सोमवार,6 नवम्बर 2023 को दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र तथा रीच संस्था द्वारा दून पुस्तकालय के सभागार में लेखक और पूर्व प्रशासक त्रिपुरारी शरण से उनकी पुस्तक ‘माधोपुर का घर‘ पर साहित्यकार गम्भीर सिंह पालनी द्वारा एक बातचीत का आयोजन किया गया। दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से इस तरह के आयोजन मुख्यतः साहित्यकार और लेखकों के लेखन विधा से जन समुदाय में चेतना जागरुकता पैदा करने की कोशिस की एक श्रंखला है।
कुल मिलाकर त्रिपुरारी शरण की पुस्तक ‘माधोपुर का घर‘ एक परिवार की तीन पीढ़ियों को एक कैनवास पर लाकर चित्रित करती है। जिसे एक तरह से गांव के रहवासियों की किस्मत में आने वाले अनेक उतार-चढ़ाव और दिन-प्रतिदिन के पात्रों की एक समृद्ध परेड कहा जा सकता है। यह तत्व उस समय के प्रमुख मील के पत्थर को पार करते दिखाई देते हैं, जो बिहार में उनके छोटे से गांव को बदल देता है : स्थायी बंदोबस्त से हुए जबरदस्त बदलाव, 1934 के भूकंप की तबाही, 1967 के अकाल की तबाही, इंदिरा गांधी का 1975 का आपातकाल, समाजवादी आंदोलन द्वारा पारंपरिक व्यवस्था देने के लिए किए गए बदलाव आदि। उत्थान और पतन के उतार -चढ़ाव की यह कहानी एक क्रमिक ह्रास, समायोजन और अनुभूतिपरक तरीके से इस पुस्तक में आती है।
पुस्तक में आये पात्र बिहार के गांव का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेखक की पकड़ बिहार के ग्रामीण जीवन की सभी विडंबनाओं के महाकाव्य वर्णन के माध्यम से आलोकित होते दिखते हैं। भारत के मुस्लिम समाज और पिछड़ी जातियों के लिए भी लेखक का विशेष स्थान दिखता है। लेखक की व्यंग्यात्मक कहानी की तुलना कभी-कभी फणीश्वर नाथ रेणु की गहरी अवलोकन कलम से की जाती है और ‘माधोपुर का घर‘ की तुलना अक्सर श्रीलाल शुक्ल की ‘राग दरबारी‘ और राही मासूम रजा की ‘आधा गाँव‘ से की जाती है।
वर्ष 1961 में जन्मे त्रिपुरारी शरण बिहार के मुजफ्फरपुर के रहने वाले हैं। सैनिक स्कूल, तिलैया में स्कूली शिक्षा के साथ, उन्होंने सेंट स्टीफंस से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और जेएनयू से समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री ली है। वह बिहार कैडर के 1985 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। वे बिहार राज्य के मुख्य सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए, इसके बाद उन्हें सूचना आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया। अपने कैरियर के दौरान उन्होंने थ्ज्प्प् पुणे के निदेशक और दूरदर्शन के महानिदेशक के रूप में भी कार्य किया है। उनकी कविताएं और कई फिल्म समीक्षाएं लोकप्रिय पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। उन्होनें दो फीचर फिल्मों – कभी दिन चले ना रात और वो सुबह किधर निकल गई के निर्देशन और पटकथा-लेखन का भी किया है। उन्होंने इन फिल्मों का निर्देशन करने के साथ ही उसकी पटकथा को विकसित करने में सहयोग दिया है। त्रिपुरारी शरण जी को शास्त्रीय संगीत में भी गहन रुचि है।
त्रिपुरारी शरण ने बीच-बीच में पुस्तक के महत्वपूर्ण अंशों का वाचन भी किया। कार्यक्रम के बाद उपस्थित लोगों द्वारा सवाल-जबाव भी किये गये। इस अवसर पर निकोलस हॉफलैण्ड, आर.के.सिंह,विजयश्री, सुंदर सिंह बिष्ट, लोकेश ओहरी,मनोज पँजानी, विभूति भूषण भट्ट व चन्द्रशेखर तिवारी सहित दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र और रीच संस्था के कई लोग उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम में शहर के अनेक लेखक, साहित्यकार, बुद्धिजीवी और पुस्तकालय के युवा पाठक उपस्थित रहे।