसे भूकंप, प्राकृतिक आपदा का आह्वान करती है- पुकारकर उन सड़ी-गली मान्यताओं को श्राप देती है कि यह पंचधार नामक स्थान दुनिया के नक्शे से मिट जाय ताकि फिर किसी रक्खी का जीवन बर्बाद न हो पाये। नारी जीवन के दर्शन की पड़ताल करता यह एक दुःखांत चित्रण ही फट जा पंचधार है।

DR.SATISH KALESHWARI

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