उत्तराखंड : संसदीय मंत्री का असंसदीय भाषण

पार्थसारथि थपलियाल
राष्ट्रीय संयोजक, भारतीय संस्कृति सम्मान अभियान।
उत्तराखंड भारत का गौरव बढ़ाने वाला राज्य है। गंगा, यमुना नदी तंत्र, सेना में उत्तराखंड की स्थिति, साहित्य, संगीत, कला, ज्योतिष और आयुर्वेद में भी यह प्रदेश अग्रणीय रहा है। राजनीति और प्रशासन में उत्तराखंड के राष्ट्रभक्तों की कहानियां जग प्रसिद्ध हैं। उत्तराखंड में गढ़वाल और कुमाऊं दो खंड हैं। कुमाऊं रेजिमेंट और गढ़वाल रायफल बड़ी प्रतिष्ठित फौजें इसी भूभाग से हैं। प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में उत्तराखंड के जांबाजों की कहानियां पूरी दुनिया में सैन्य अकादमियों में सुनाई जाती है। तीनबार विक्टोरिया क्रॉस पाने वाली फौज आज भी अपने शौर्य और पराक्रम का स्वाभिमान पूर्वक गौरव करती है। प्रथम सी डी एस जनरल विपिन रावत पहाड़ के गौरव रहे हैं। अनकही, अनसुनी गाथाओं के सिरमौर, भारत के रक्षा सलाहकार अजीत डोभाल वह नाम है जो भारत का गौरव है, इसी उत्तराखंड की संतान हैं। लगभग 50 वर्षों तक अलग पर्वतीय राज्य बनने के संघर्ष की कहानी उत्तराखंड के प्रत्येक नागरिक को पढ़नी चाहिए।
यह संक्षिप्त सा विवरण इसलिए दिया ताकि उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल को भान रहे कि डोईवाला में रहने मात्र से कोई पहाड़ी नहीं हो जाता। पहाड़ी होने के गंगा जैसी पवित्रता और निर्मलता और हिमालय जैसा ऊंचा मन होना आवश्यक है। प्रेमचंद अग्रवाल और उनके विवादों का चोली दामन का साथ है। इस बार विधान सभा में संसदीय मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल जो ऋषिकेश से विधायक हैं, उन्होंने पहाड़ी लोगों को वह गाली दी जिसे पहाड़ी लोग प्रतिष्ठा हनन जैसे देख रहे हैं। क्या प्रेमचंद अग्रवाल पहाड़ी लोगों का जीजा है। क्या उत्तराखंड सरकार ने उन्हें इस बात के लिए मुकर्रर किया हुआ है कि पहाड़ वालों को प्रमाण पत्र बांटे कि कौन राजस्थान से आया और कौन मध्य प्रदेश से। उत्तराखंड सरकार का कैबिनेट मंत्री साले पहाड़ी.. निरादरपूर्ण भाव के साथ अपमानित करे यह उत्तराखंड की सरकार का उत्तराखंड के सम्मान का निरादर करना है।
उत्तराखंड की स्थापना भाषा और संस्कृति विशेष के कारण हुई थी। उत्तराखंड से लगे कुछ मैदानी भाग भी उत्तराखंड में हैं। गढ़वाल राजशाही के काल में सिरमौर, अंबाला सहारनपुर भी गढ़वाल राज्य के भाग रहे हैं। पहाड़ वालों ने पहाड़ी देसी (मैदानी) का प्रश्न कभी बढ़ाया नहीं। लेकिन इस बात को तो मानना ही होगा कि उत्तराखंड का अधिकतम भू भाग 86.07 प्रतिशत पहाड़ी है, 13.93% मैदानी। उत्तराखंड के पर्वत वासियों को नफरत भरे अंदाज में “साले पहाड़ी” असहनीय है। इस पहाड़ ने देवी देवताओं से तीर्थ यात्रियों और अपने धर्म की रक्षा के लिए उत्तराखंड को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले कर्मठ लोगों को अपनाया। यही नहीं उत्तराखंड से बाह्य राज्यों से आए लोगों को राजनीति के माध्यम से मंत्री पद तक पहुंचाया। भाजपा के इस मंत्री को चार बार विधायक बनाने में पहाड़ी लोगों का योगदान रहा है। इस दोहरे चरित्र के आदमी की हरकतों को देखिए एक तरफ यह व्यक्ति पहाड़ियों के प्रति नफरत रखता है दूसरी तरफ कौड़ियाला (नरेंद्र नगर) में इन महाशय का होटल जंगल के बीच में बन रहा है। दिखावे के लिए होटल का मालिक बेटा या अन्य संबंधी हो सकता है लेकिन इस सब के पीछे उस व्यक्ति का हाथ है जो संविधान की सत्य और निष्ठा की शपथ लेकर मंत्री बना है। क्या ये महाशय वन अधिनियम से ऊपर हैं। वन्य क्षेत्र में इस नफ़रती व्यक्ति को होटल बनाने की अनुमति कैसे मिली? क्या नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने इस जंगल में होटल बनाने की अनुमति दे दी? इस प्रकरण की जांच होनी चाहिए, जहां लोकहित के मामले हैं उन्हें तो एन जी टी ने अनुमति नहीं दी फिर प्रेम चंद अग्रवाल में ऐसी क्या खूबी है कि वे वन क्षेत्र में होटल बना रहे हैं। क्षेत्र की जनता में यह बात भी चर्चा का विषय है कि प्रेमचंद अग्रवाल का एक रिजॉर्ट यमकेश्वर ब्लॉक में भी बन चुका है। आखिर इस प्रकार की व्यावसायिक गतिविधियों के लिए प्रेमचंद अग्रवाल के पास इतना धन कहां से आता है? इस संशय को मिटाने के लिए इनके 25 साल की राजनीतिक यात्रा के दौरान अर्जित संपत्ति की जांच सीएजी द्वारा करवाई जानी चाहिए। अब माफी मांगने से कुछ नहीं होता। मंत्रीपद से हटाना पहली कार्यवाही होनी चाहिए। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पहाड़ के गौरव और सम्मान की रक्षा करनी चाहिए। साथ ही इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच करवानी चाहिए। विधानसभा उत्तराखंड में मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के प्रति उत्तराखंड के अंदर एवं बाहर पूरे समाज में आक्रोश है। इसका निदान उत्तराखंड की विधानसभा अध्यक्ष एवं प्रदेश के मुख्यमंत्री को ही करना चाहिye I