उपेक्षित पहाड़ की सड़के और कांडी मार्ग के हसीन सपने

Jageshwar, Writer:
आज कल कोटद्वार शहर के भोले-भाले व्यापारी और जागरूक जन कंडी मार्ग की लड़ाई लड़ रहे हैं. मेरी उनको हार्दिक शुभकामनाएं. इसमे हम पाड़ वालों का भी भला है. हाँ जी, कोटद्वार के लोग हमे पाड़ वाला ही कहते हैं. मैंने आप को भोला क्यों कहा? इस लिए चुनाव आते ही तुम लोग अरसे की कंडी लेकर इन नेताओं के पीछे चल पड़ते हो. अरसे नेता खा जाते हैं. फिर तुम्हारा बोझ कम हो जाता है. सर पे कंडी ही रह जाती है।सड़क बने ठेंगा.. अरे भोलों तुम पर ही आस है. दुगड्डा कोटद्वार की सड़क के लिए भी लड़ लो. पाड़ के लोग तो और भी नकारा हैं. तुम्हें तो चिंता सिर्फ डेरादूण की है. क्या करोगे वहाँ जा कर एक फायदा गिना दो. तुम्हारे पास तो अपणा अच्छा-खासा बाजार था. कभी तुम चिल्ला कर पाड़ का ट्रक लोड करते थे. खूब कबाड़ भेजा तुमने. अब पहाड़ी ढंग का खा-पी रहे हैं. अब ऑन लाइन मांगा रहे हैं. तुम्हें दीख नहीं रहा पिछले चार महीने से पहाड़ का खरीददार कुटदार बाजार नहीं पहुँच पा रहा है. बेचारा प्रसाशन कर तो कुछ नहीं पा रहा है. हाँ advisory दे कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर खुद को भी आपदा कि जिल्लत से बचा रहा है. . घर से बाहर न निकले! मर जाओगे तो..? हम से कुछ न होगा एक कफ़न डालने लायक नहीं हैं हम
उपरि लिखित पंक्तियों में कुछ ऊँच-नीच हुई हो तो माफ़ करना लेकिन फिलहाल मैं एक ऐसी अभिशप्त सड़क के बारे में आपसे बात करना चाहता हूं. जो युगों से उपेक्षित है. सड़क के क्षेत्र में हमारे देश क्या गरीब और पिछड़े मुल्कों में भी एक बहुत क्रांति आ चुकी है.. अपने ही देश में प्रतिदिन लगभग 30-35 किलोमीटर हाई वे का निर्माण रोजाना हो रहा है.. सब जगह कृपा बरस रही है कहीं बाबा बरसा रहे हैं कहीं नेता… हम पर तो पंच प्रधानों की भी कृपा नहीं बरस रही है लेकिन दुर्भाग्य हमारे इस गढ़वाल के प्रवेश द्वार कोटद्वार दुगड्डा के बीच पंद्रह किलो मीटर के टुकड़े पर सरकार की कृपा आज तक नहीं बरसी. इस सड़क पर दो बूंद पानी भी बरस जाए तो बहुत बड़ी आपदा खड़ी हो जाती है. हर वर्ष जाने जा रही हैं. कहां गए हमारे नेता पंच प्रधान? कहां गए पत्रकार जो ढाई आखर सच्चाई के इस सड़क पर भी नहीं लिखते? लगता है किसी ने उनके हाथ बांध रखे हैं. कहां गए हमारे आरटी आई एक्टिविस्ट? जो सड़क पर हुई आज तक हुई लीपा-पोती का व्योरा उजागर न कर पाए.. इस सड़क के पीछे आम जन की मवाशी तो घाम ही लग रही है लेकिन बहुतों ने अपनी मावशी ही नहीं बनाई बल्कि आन औलाद नाती पोतों के लिए भी बहुत कुछ छोड़ गए हैं. मेरा पुनर्जन्म पर विश्वास है साथ ही पूर्व जन्मों का फल भोगने पड़ते हैं शायद हो सकता है वे महापुरुष पुनर्जन्म लेकर इन्हीं रास्तों पर ड्राइवर कलेंडर पेसेन्जर बन धक्का खा रहे हों . सड़क आज तक जस की तस है. सड़क मतलब संपर्क व्यापार और मूलभूत सुविधाओं का संबंध संबल. इस सिलसिले में दुगड्डा और कोटद्वार की का संपर्क मार्ग सबसे बदनाम है और यह पहाड़ों को मैदान से जोड़ने वाला महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मार्ग है पुराने समय में इस सड़क का निर्माण 1907 में भारतीय सेना ने किया था तब से अब तक इससे सटी नदी में न जाने कितना पानी बह गया होगा. अब तो यह सड़क कथित मुन्नी और शीला से भी ज्यादा बदनाम हो चुकी है. हमारे सारे पहाड़ों की सड़क लगभग दुरुस्त रहती है. यह सड़क आसमान से दूर-दो बूंद पानी पड़ने पर भी अवरुद्ध हो जाती है इस पर कभी भी सरकार ने संज्ञान नहीं लिया. ना ही उसके पास उसके निर्माण की कोई योजना है. चर्चाएं बचपन से सुनते आए है इसका चौड़ीकरण करके इसको विकसित किया जाएगा कोई कहता सुरंग बनेगी, कोई एलिवेटेड रोड की बात करता है..लेकिन कई पीढ़ीयां गुजर गई अभी तक कुछ भी तो नहीं हुआ. इस बरसात में जुलाई माह में गत वर्ष बड़ा सा पत्थर सड़क पर गिरा ऐसे जमा भले मानस डीएम साबतक भी लाव लस्कर ले कर पत्थर को मनाने आ पहुंचे. पत्थर इतना ढीठ था. घूँघट डाल कर अड़ गया. डीएम साथ उसका कुछ नहीं बिगाड़ सके. लौट पड़े. ढीठ सड़क अपने ही समय में खुली. प्रशासन साल भर सोया रहता है. आपदा में बेचारे साहसी अधिकारी को इस आपदा में धकेल देता है. वर्षों से न जाने कितने लोग जान मुट्ठी पर लेकर इस सड़क से आना-जाना कर रहे हैं सरकार है कि बड़ी आपदा का इंतजार कर रही है। स्थानीय पर्वतीय शहर दुगड्डा के लोग-बागों को आज भी अफसोस है ‘काश! अंग्रेज 5-10 साल और रुक गए होते तो हमारे शहर तक लैंसडाउन की तलहटी तक रेलवे लाइन होती. लेकिन क्या करें जब देश में अपनों का राज आया. हम बेगाने हो गए. आज भी सरकार के पास इस सड़क के उद्धार के लिए कोई योजना नहीं है पहाड़ दिनभर दिन कमजोर पड़ता जा रहा है और धँसता जा रहा है . साल भर कोई ट्रीटमेंट नहीं होता.. दो-चार पुस्तों के सिवाय. आज सड़क कम और डैन्जर जोन अधिक हैं. ऊपर का पहाड़ काफी कमजोर हो गया है। लेकिन बरसात खत्म हो चुकी है. चहुं ओर सुनपट्ट पड़ा है. सभी चिंतित लोग थकावट के कारण गहरी नींद सो चुके हैं .. सड़क निर्माण विभाग के कारिंदे भी! अब तो बरसात में दस माह बाद बरसेगी. हर तरफ सुख शांति के साथ प्रभु की कृपया बरस रही है। लेकिन आवश्यकता इस बात की है कि यहां पर आधुनिक तकनीक से सड़क का निर्माण किया जाए .. कर्णप्रयाग के दुरूह पर्वतों में ट्रेन जा सकती है हमारे सीधे सादे पर्वतों से क्यों नहीं.
Pregnant Woman in acute pain helped by the police stuck in sliding zone