न्यायालय के संवैधानिक कर्तव्य व नागरिक सुनिश्चित न्याय: सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना
प्रो. नीलम महाजन सिंह
भारतीय न्याय प्रणाली में पिछले अनेक वर्षों से, आम जन में अविश्वास व भय उत्पन्न हुए हैं। एक न्यायपूर्ण कोर्ट आदेश पाने के लिए सालों साल लग जाते हैं और जो व्यक्ति कोर्ट-कचहरियों में फंसता है, उसका तो घर बार ही नष्ट हो जाता है। 11 नवंबर, 2024 को नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस संजीव खन्ना को महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शपथ ग्रहण कारवाई। सीजेआई संजीव खन्ना की प्राथमिकताओं में ट्रायल सुधार, मध्यस्थता को बढ़ावा देना शामिल हैं। जस्टिस संजीव खन्ना ने पहले दिन ही वकीलों के समर्थन के लिए धन्यवाद दिया। जस्टिस खन्ना, मॉडर्न स्कूल, सेंट स्टीफंस कॉलेज व दिल्ली लाॅ सेंटर से शिक्षित हैं। न्यायपालिका का मूल सिद्धांत सभी को समान व्यवहार, न्याय का उचित अवसर प्रदान करना व सभी को निष्पक्ष निर्णय देना है, चाहे उनकी स्थिति, धन या शक्ति कुछ भी हो। जस्टिस खन्ना ने कहा कि न्यायाधीशों का “संवैधानिक कर्तव्य है कि वे हमारे महान राष्ट्र के सभी नागरिकों तक न्याय को आसानी से पहुँचाना सुनिश्चित करें”। न्यायपालिका शासन प्रणाली का एक अभिन्न व स्वतंत्र हिस्सा है। न्यायालय को संवैधानिक संरक्षक, मौलिक अधिकारों के रक्षक व न्यायिक सेवा प्रदाता होने के महत्वपूर्ण कार्य को पूरा करने की ज़िम्मेदारी है। पूर्व मुख्य न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने कार्यालय में अंतिम कार्य दिवस कहा, “नागरिकों के अधिकारों के रक्षक व विवाद समाधानकर्ता” के रूप में न्यायपालिका की प्रतिबद्धता व ज़िम्मेदारी है। नागरिकों के लिए निर्णयों को समझने, योग्य बनाना, मध्यस्थता को बढ़ावा देना, आपराधिक मामले के प्रबंधन में केंद्रित सुधारों को अपनाना, मुक़दमे की अवधि को कम करना व मुकदमेबाज़ी को कम कठिन बनाने का प्रयास करना शीर्ष प्राथमिकताओं में शामिल होना चाहिए”। जस्टिस संजीव खन्ना का कार्यकाल छह महीने का है, परंतु उनसे कुछ क्रांतिकारी निर्णयओं की उम्मीद है। वे 13 मई, 2025 को सेवानिवृत्त होंगें। पहले ही दिन, मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने उपस्थित लोगों का अभिवादन किया व फिर न्यायालय में सूचीबद्ध 47 मामलों की सुनवाई की। कोर्ट नंबर 2 में जस्टिस खन्ना के चाचा, न्यायमूर्ति एच.आर. खन्ना का आदमकद चित्र है, जिन्होंने 1977 में आपातकाल के काले दिनों के दौरान ‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता’ की वकालत की थी, जिसके कारण उन्हें भारत के मुख्य न्यायाधीश का मौका खोना पड़ा। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के लिए आवश्यक है कि वे लंबित मामलों, मुकदमेबाज़ी को सस्ता व सुलभ बनाने तथा जटिल कानूनी प्रक्रियाओं को सरल बनाने की आवश्यकता को अपने कार्यकाल के दौरान; अपने सामने की प्रमुख चुनौतियों के रूप में पहचानें। ‘नागरिक-केंद्रित एजेंडा’ के दृष्टिकोण, जिसमें अदालतें सुलभ व उपयोगकर्ता के अनुकूल हों, आवश्यक है। सीजेआई ने कहा कि उनका लक्ष्य अपने कामकाज में एक आत्म-मूल्यांकन दृष्टिकोण अपनाना है, जो प्रतिक्रिया के प्रति ग्रहणशील व उत्तरदायी हो। संजीव खन्ना को ‘कॉलेजियम प्रणाली’ व सुप्रीम कोर्ट में तत्काल रिक्तियां भरनी होंगीं। दो न्यायाधीश, न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय व सी.टी. रविकुमार, जनवरी 2025 में सेवानिवृत्त होंगें। सीजेआई खन्ना, को संसद में ‘धन-शोधन निवारण अधिनियम’ जैसे कानूनों में विवादास्पद संशोधनों को पारित करने के लिए सरकार द्वारा ‘धन विधेयक मार्ग’ का उपयोग करने जैसे मौलिक मुद्दों पर सुनवाई के लिए संविधान पीठों का गठन करना चाहिए। जस्टिस संजीव खन्ना के समक्ष महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश के मामले लंबित हैं। ‘रोस्टर के मास्टर’ के रूप में, सीजेआई खन्ना को न्यायालय की अलग-अलग पीठों को मामले आवंटित करने होंगें, जिनमें ज़मानत के लिए तत्काल याचिकाओं से संबंधित संवेदनशील मामले शामिल हैं। जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा, “हमारे महान राष्ट्र के सभी नागरिकों के लिए न्याय तक आसान पहुँच सुनिश्चित करना हमास संवैधानिक कर्तव्य है”। न्यायपालिका की प्रतिबद्धता व ज़िम्मेदारी, नागरिकों के अधिकारों के रक्षक व विवादों का समाधान करने वाले के रूप में होनी चाहिए।जस्टिस खन्ना अति संवेदनशील, कवि हृदय व्यक्तित्व के धनी हैं! उनकक वकालत में, संवैधानिक कानून प्रणाली, कराधान, मध्यस्थता, वाणिज्यिक कानून व पर्यावरण कानून से संबंधित मामलों में लंबा करियर रहा है। उनके कुछ एतिहासिक निर्णयों में: इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम), चुनावी बॉन्ड व जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने जैसे मामलों में निर्णय देने में महत्वपूर्ण भूमिका है। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने जुलाई 2024 को दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अंतरिम ज़मनत दी थी, जबकि वह ‘धन शोधन निवारण अधिनियम’ (Money Laundering Act); के तहत एक मामले में उलझे हुए थे, जिसमें उन्होंने कहा था कि इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं है कि केजरीवाल को गिरफ्तार करने की क्या आवश्यकता थी ?अप्रैल 2024 में लोकसभा चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के इस्तेमाल पर सवाल उठाने वाली सभी याचिकाओं को उन्होंने खारिज कर दिया था। उन्होंने स्पष्ट किया कि सभी वोटों का क्रॉस-वेरिफिकेशन या पेपर बैलेट पर वापस लौटना व्यवहार्य विकल्प नहीं थे। फरवरी 2024 में, न्यायमूर्ति खन्ना ने पांच न्यायाधीशों की पीठ के हिस्से के रूप में विवादास्पद चुनावी बांड योजना को दानदाताओं की पारदर्शिता और भ्रष्ट आचरण की संभावना के बारे में चिंताओं के कारण असंवैधानिक घोषित किया।जस्टिस संजीव पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा 2023 के ऐतिहासिक निर्णय में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को बरकरार रखा, जिसने जम्मू और कश्मीर को विशेषदर्जा दिया था। उनका दृढ़ मत था कि जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा छीनने से भारत के संघीय ढांचे के सिद्धांतों को कोई खतरा नहीं होगा। 2019 में एक प्रभावशाली निर्णय में, जिसने न्यायिक स्वतंत्रता और पारदर्शिता के सह-अस्तित्व की पुष्टि की, उन्होंने एक ऐसे फैसले में योगदान दिया, जिसमें कहा गया था कि भारत के मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत सूचनाओं के अधीन हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि सीजेआई के कार्यालय को आरटीआई अनुरोधों को पूरा करना चाहिए या नहीं, इसका निर्णय केस-दर-केस आधार पर निर्धारित किया जाना चाहिए। फैसले में, न्यायमूर्ति खन्ना ने अदालत के मुख्य लोक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) को यह आकलन करने की ज़िम्मेदारी सौंपी कि क्या सीजेआई के बारे में खुलासे व्यापक सार्वजनिक हित में हैं या गोपनीयता का उल्लंघन करते हैं। जस्टिस संजीव खन्ना का कार्यकाल संक्षिप्त तो है, परंतु उनसे देश के आम आदमी के संविधानिक अधिकारों व जनता को धरातल स्तर पर न्याय प्राप्ति की प्रतिबध्दता के कारण, अनेक महत्वपूर्ण आदेश अपेक्षित है. सभी भारतवासियों की और से सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य जस्टिस संजीव खन्ना को अभिवादन व शुभकामनाएं! ‘यतो धर्मः ततो जयः’ भारत के सर्वोच्च न्यायालय का ध्येय वाक्य है (इसका अर्थ है “जहाँ धर्म है वहाँ जय (जीत) है।”
(The views in the above article are personal views of the author )