रामलीला तब और अब

अमिताभ श्रीवास्तव
एक समय था जब दिल्ली में रामलीला से हफ्तों पहले अखबारों में सबसे ऊंचे रावण के पुतलों की चर्चा होती थी।
आज चर्चा इस बात की हो रही है कि मंदोदरी के रोल में पूनम पांडे आयेंगी या नहीं।
दिल्ली में सबसे अच्छी रामलीला भारतीय कला केंद्र की होती आयी है जो दो घंटे में नृत्य और संगीत के माध्यम से पूरी रामायण दिखा देते हैं लेकिन चर्चा सबसे अधिक लालकिले पर होने वाली तीन रामलीलाओं की होती है।
इन में बालीवुड के नामी कलाकार और देश के नेता दोनों आने में अपनी शान समझते हैं।
मेरा बेटा जो आज खुद पापा बन गया है आज भी लव कुश रामलीला को याद करता है जहां वो मेरे साथ जाता था क्योंकि आयोजक बच्चों को पटाखों के बड़े बड़े पैकेट पकड़ा देते थे।
ये अलग बात है कि बाद में वह ऐसे स्कूल में चला गया जहां ‘से नो टू क्रैकर्स’ की ऐसी धुन पकड़ी जो आजतक उसके साथ है।
अब तो पटाखों को लेकर इतनी गर्मागर्म बहस होने लगी है कि सर्वोच्च न्यायालय भी फैसला नहीं ले पाता।
एक समय था जब रामलीला मतलब पूरा मेला होता था जिसका पूरे साल इंतजार रहता था।
लेकिन समय के साथ रामलीलाओं में जाने का उत्साह लोगों में कम होने लगा क्योंकि बच्चे भी ऐसी के बिना चल नहीं पाते।
पर बड़े पर्दे पर आने वाली रामायण का लोग उतना ही इंतजार करते हैं।
चाहे उस फिल्म का राम रनबीर कपूर हो जिसकी आखरी फिल्म ‘एनिमल’ ने हिंसा और महिलाओं के प्रति अपशब्दों के कीर्तिमान स्थापित किए थे।
हाल में टीवी पर आशुतोष राणा को सुन रहा था जिसमें वो कह रहे थे कि जो मजा रावण के किरदार में है वो राम के रोल में नहीं है।
“एक विलेन आपके अंदर की अच्छाइयों को बाहर लाने में बहुत सहायक होता है”।
वो तो हम देख रहे हैं।
पता नहीं किसी ने इस रावण भक्त पर ‘अर्बन नक्सल’ होने का केस क्यों नहीं किया।
या शायद यह मुद्दा तमिलनाडु के चुनावों में काम आये।