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India

भारत में अगले साल लोकसभा एवं विधान सभा सीटों के परिसीमन की तैयारियां हो रही हैं

भारत में अगले साल लोकसभा एवं विधान सभा सीटों के परिसीमन की तैयारियां हो रही हैं। संपूर्ण दक्षिण भारत, पश्चिम बंगाल, ओडिसा, पंजाब जैसे गैर हिंदी भाषी राज्य इसके विरोध में लामबंद हो चुके हैं। कारण भाषा का कम, राज्यों में जनसंख्या का कम होना जिस कारण उन राज्यों का भविष्य में लोकसभा साथ ही अप्रत्यक्ष रूप से राज्य सभा में सीटों का कम हो जाने का भय है जो सही प्रतीत होता है।

ऐसे में मुझे नोबल पुरस्कार विजेता स्वीडिश अर्थशास्त्री गुन्नार मृडल की लिखी मशहूर पुस्तक, ” Asian Drama ” की याद आती है। मैंने यह किताब 1980- 81 में British Council Library ( तब रफी मार्ग में थी, अब Barakhambha Rd मे है ) से Issue कराकर पढ़ी थी। इसमें Gunnar Mridal ने सन् 60 के दशक के अंतिम वर्षों में भारत में रहकर और घूम घूम कर जो अनुभव किया वो यूँ है —-
” भारत तब तक प्रगति नहीं कर पायेगा जब तक इस देश में समान जनसंख्या वाले 60 राज्य नहीं बनाये जायेंगे। छोटे छोटे राज्य प्रशासनिक रूप से सहज भी होंगे और शिक्षा, उद्योग आदि भी क्षेत्र की ecology के अनुसार स्थापित किये जा सकेंगे ” ।

आज संपूर्ण दक्षिण भारत क्यों डरा हुआ है, क्योंकि उनको लगता हैं कि परिसीमन के बाद उनकी लोकसभा में भागीदारी और भी कम हो जायेगी जब कि उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश आदि में सीटों की संख्या इतनी अधिक हो जायेगी कि देश में असमानता होगी। जब कि दक्षिण भारत के राज्यों में प्रति व्यक्ति आय उत्तर भारत से अधिक है।

मेरा सुझाव —— सबसे पहले बड़े राज्यों को Accessible अर्थात प्रत्येक नागरिक के लिए पहुँच के दायरे में लाने के लिए दो- तीन राज्यों में बांटना जरूरत हो चुकी है जैसे उत्तर प्रदेश को कम से कम 4 राज्यों में, बिहार 2, मध्य प्रदेश 3, राजस्थान 2 , महाराष्ट्र 3, बंगाल 2 या 3 उड़ीसा 2 , कर्नाटक 2 राज्यों में विभाजित करना चाहिए ताकि प्रत्येक राज्य से आनुपातिक रूप से संसद में प्रतिनिधित्व हो।

हमारे सामने विश्व के उन सभी विकसित एवं शिक्षित देशों के उदहारण हैं जहाँ लोकसभा में 3 या 4 लाख मतदाता वाली सीट हैं बल्कि इनसे भी कम , बावजूद इसके उन देशों ने हर क्षेत्र में तरक्की की है।
अमेरिका की आबादी भारत की तुलना में आधी भी नहीं है फिर भी वहाँ 50 राज्य हैं जबकि भारत में 28 पूर्ण राज्य और 8 झुंझुना राज्य अर्थात UT जो केंद्र की बैशाखी पर निर्भर हैं।

इसी प्रकरण को आगे भी लिखता रहूँगा। कृपया अपने सुझाव अवश्य दीजिये।

हरीश अवस्थी।।

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