आकाशवाणी पर खनकती आवाज के अप्रतिम जादूगर समाचार वाचक पंडित देवकी नंदन पांडे की आज पुण्यतिथि है : Naman
ARUN JOSHI
आकाशवाणी पर खनकती आवाज के अप्रतिम जादूगर समाचार वाचक पंडित देवकी नंदन पांडे की आज पुण्यतिथि है 1986-89 में मुझे भी उनका सानिध्य मिला । मैं आकाशवाणी के समाचार सेवा प्रभाग में सहायक समाचार संपादक के रूप में नियुक्त हुआ था।
कानपुर में पैदा हुए देवकीनंदन के पिता शिवदत्त पाण्डे , अपने क्षेत्र के जाने-माने डॉक्टर थे। बेहद रहम दिल और आधी रात को उठकर किसी भी मरीज़ के लिए मुफ़्त में इलाज करने को तत्पर।
मूलरूप से पाण्डे परिवार कुमाऊँ का था। शायद यही वजह है कि पाण्डे के स्वर में एक पहाड़ी ख़नक सुनाई देती थी। देवकीनंदन पाण्डे अपने स्कूली दिनों में कभी भी मेधावी छात्र नहीं रहे लेकिन वे कभी भी अपनी कक्षा में फेल नहीं हुए। घूमने-फिरने, नाटक करने और खेलकूद में उनकी गहन दिलचस्पी थी। पाठ्य पुस्तकें उन्हें कभी भी रास नहीं आईं किंतु नाटक, उपन्यास, कहानियॉं, जीवन चरित्र और इतिहास की पुस्तकें उन्हें हमेशा से आकर्षित करती थीं। उनकी आरंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में हुई।
देवकीनंदन पाण्डे के पिता पुस्तकों के अनन्य प्रेमी थे। इस वजह से घर में किताबों का अच्छा ख़ासा संकलन था जिससे देवकीनंदन को पठन-पाठन में दिलचस्पी होने लगी।
कॉलेज के ज़माने में अंग्रेज़ी अध्यापक विशंभर दत्त भट्ट देवकीनंदन पाण्डे पर अगाध स्नेह रखते थे। उन्होंने पहले-पहल देवकीनंदन की आवाज़ की विशिष्टता को पहचाना और सराहा। उन्होंने अपने इस छात्र को उसकी प्रतिभा का आभास करवाया। भट्टजी देवकीनंदन को रंगमंच के लिये प्रोत्साहित करने लगे। अल्मोड़ा में देवकीनंदन ने कई दर्ज़न नाटकों में हिस्सा लिया इससे उनके आत्मविश्वास में मज़बूती आई।
40 के दशक में अल्मोड़ा जैसी छोटी जगह में केवल दो रेडियो थे। एक स्कूल के अध्यापक जोशीजी के घर और दूसरा एक व्यापारी शाहजी के घर। युवा देवकीनंदन पाण्डे को दूसरे महायुद्ध के समाचारों को सुनकर बहुत रोमांच होता। वे प्रतिदिन सारा काम छोड़कर समाचार सुनने जाते। उन दिनों जर्मनी रेडियो के दो प्रसारकों लॉर्ड हो हो और डॉ. फ़ारूक़ी का बड़ा नाम था। दोनों लाजवाब प्रसारणकर्ता थे। उनकी आवाज़ हमेशा देवकीनंदन पाण्डे के दिलो-दिमाग़ में छाई रही। सन् 1941 में बी.ए. करने के लिए देवकीनंदन इलाहाबाद चले आए जहाँ का इलाहाबाद विश्वविद्यालय पूरे देश में विख्यात था।
भारत के आज़ाद होते ही आकाशवाणी पर समाचार बुलेटिनों का सिलसिला प्रारंभ हुआ। दिल्ली स्टेशन पर अच्छी आवाज़ें ढूंढ़ने की पहल हुई। देवकीनंदन पाण्डे ने डिस्क पर अपनी आवाज़ रिकार्ड करके भेजी। फ़रवरी, 1948 में समाचार वाचकों का चयन किया गया। उम्मीदवारों की संख्या थी तीन हज़ार और बिना शक देवकीनंदन पाण्डे का नाम सबसे ऊपर था। आकाशवाणी लखनऊ पर मिले उर्दू के अनुभव ने उन्हें हमेशा स्पष्ट समाचार वाचन में लाभ दिया। देवकीनंदन पाण्डे मानते थे कि निश्चित रूप से देश की भाषा हिन्दी है लेकिन वाचिक परंपरा में उर्दू के शब्दों के परहेज़ नहीं किया जाना चाहिए।
देवकीनंदन पाण्डे समाचार प्रसारण के समय घटनाक्रम से अपने आपको एकाकार कर लेते थे और यही वजह थी, उनके पढ़ने का अंदाज़ करोड़ों श्रोताओं के दिल को छू जाता था। उनकी आवाज़ में एक जादुई स्पर्श था। कभी-कभी तो ऐसा लगता था कि पाण्डेजी के स्वर से रेडियो सेट थर्राने लगा है। आज जब टीवी चैनल्स की बाढ़ है और एफ़एम रेडियो स्टेशंस अपने अपने वाचाल प्रसारणों से जीवन को अतिक्रमित कर रहे हैं ऐसे में देवकीनंदन पाण्डे का स्मरण एक रूहानी एहसास से गुज़रना है।
अंतरराष्ट्रीय प्रसारण संस्था से अपने यहाँ काम करने का ऑफ़र मिला लेकिन देश प्रेम ने उन्हें ऐसा करने से रोका। देवकीनंदन पाण्डे को अपनी शख़्सियत की लोकप्रियता का अंदाज़ उस दिन लगा जब श्रीमती इंदिरा गाँधी ने एक बार आकाशवाणी के स्टॉफ़ आर्टिस्टों को उनकी समस्या सुनने के लिये अपने निवास पर आमंत्रित किया। श्रीमती गाँधी से जब देवकीनंदन पाण्डे का परिचय करवाया गया तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि “अच्छा तो आप हैं हमारे देश की न्यूज़ वॉइस’। पूर्व सूचना प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल तो एक बार देवकीनंदन पाण्डे का नाम सुनकर उनसे गले लिपट गए थे। नए समाचार वाचकों के बारे में पाण्डेजी का कहना था जो कुछ करो श्रद्धा, ईमानदारी और मेहनत से करो। हमेशा चाक-चौबन्द और समसामयिक घटनाक्रम की जानकारी रखो। जितना ज़्यादा सुनोगे और पढ़ोगे उतना अच्छा बोल सकोगे। किसी शैली की नकल कभी मत करो। कोई ग़लती बताए तो उसे सर झुकाकर स्वीकार करो और बताने वाले के प्रति अनुगृह का भाव रखो। निर्दोष और सोच समझकर पढ़ने की आदत डालो; आत्मविश्वास आता जाएगा और पहचान बनती जाएगी।
आपका निधन 17 जून, 2001 को हुआ था।
( साभार )