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Uttrakhand

कलम के लठेत

RAJIV NAYAN BAHUGUNA
राहुल गाँधी की पत्रकार सभा मे संवाददाता को बबाल करने संबंधित निर्देश के खुलासा के बाद मुझे मिडिया मे संघी विष वृक्ष के रोपण की घटना याद आ गयी.
1977 मे जनता पार्टी के सत्तारुढ़ होने पर जन संघ घटक ने अपने लिए सूचना प्रसारण मंत्रालय माँगा. और इस पद पर घृणा, हिंसा तथा विभाजनकारी भावनाओं से ओतप्रोत लाल किशन अडवाणी को इस विभाग का मंत्री बनवा दिया.
यह मंत्रालय तब दोयम दर्ज़े का माना जाता था, लेकिन उन्हें अपना गुह्य एजेंडा लागू करना था.
अडवाणी ने तब मार तमाम छंटे हुए और जघन्य संघी अखबारों मे ठूंस दिए. इनमे कुछ शिशु मंदिर के अचार्य थे, तो कुछ गो शाला के सेवक.
इससे पहले वे अख़बार के नाम पर सिर्फ़ पांचजन्य पढ़ते थे. अन्य अखबारों से उनका कोई वास्ता न था, बल्कि उन्हें पढ़ने की मनाही भी थी.
अस्सी के बाद जब मैं पत्रकारिता मे आया तो अडवाणी के रोपित संघियों मे कुछ सम्पादक तक बन चुके थे. वे सभी गिरोह बना कर रहते थे, और अशिक्षित होने के कारण विचित्र हरकतें करते थे.
उस समय अच्छे संस्थानों मे पत्रकार के लिए न्यूनतम स्नातक होना आवश्यक होता था.
उन सभी के पास इंटायर पॉलिटिकल साइंस जैसी डिग्री होती थी.
जिस तरह सत्ता मे आने के बाद अफगानिस्तान मे ठग तालिबान अमेरिका द्वारा छोड़े गये जहाज़ो के पंखो पर रस्से डाल कर झूला झूलते थे.
अपनी हरकतों का विरोध किये जाने पर ये झुण्ड बना कर कलरव करते थे. ये संघ के कलमी लठेत थे.
वह ख़बर लिखने की शुरुआत, पेज के ऊपर ॐ या जय श्री राम लिख कर करते थे.
ख़बर समाप्त होने पर वह जय श्री राधे इत्यादि लिखते थे.
वह अटल बिहारी वाजपेयी को” अटल जी ” लिखते थे, और अचार्य विनोबा भावे को सिर्फ़ विनोबा.
अटल बिहारी वाजपेयी जब रेलवे स्टेशन से खरीदी गयी दो रूपये वाली किताब से चुटकले सुना कर अपने भाषण मे अन पढो से तालियां पिटवाते, तो वे लिखते थे कि लाखों की भीड़ को मंत्र मुग्ध कर दिया.
मैं तभी समझ गया था कि आने वाले युग मे अब अंधा धुंध मचेगी.

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