उत्तराखंड : शहादत और शौर्य की बेमिसाल परम्परा …। भारत माता की जय .,नमन्, अश्रुपूरित श्रद्धांजलि शहीद वीरेन्द्रसिंह

प्रमोद शाह

उत्तराखंड : शहादत और शौर्य की बेमिसाल परम्परा …।
उत्तराखंड अपनी शुद्ध हवा ,पानी के साथ जिस अन्य बात के लिए देश दुनिया में जाना जाता है..। वह है इस धरती के वीर रण वांकुरो की गौरवपूर्ण सैन्य परम्परा , उत्तराखंड में ब्रिटिश राज्य की स्थापना से पूर्व ही उत्तराखंड के सैनिक देश दुनिया में अपनी पहचान बना चुके थे। जिस कारण 1788 में हैदराबाद में कुमाऊं रेजिमेंट की स्थापना की गई थी ।
इधर गढ़वाल में बंगाल इन्फेंट्री के तहत सैनिक अपनी शौर्य गाथा लिख रहे थे , जिसे 1887 में गढ़वाल रेजीमेंट के रूप में अलग से भारतीय सेना ने रेखांकित किया।

यूं तो उत्तराखंड के सैनिकों के अदम्य साहस,शौर्य और शहादत से भरी सैकडों गाथाएं है ,लेकिन इन सभी गाथाओं में सबसे महत्वपूर्ण सामानता यह है, की किसी भी शहीद ने पीठ पर गोली नही खाई ।
यही कारण है की बि्टिश वीरता का श्रेष्ठ सैनिक सम्मान #विक्टोरियाक्रास दरबान सिंह नेगी को प्राप्त हुआ , जो किसी गैर ब्रिटिश को प्राप्त होने वाला पहला सर्वोच्च सैनिक सम्मान था।
शौर्य और शहादत की इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए गढ़वाल राईफल के ही गब्बर सिंह रावत को भी विक्टोरिया क्रॉस प्राप्त हुआ ..।
शौर्य, शहादत और अलंकरण की परम्परा का अनवरत सिलसिला आज भी जारी है, आजादी के बाद देश की सीमाओं की रक्षा में और युद्ध में करीब 26हजार भारतीय सैनिक शहीद हुए, उनमें उत्तराखंड का योगदान 20% से अधिक है, जबकि भारत की आबादी में हमारा जनसंख्या अनुपात मात्र दशमलव 8 प्रतिशत है।
बीता कारगिल की महत्वपूर्ण लड़ाई में देश में शहीद हुए कुल 527 सैनिकों से, 111 वीर सैनिक उत्तराखंड की इस वीर भूमि से शहीद हुए. जो अपने जनसंख्या अनुपात का 30 गुना है ।

कल जब मैं जनपद चमोली नारायण बगड़ के बमियाला गांव के 15वी गढवाल राईफल के पुंछ में शहीद हुए सैनिक नायक वीरेंद्र सिंह के घर की चढाई पैदल पार करते हुए ,पसीने -पसीने होकर सोच रहा था ,
की आंखिर इन दुर्गम पहाड़ों और जंगलों के बीच निवास करने वाले उत्तराखंडियो के भीतर राष्ट्र के लिए मर मिटने का यह जज्बा कहां से पैदा होता है ।
इस यक्ष प्रश्न का उत्तर मुझे सूझ नहीं रहा था.. देर रात शहीद के घर पहुंचा , वहां आग के चारों ओर ग्रामीण एकत्रित थे,वहां शोक और रूदन से अधिक गर्व की अनुभूति पसरी थी , ऐसे में जब वीरांगना हमें देखकर रोने लगी तो शाहीद के बहादुर पिता सुरेंद्र सिंह ने, वीरांगना को समझाते हुए कहा ,
“मेरा बेटा #अभिमन्यु है वह देश के लिए वीरगति को प्राप्त हुआ है ।यह हमारे लिए शोक का नहीं ,गर्व का विषय है. उसके बलिदान पर रुदन शहीद का अपमान है”।

इस दृढ और गंभीर आवाज को सुन में स्वयं कंपित हो गया आंखें नम हो गई , मुझे उत्तराखंड की अनुत्तरित बलिदानी परंपरा का एक ही क्षण में उत्तर मिल गया ।
मैं वीर शहीद वीरेंद्र सिंह और उनही के समान शहीद के पिता सुरेंद्र सिंह की दृढ़ता और राष्ट्र के प्रति समर्पण को नमन् करता हूं । वीरो के गांव बमियाला में 70 परिवारो में से 45 जवान आज भी भारतीय सेना में सेवारत हैं ।
जब तक ऐसी विरासत, ऐसी परवरिश हमारे पास है, देश की सीमाएं सुरक्षित सर्वथा सुरक्षित हैं ।
आज सुबह भी पूरा क्षेत्र शाहीद की अंतिम यात्रा में उमड़ पड़ा और एक मेला लग गया।सच है ,

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा…

भारत माता की जय .,नमन्, अश्रुपूरित श्रद्धांजलि शहीद वीरेन्द्रसिंह 💐💐

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