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ज्ञान के सागर हैं डॉ. कर्ण सिंह

VIVEK SHUKLA

डॉ. कर्ण सिंह जी से आज उनके न्याय मार्ग, चाणक्यपुरी के घर में मिलना बहुत सुखद और ज्ञानवर्धक रहा। उनसे मिलने का मकसद तो यह समझना था कि भारत के लिए गणतंत्र होने का मतलब क्या है। इस विषय पर तो वे बोले ही, बातचीत जम्मू- कश्मीर, उनके जम्मू-कश्मीर के सदरे रियासत, कैबिनेट मंत्री के लंबे कार्यकाल, धर्म, डिप्लोमेसी, नृत्य वगैरह विषयों पर भी होती रही। उन्होंने अपनी मां तारा देवी जी से जुड़ी कई जानकारियां दीं। वो चंबा के एक निर्धन परिवार से थीं। वो किसी राज परिवार से नहीं थीं।

डॉ. कर्ण सिंह जी बोल रहे थे और मैं सुन रहा था। उनके सामने बोलता भी क्या। वे ज्ञान के सागर और मैं एक मामूली सा अनाम अखबारनवीस। वे अपने ज्ञान और विद्वता से आतंकित नहीं करते। हिन्दी, उर्दू, संस्कृत, अंग्रेजी, डोगरी, पंजाबी के प्रकांड विद्वान हैं डॉ. कर्ण सिंह। वे बीच-बीच में इन भाषाओं को बोलने लगते हैं। आज के भारत में कितने लोग शेष बचे होंगे जिन्हें गांधी जी, पंडित नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आजाद नाम से जानते होंगे। उनके पास इन सबसे जुड़े तमाम संस्मरण हैं। बिरजू महाराज के बाद डॉ. कर्ण सिंह दूसरी शख्सियत हैं, जिनके मैंने इंटरव्यू से पहले और बाद में चरण स्पर्श किए।

डॉ. कर्ण सिंह से मिलना हिन्दुस्तान टाइम्स के सीनियर सहयोगी और दिग्गज पत्रकार अनिल आनंद जी के प्रयासों से संभव हुआ।

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