उत्तराखंड और हिमालय को सँभालने और सशक्त बनने का समय दीजिये . टिहरी गढ़वाल और रुद्रप्रयाग जिले सर्वाधिक भूसंख्लन घनत्व वाले क्षेत्र !
एक तरफ देश विदेश और राज्य के सीस्मोलॉजिस्ट्स और जिओलोजिस्ट्स उत्तराखंड में भविष्य में भयंकर भूकंप आने की चेतावनी दे रहे हैं और जोशीमठ के भूधंसाव और लगभग एक हज़ार घरों और वहां की सड़कों में दरारें आ चुकी हैं वही दूसरी तरफ इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन द्वारा जारी डाटा जो की नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर के हवाले से कंडक्ट की गयी स्टडी पर आधारित है – उत्तराखंड के दो जिले रूद्र प्रयाग और टेहरी गढ़वाल पूरे भारत में सबसे ज्यादा भूसंख्लन घनत्व वाले क्षेत्र हैं जो कभी भी, खासकर प्राकृतिक आपदा के समय सबसे अधिक प्रभावित होंगे और जहाँ भयंकर जानमाल का नुक्सान होने की समम्भावनाएँ बनेंगी. हिंदुस्तान टाइम्स के एडिटोरियल के मुताबिक नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर द्वारा कंडक्ट की गयी स्टडी के मुताबिक भारत के १० अत्यधिक भूसंख्लन घनत्व वाले दस जिलों में चार केरला के बाढ़ रिस्क जिले हैं , दो जम्मू कश्मीर और दो जिले सिक्किम के हैं लेकिन उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल और रुद्रप्रयाग के दो जिले इनमे सबसे अधिक लैंडस्लाइड डेंसिटी प्रोन हैं. सम्पादकीय के मुताबिक हिमालय और वेस्टर्न घाट के उन क्षेत्रों जहाँ तथाकथित विकास योजनाओं के नाम पर बेहिसाब गैरनियन्त्रित परियोजनाओं बनायीं गयीं और वहां के पहले से ही कमजोर ( फ्रेजाइल ) परिस्थितिकी तंत्र को नष्ट कर दिया वे क्षेत्र सर्वाधिक भूसंख्लन प्रभावित श्रेणी में अस गए हैं और प्राकृतिक आपदा के मध्यनजर सर्वाधिक नुक्सान झेलने को बाध्य हैं. ये स्टडी जहाँ एक तरफ तेजी से बढ़ रहे इन पर्यावर्णीय खतरों के मद्देनज़र ये हिदायत देती हैं की सरकारें और प्रसाशन फौरी तौर पर इन बढ़ते खतरों को शीग्रतिशीघ्र समझे और पर्यावरण संरक्षण और पस्तिस्थितिकी तंत्र को चुस्त दुरुस्त बनाने और सुधारने की दिशा में कारगर कदम उठायें और साथ साथ जो इन प्रदेशों में नित्य नयी परियोजनाएं परवान चढ़ रही हैं उनका बारीकी से अध्यन हो और यदि वे पर्यावरण संरक्षण और मानव जीवन की रक्षार्थ सुरक्षित नहीं हैं तो उन्हें फौरी तौर पर बंद किया जाय. रिपोर्ट के मुताबिक जिन राज्यों और क्षेत्रों में लाखों लाख लोग निवास करते हैं और जहाँ हर महीने और वर्ष लाखों लाख लोग तीर्थ यात्रा और पर्यटन पर निकलते हैं वहां आपदा लचीलेपन की सम्भावनाये अधिक होती हैं और यकायक प्राकृतिक आपदा आने की शक्ल में जान माल की क्षति की सम्भावनाये भी अधिक रहती हैं. उत्तराखंड के २०१३ जून की भयंकर प्राकृतिक आपदा इसका स्पष्ट प्रमाण है जिसमे करीब दस हज़ार लोग जिसमे ज्यादा तीर्थ यात्री थे , ने अपनी बैश कीमती जाने गंवाई . उसके बाद ऋषि धौली गंगा की आपदा ने भी करीब २०० लोगों की जाने लील ली.१९९२ के उत्तरकाशी भूकम्प जिसमे लगभग ७५० जानें गयी के स्कार आज भी जिन्दा हैं. ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरे से हमें आगाह हो जाना चाहिए. सरकारों को मौजूदा समय में सभी बढ़ी तथाकथित पर्यावरण विरोधी परियोजनाओं ख़ास कर बड़ी विद्युत परियोजनाओं , तथाकथित विकास योजनाओं को तात्कालिक प्रभाव से उनपर लगाम लगाना होगा खासकर हिमालयी राज्यों में और सुरक्षा दृष्टि से किये जाने वाले अतिआवश्यक विकास के अलावा प्रारम्भ की गयी अन्य व्यापक योजनाओं पर विराम लगाना होगा. हमें पहाड़ के नाजुक पर्यावरण वहां के पसरिस्थितिकी तंत्र और पहाड़ों को समझना होगा उन्हें संभालने , ठीक होने और सशक्त बनने के अवसर देने होंगे. उत्तराखंड हिमालय तभी सुरक्षित रहेंगे जब उनसे व्यापक स्तर पर छेड़छाड़ बंद होंगी .