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Uttrakhand

जब मीडिया ने छापा नहीं तो पत्रकार बन गया क्रांतिकारी सुरेंद्र

  • पानी की टंकी पर चढ़ने और पहाड़ विरोधियों पर जूते फेंकने में है पारंगत
  • भू-कानून को लेकर दिया अनिश्चितकालीन धरना, पहाड़ की दहाड़ चैनल करें सबस्क्राइव

दून प्रेस क्लब के साथ उज्ज्वल रेस्तरां में गत दिनों पहाड़ी स्वाभिमान सेना की कोर कमेटी की बैठक हुई। इस सेना का गठन पर्वतीय संस्कृति, परम्पराओं और लोगों की सुरक्षा के लिए किया गया है। इस सेना के अधिकांश सदस्य युवा हैं और पहाड़ की पीड़ा से ग्रस्त हैं। उस बैठक में मैंने सुरेंद्र रावत को देखा तो उत्सुकता जाग उठी।

जींस, जूते और हलके लाल रंग का कुर्ता। चेहरे पर दाढ़ी के साथ प्यारी सी मुस्कान। कमर में तीरंदाजों की तर्ज पर बंधा हुआ पट्टा और पीछे तीरों के स्थान पर लटका त्रिशूल। हाथ में माइक आईडी, जिस पर लिखा हुआ था पहाड़ की दहाड़। मैंने उससे नाम पूछा तो बोला, सुरेंद्र रावत क्रांतिकारी। मैं सुरेंद्र से पहली बार मिला। मैंने कहा कि हाथ में माइक और पीठ में त्रिशूल का अर्थ क्या है? हंसते हुए कहने लगा, माइक का अर्थ पत्रकार हूं और पीठ पर त्रिशूल का अर्थ हिन्दू हूं। जो भी विधर्मी पहाड़ के हितों की उपेक्षा करेगा, उसके लिए त्रिशूल है। इससे कहीं अधिक त्रिशूल टशन है। मैंने कहा कि त्रिशूल शस्त्र में आता है, क्या किसी ने उसे टोका नहीं? उसने इनकार में सिर हिला दिया।

मैंने पूछा क्या पत्रकारिता की शिक्षा ली है। वह मासूमियत के साथ बोला, नहीं। मैंने पूछा, कितने पढ़े हो? वह बिना लाग-लपेट के बोला, 10वीं। पत्रकार क्यों बने? सुरेंद्र बोला, भू-कानून को लेकर धरने पर बैठा था। कई पहाड़ विरोधियों पर जूते भी फेंके। पानी की टंकी पर भी चढ़ा। यानी पहाड़ के लिए पूरी तरह से समर्पित है सुरेंद्र्र। लेकिन मीडिया ने उसको तवज्जो नहीं दी तो उसने सोचा, क्यों न पत्रकार बन जाएं और अब वह पत्रकार बन गया है। पहाड़ की दहाड़ यू-टयूब चैनल चलाता है। मैंने पूछा,कुछ कमाई होती है इस पत्रकारिता से? हौले से हंसते हुए कहा, हां, कर देते हैं कुछ लोग मदद। शादी की, हां, बच्चे, जोर से हंसा बोला, अभी तो शादी हुई है।

सुरेंद्र रावत क्रांतिकारी मूल रूप से पौड़ी के पोखड़ा ब्लाक के थपला गांव निवासी है। पिता उसके बचपन में ही गुजर गये। तीन भाई हैं। दो गांव में रहते हैं और सुरेंद्र जीवन संघर्ष के लिए दून आ गया। कारगी में किराये के कमरे में रहता है और कठिन संघर्ष के दौर से गुजरा है। अब उसे लगता है कि यदि राज्य गठन के बाद हालात बदले होते तो उसकी भी तकदीर और तस्वीर संवर सकती थी, लेकिन जब देखा कि कुछ नहीं बदलेगा तो स्वयं को बदलने में लगा है। क्या पता अब पत्रकार बन गया है तो उसकी किस्मत भी जाग जाएं। इसलिए आप लोग पहाड़ की दहाड़ चैनल को जरूर सबस्क्राइव करें।

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