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ओशो / रजनीश की गहरायी

PROF. JAIJEET BARTHWAL

ओशो या रजनीश के नाम से जाने जाने वाले चन्द्रमोहन जैन का जन्म मध्यप्रदेश के एक गाव कुच्वाडा मे हुआ था। षरिवार की आर्थिक स्तिथि अच्छी न थी किन्तु ओशो पढने मे कुशाग्र थे। तर्कशक्ति और विद्रोह की प्रवृति बचपन से ही उनके व्यक्तित्व का हिस्सा बन गये। वे हर बात को तर्क की कसौटी पर परखते और तभी उस पर विश्वास करते। तर्क उनकी आदत मे शुमार हो गया और इस आदत के चलते एक बार विद्यालय से भी निकाले गये। दर्शन शास्त्र से अपनी शिक्क्षा पूर्ण करने के बाद वह जबलपुर मे दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर बन गये किन्तु तर्क, विद्रोही प्रवृति और धर्म और समाज पर अपने स्वतन्त्र विचारो के कारण वे कही भी टिक कर नौकरी न कर सके। वह स्वतन्त्र रूप से व्याखान देने लगे। उन्होने पुणे मे अपना आश्रम खोला किन्तु अपने स्वतन्त्र विचारो के कारण तत्कालीन प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई की नापसन्दगी का उन्हे शिकार होना पडा और अन्ततः भारत छोड अमरीका के ओरेगोन मे उन्होने आश्रम बनाया। वहा भी वे अमरीकी राजनेताओ के निशाने मे आ गये। उनके आश्रम पर लोकल चुनावो को प्रभावित करने के आरोप लगे। उन्हे बारह दिनो की हिरासत के बाद देश छोडने के लिये कहा गया। अनेक यूरोपीय देशो ने उन्हे शरण देने से इनकार कर दिया। रजनीश को समाज के सामान्य व्यस्था के विपरीत चलने वाले के रूप मे देखा गया। समाजिक संस्थाओ के चिर परिचित ढांचे का विरोध करने वाले के रूप मे भी।
किन्तु ओशो के प्रवचनो मे भारतीय धर्म दर्शन के प्रति जबरदस्त झुकाव देखा जा सकता है। वे कृष्ण की बात करते है, गीता के प्रशसंक है। अष्टावक्र से प्रभावित है, मीरा के कायल है, कबीर को मानते है और बुद्ध तो उनके सर्वप्रिय ही है। बुद्ध के विचारो के प्रति वे नतमस्तक देखे जाते है। उन्होने ध्यान पर अत्यधिक जोर दिया है और ध्यान ही रजनीश के दर्शन का मूल आधार है। विवेकानन्द और रामकृष्ण के किस्से वह आदरपूर्वक बखान करते है।
किन्तु उनके विचारो मे आश्चर्जनक विरोधाभास दिखाई पडता है। एक ओर वे परम ब्रहृमचर्यवादी बुद्ध के परम समर्थक है तो वही दूसरी ओर जीवन के सभी रंगो के रसास्वादन के समर्थक भी। वर्जनाओ के वे विरोधी है तो वही ध्यान जैसी नियमबद्ध साधना के समर्थक भी। वह परमात्मा की बात भी करते है तो मोक्ष की भी। वह त्यागी पुरूषो बुद्ध और महावीर के विचारो का गुणगान करते नही थकते किन्तु स्वंय वैभवपूर्ण जीवनशैली से उन्हे तनिक परहेज नही। उनके व्याखानो और जीवन मे जबरदस्त विरोधाभास है। यही विरोधाभास रजनीश को विवादास्पद बना देता है। वैभवशाली जीवन शैली के कारण वह अपने ग्यान के पेशेवर विक्रेता नजर आते है। जैसे आधुनिक यू ट्यूबर। लेकिन ग्यान का व्यापार कौन नही कर रहा? क्या एक डाक्टर अपनी विशेषग्यता का मोल नही लेता? क्या इन्जीनियर, प्रोफेसर, एडवोकेट, एमबीए, कलाकार,संगीतकार, पेन्टर, निर्देशक, पायलट आदि सभी अपनी विशेषज्ञता का व्यापार नही कर रहे? दिहाडी मजदूर के अलावा सब अपने ग्यान का व्यापार ही तो कर रहे। एक प्रीस्ट, एक मौलवी, एक पुरोहित और एक न्यायाधीश भी इससे अलग नही। तो रजनीश ने भी यह किया, अपने ग्यान का व्यापार। उनके ऐसा करने को लेकर चर्चा हो सकती है। वो कहा पर सही थे कहा पर गलत विचारा जा सकता है। निसन्देह ओशो के उन्मुक्त विचारो का समर्थन नही किया जा सकता। लेकिन उनके सम्भाषणो मे उपयोगी बिन्दुओ को तलाशा जा सकता है। उनके सम्भाषणो मे ऐसे आख्यान दिखाई पडते है जिन्हे मोटिवेशनल कहा जा सकता है। अंहकार के विषय मे उनके आख्यान आश्चर्यजनक रूप से आखे खोलने वाले है। दुनिया के अनेक दर्शनो की जानकारी उनके लेखन से जुटाई जा सकती है।

( Professor Jaideep is teaching students in Pairing, HNB Garhwal University and writes extensively on important issues of regional and national significance.)

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