इतने राजनैतिक थपेड़ों के बावजूद आज भी दम ख़म रखते हैं हरीश रावत
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का भी जवाब नहीं . ७५ वर्ष की उम्र में कई चुनाव जीतने और हारने व् कांग्रेस की इस असेंबली चुनाव में करारी हार के बाद भी उनके हौंसले बुलंद हैं. उनमे ग़ज़ब की हिम्मत और आत्मविश्वास है और आज भी वे पूरी सक्रियता ग़ज़ब की मुस्कराहट साथ लिए न सिर्फ कई दिनों से चम्पावत विधानसभा क्षेत्र में मुख्यमंत्री के विरुद्ध और कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में जोर शोर से प्रचार कर रहे हैं बल्कि हमेशा की तरह पहाड़ी व्यंजनों तो प्रोत्साहन देने के साथ साथ अपने समर्थकों और नेताओं को ये भी कह रहे हैं की यदि उन्हें वास्तव में सत्ता के नशे में मदमस्त भाजपा के लडू खाने वाले नेताओं का मज़बूती से मुकाबला करना है तो पहाड़ी फल काफल का अधिक से अफ्जिक सेवन करें.
अपनी फेसबुक पोस्ट में हरीश रावत ने लिखा है
आजकल #उत्तराखंड के 90 प्रतिशत राजनैतिक लोग चंपावत क्षेत्र में भ्रमण कर रहे हैं। कांग्रेस के लोगों को मेरी सलाह है कि मुड़ियानी, बनलेख, नरसिंह डांडा, फुंगरीमंच इसके आस-पास के क्षेत्रों में जो #काफल पाए जाते हैं, उसका अधिक से अधिक सेवन करें। ताकि कांग्रेस ज्यादा मजबूती के साथ सत्ता का लड्डू खाने वाले भाजपाइयों का मुकाबला कर सके। यहां का काफल बहुत ही स्वास्थ्यवर्धक है।
काफल से भरा बर्तन सर पर लिए राज्य सभा सांसद प्रदीप टम्टा और विपक्ष के नेता यशपाल आर्य के साथ अपनी फोटो और वीडियो खिंचवाते हुए पुब्लिसिटी बटोरने में अत्यंत माहिर और सोशल मीडिया में सक्रीय वरिष्ठ कांग्रेस नेता हरीश रावत राजनीती में अत्यंत सक्रिय रहते हैं. पिछले तीन चाट दश्कों से ये लेखक उन्हें सदैव जनसवालों और कांग्रेस की राजनीती दिन सक्रीय देकते आया है . शायद ही ऐसा कोई दिन होगा उनके केंद्र में सांसद मंत्री या राज्य का मुख्यमंत्री या फिर ओप्पोसिशन में जब हरीश रावत सक्रीय न रहे हों . उनमे निसंदेह कई सकारात्मक और नकारात्मक पहलु होने के बावजुद वे मुस्काते हुए अपने विरोधियों को भी चित कर देते है. यही वजह है कई महत्त्वकांक्षी कांग्रेसी भाजपा में चले गए और दो चार वापस भी आ गए. बहरहाल अपनी पूरी कोशिशों के बावजूद उत्तराखंड में दो चुनाव और नैनीताल से संसदीय चुनाव और फिर निरंतर २०१७ में २ और २०१९ में लालकुआं से पराजित होने के बाद भी हरीश रावत पुरे दम खम के साथ लगे हुए हैं . इन दिनों वे चम्पावत में जुटे हैं और काफल का मजा ले रहे हैं.
हरीश रावत ने अपनी राजनैतिक पारी छात्र जीवन से शुरू की . जवानी के दिनों में वे अत्यंत एक्टिव थे , वे बाद में ब्लाक प्रमुख भी बने , लखनऊ से कालेज की पढ़ाई की. उनके विषय में एक किस्सा बहुत मशहूर है उनके डेशिंग युथ लीडरशिप के जो उनके उस वक्त के मित्र या जानकार बताते हैं की किस तरह भरी सभा में उन्होंने उस समय किसी वरिष्ठ अधिकारी को तमाचा जड़ दिया था और फिर पुलिस बहुत ही सरगर्मी से उनकी तलाश में रही . खैर ये जवानी के युथ लीडर के जनता के इश्यूज पर उनके जोश की बात है . कहा जाता है की उन्हें तादेन प्रधानमंत्री बहुत चाहती थी और तब के युथ लीडर संजय और इंदिरा जी ने उन्हें राजनीती में प्रोत्साहित किया , वे कई मर्तबा सांसद रहे , राष्ट्रीय वाईस चेयरमेन कांग्रेस सेवादल, दो मर्तबा केंद्र में मंत्री और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री , राष्ट्रीय महासचिव और असम व् पंजाब के इंचार्ज , आब्जर्वर व् उत्तराखंड के अध्यक्ष इलेक्शन केम्पेन समिति .
गौर तालाब है की जब राज्य बनने के बाद कांग्रेस उत्तराखंड के चुनाव में बहुमत में आयी , तब हरीश रावत प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे और उनके योगदान के चलते ही कांग्रेस सत्ता में आयी थी , उनके विरोधियों ने उनके खिलाफ जबरदस्त जाल बुना और नारायण दत्त तिवारी को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद पर काबिज किया था. तब कांग्रेस में ख़ासा बवाल मचा था .
कौन नहीं जानता हरीश रावत की दिल्ली और उत्तराखंड की पहाड़ी व्यंजनों फलों और गुड़ चाय पार्टियों को जो वे हमेशा होस्ट करते रहे हैं ?
हरीश रावत जी का ये दम ख़म सब बेशर्मी की पराकाष्ठा है. उन्हें पहाड़ के लोगों का ध्यान नहीं है. उनका एक ही धर्म है खाना पीना और लोगों को बेवक़ूफ़ बना कर एश करना. थोड़ा मोटी खाल के बने है.