जहां मूल ही न रहे वहां साहित्य, कला, संस्कृति कैसे सुरक्षित रहे? आज सबसे अहम प्रश्न यही है ?

नरेंद्र कठैत , साहित्यकार , लेखक, कवि एक समय हमारा नारा था -‘कौंणी कंडाळी खायेंगे ,उत्तराखंड बनाएंगे।’ अब हमारे आगे…

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