11 November को सेवानिवृत्त होंगें मुख्य न्यायाधीश,न्यायमूर्ति डॉ. धनंजय यशवंत चंद्रचूड़, दो वर्षों के कार्यकाल के उपरांत
साॅलिसिटर प्रो. नीलम महाजन सिंह
भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश,
न्यायमूर्ति डॉ. धनंजय यशवंत चंद्रचूड़, दो वर्षों के कार्यकाल के उपरांत 11.11.2024 को सेवानिवृत्त होंगें। डॉ. चंद्रचूड़ का जन्म 11 नवंबर 1959 को हुआ, व वे सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तक की न्यायिक चरम सीमा तक पहुंचे। 09 नवंबर 2022 को राष्ट्रपति महामहिम द्रौपदी मुर्मू ने भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में, उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई थी। वे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश व मुंबई उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ 13 मई 2016 को भारत के सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त हुए। उन्हें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शपथ दिलाई थी। वे मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय पर 09 नवंबर 2022 को पदस्थ हुए। जस्टिस उदय उमेश ललित ने उनका नाम सरकार को भेजा था। डी.वाई. चंद्रचूड़ 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर 10 नवंबर को सेवानिवृत्त होंगें। इस अवधि के दौरान, उन्होंने कई उल्लेखनीय फैसले सुनाए। कार्यभार संभालने के बाद, देश के सर्वोच्च न्यायिक पद पर रहते हुए उनके द्वारा लिखे गए 10 प्रमुख फैसले यहाँ दिए गए हैं। प्रथम, अनुच्छेद 370 को निरस्तित किया गया। डा. डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अनुच्छेद 370 के निरसन को बरकरार रखा है। उन्होंने भारत के चुनाव आयोग को 30 सितंबर, 2024 तक जम्मू-कश्मीर की विधानसभा के चुनाव कराने के आदेश दिये थे। ये चुनाव हो भी गए हैं। संविधान पीठ में जस्टिस संजय कृष्ण कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी.आर. गवई व जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने; सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के ब्यान पर भरोसा करते हुए किया कि, जम्मू-कश्मीर को ‘राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा’। इस सवाल को खुला छोड़ दिया था कि क्या संसद किसी राज्य को एक या अधिक केंद्र शासित प्रदेशों में परिवर्तित करके राज्य के चरित्र को समाप्त कर सकती है? “राज्य का दर्जा जल्द से जल्द व जितनी जल्दी हो सके बहाल किया जाएगा”। सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के स्पष्टीकरण के साथ अनुच्छेद 3(ए) के तहत लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में दर्जा दिया था। मई 2024 में, सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान पीठ के फैसले की समीक्षा करने से इन्कार कर दिया व अनुच्छेद 370 एवं 35-ऐ को रद्द करने के फैसले के खिलाफ दायर समीक्षा याचिकाओं को खारिज कर दिया। द्वितीय, समलैंगिक विवाह पर एतिहासिक निर्णय, सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की पीठ ने ‘विशेष विवाह अधिनियम के तहत ‘मौजूदा पुरुष और महिला के स्थान पर लिंग-तटस्थ व्यक्ति’ को खत्म करने या पढ़ने से इन्कार कर दिया था। संविधान पीठ के सभी पांच न्यायाधीशों ने सर्वसम्मति से सहमति व्यक्त की थी कि विवाह का अधिकार बिना शर्त नहीं है और केंद्र के इस प्रस्ताव को स्वीकार किया कि कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति गठित की जाए, जो यह जांच करेगी कि समलैंगिक जोड़ों से संबंधित बुनियादी सामाजिक लाभ संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए क्या प्रशासनिक कदम उठाए जा सकते हैं। संविधान पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, हिमा कोहली, बी.वी. नागरत्ना व पी.एस. नरसिम्हा भी शामिल थे ने, ‘विवाह समानता कानून’ बनाने का फैसला विधानमंडल पर छोड़ दिया था। इसने केंद्र व राज्य सरकारों से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि एल.जी.बी.टी.कयू. (LGBTQ+) समुदाय के साथ “उनके यौन अभिविन्यास के आधार पर भेदभाव न किया जाए और समलैंगिक व्यक्तियों को किसी भी सामान या सेवा तक पहुंच से वंचित न किया जाए”। तृतीय, जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने ‘चुनावी बांड योजना’ को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि मतदाताओं को राजनीतिक दलों के वित्तपोषण के विवरण जानने के अधिकार से वंचित करने से द्वंद्वात्मक स्थिति पैदा होगी। राजनीतिक दलों के वित्तपोषण को चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के वित्तपोषण से अलग नहीं माना जा सकता। सर्वसम्मत फैसले की पीठ में, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, सजीव खन्ना, जे.बी. पादरीवाला व मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने भारतीय स्टेट बैंक (एस.बी.आई.) को तत्काल चुनावी बांड जारी करने पर रोक लगाने का निर्देश दिया था। भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) को अप्रैल 2019 से चुनावी बांड के माध्यम से योगदान प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों का विवरण अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित करने के भी आदेश दिये गए थे। शीर्ष अदालत ने कहा कि जब तक जनहित याचिका में उठाए गए मुुद्दों पर पहले से ही एफ.आई.आर. दर्ज नहीं हो जाती, तब तक ‘क्विड प्रो क्वो’ की जांच के लिए एस. आई. टी. का गठन नहीं किया जा सकता है। चतुर्थ, जेलों में जाति-आधारित श्रम विभाजन, पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने जेलों में ‘सफाई और मैला ढोने के काम में निचली जाति के कैदियों’ को काम पर रखने की प्रथा को असंवैधानिक करार दिया’। पीठ में जस्टिस जे.बी. पारदीवाला व मनोज मिश्रा भी शामिल थे, जिन्होंने निर्देश दिया कि जेलों के अंदर कैदियों के रजिस्टर में ‘जाति कॉलम’ व जाति के किसी भी संदर्भ को हटा दिया जाए। अक्टूबर 2024 के फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से तीन महीने के भीतर जेलों में जाति-आधारित श्रम विभाजन प्रदान करने वाले अपने जेल नियमों को संशोधित करने को कहा। इसने केंद्र सरकार से तीन महीने के भीतर ‘मॉडल जेल मैनुअल 2016 और मॉडल जेल और सुधार सेवा अधिनियम 2023’ में बदलाव करने को भी कहा। पांचवां, ‘बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006’ का प्रभावी क्रियान्वयन सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने बाल विवाह निषेध के अनेक निर्देश जारी किए। पीठ में जस्टिस जे.बी. पारदीवाला व मनोज मिश्रा शामिल थे, जिन्होंने राज्य सरकारों व केंद्र शासित प्रदेशों को ज़िला स्तर पर बाल विवाह निषेध अधिकारियों (सी.एम.पी.ओ.) के कार्यों के निर्वहन के लिए पूरी तरह ज़िम्मेदार अधिकारियों की नियुक्ति करने का आदेश दिया। इसमें कहा कि बाल विवाह बच्चों को उनकी एजेंसी, स्वायत्तता व उनके बचपन का पूरा विकास करने व उसका आनंद लेने के अधिकार से वंचित करता है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया, “जबरन और कम उम्र में शादी से दोनों लिंगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बचपन में शादी करने से बच्चे को वस्तु बना दिया जाता है। बाल विवाह की प्रथा उन बच्चों पर परिपक्व बोझ डालती है जो विवाह के महत्व को समझने के लिए शारीरिक या मानसिक रूप से तैयार नहीं होते हैं।” छटा, डा. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6-ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा, जिसे असम समझौते को प्रभावी बनाने के लिए डाला गया था और जिसने 2019 में असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का आधार बनाया। 5 न्यायाधीशों की पीठ नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6-ए को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार कर रही थी। इस आधार पर कि यह संविधान के अनुच्छेद 6,7,14, 29 और 355 का उल्लंघन करती है। अपनी राय में, सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि नागरिकता अधिनियम की धारा 6-ए संविधान के अनुच्छेद 6 व 7 में संशोधन करने का प्रभाव नहीं रखती है, जो “संविधान के प्रारंभ” (यानी 26 जनवरी, 1950) पर पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान से आए प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करने की ‘कट-ऑफ तिथि निर्धारित करती है’। सातवां, नई परीक्षा का आदेश देने से इनकार करते हुए, डा. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि नीट-यू.जी. (NEET-UG 2024) परीक्षा का प्रश्नपत्र का कोई व्यवस्थित लीक नहीं हुआ था। पीठ में जस्टिस जे.बी. पारदीवाला व मनोज मिश्रा भी शामिल थे, जिनहोंने कहा कि दोबारा परीक्षा का आदेश देने के लिए रिकॉर्ड पर पर्याप्त सामग्री उपलब्ध नहीं थी, लेकिन स्पष्ट किया कि उनका फैसला अधिकारियों को उन उम्मीदवारों के खिलाफ कार्रवाई करने से नहीं रोकेगा, जिन्होंने कदाचार का उपयोग करके प्रवेश प्राप्त किया था। नौवां, डा. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने मणिपुर में दो आदिवासी महिलाओं को नग्न अवस्था में घुमाया गया और उनके साथ यौन उत्पीड़न किया गया, इस तरह के परेशान करने वाले वायरल वीडियो का स्वतः संज्ञान लिया। सर्वोच्च न्यायालय ने तीन महिला न्यायाधीशों वाली एक समिति गठित की थी, जिसका काम मणिपुर में महिलाओं के खिलाफ हिंसा से संबंधित जानकारी एकत्र करना, साथ ही राहत शिविरों की स्थितियों की निगरानी करना और पीड़ितों को मुआवजा देने का निर्णय लेना था। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने महाराष्ट्र के पूर्व डी.जी.पी. दत्तात्रेय पदसलगीकर को भी मणिपुर में संघर्ष के दौरान कुछ पुलिस अधिकारियों द्वारा यौन हिंसा सहित हिंसा करने वालों के साथ मिलीभगत के आरोपों की जांच करने के लिए नियुक्त किया था। दसवां, जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने देश भर के सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को सांसदों व विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटान की निगरानी के लिए स्वतः संज्ञान मामले दर्ज करने का निर्देश दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्रत्येक उच्च न्यायालय में गठित की जाने वाली विशेष पीठ राजनीति के अपराधीकरण पर अंकुश लगाने के लिए निरंतर निर्देश जारी करेगी तथा महाधिवक्ता और राज्य सरकार के अन्य अधिकारियों से सहायता ले सकती है। इसके अलावा, इसने कहा कि उच्च न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सभी जिला एवं सत्र न्यायालयों से इस मुद्दे पर स्थिति रिपोर्ट भी मांग सकता है। सारांशअर्थ सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ ने सेंट स्टीफंस कॉलेज, नई दिल्ली से अर्थशास्त्र में ऑनर्स पास किया तथा ‘कैंपस लॉ सेंटर’, दिल्ली विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. की डिग्री प्राप्त की। वर्ष 1983 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय से एल.एल.एम. की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 1986 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय से न्यायिक विज्ञान में ‘डॉक्टरेट की उपाधि” प्राप्त की। वर्ष 2015 में डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय लखनऊ ने एल.एल.डी. की मानद उपाधि दी। उन्होंने 1998 से 2000 तक भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के रूप में भी कार्य किया। जून 1998 में, उन्हें बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया। पिछले महीने मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ द्वारा अपने उत्तराधिकारी के रूप में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना के नाम की सिफारिश किए जाने के बाद, केंद्र ने 11 नवंबर से न्यायमूर्ति खन्ना की 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति को मंजूरी दे दी है। माननीय न्यायमूर्ति डॉ. धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ का जन्म 11 नवंबर 1959 को हुआ था। इनके पिता यशवंत विष्णु चंद्रचूड़, भारत के सुप्रीम कोर्ट के 16वें व सबसे लंबे समय तक सेवारत मुख्य न्यायाधीश थे। इनकी माता प्रभा जी, ऑल इंडिया रेडियो में शास्त्रीय संगीतज्ञ थीं। जस्टिस चंद्रचूड़ को न्यायिक प्रणाली में सीधा प्रसारण, कैमरे द्वारा, ‘वर्चुअल पेशी’, वकीलों को मध्यस्थता व आपसी सहमती से मामलों का निवारण करने, डिजिटल ऑनलाइन न्यायालय प्रक्रिया को संसंविधानि करार देना, सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री की खामियों को उजागर कर नियंत्रित करना, बिना ऐप्लिकेशन के वकीलों द्वारा महत्वपूर्ण मामलों को प्रोत्साहित नहीं करना; आदि के लिए याद रखा जाएगा। जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड एक प्रथम ऐसे judge न्यायाधीश हैं, जिन्होंने मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर खुले दिल से बातचीत की व इंटरव्यू, वार्तालाप आदि की। कुछ वरिष्ट अधिवक्ताओं को आयना दिखाने का भी उन्होंने कार्य किया। फ़िर कुछ ना कुछ तो अधूरा रह ही जाता है। उनकी प्रतिबद्धता को सलाम! भारतवासियों की ओर से जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड व उनके देश के लिए की सेवा के लिए धन्यवाद। उन्हें औऱ उनके परिवार को शुभकामनाएं। जस्टिस चंद्रचूड ने न्यायिक इतिहास में उत्तरी स्टार व ध्रुव तारे के समान अपना नाम अंकित किया है।
प्रो. नीलम महाजन सिंह
(वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक, शिक्षाविद, सालिसिटर फाॅर ह्यूमन राइट्स व परोपकारक)