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ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया का वार्षिक अधिवेशन संपन्न

तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के स्वर्ण जयंती वर्ष में दो दिवसीय 47 वां अधिवेशन इंडियन रेपोग्राफिक राइटरस ऑर्गेनाइजेशन के संयुक्त तत्वावधान में 19-20 अक्तूबर को संपन्न हुआ। शंकरलाल सुंदरबाई शसुन जैन महिला महाविद्यालय के सभागार में आयोजित वार्षिक अधिवेशन का शुभारंभ मुख्य अतिथि सेंट्रल इंस्टीट्यूट आफ क्लासिकल तमिल के डायरेक्टर प्रोफेसर आर चंद्रशेखर ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया। अधिवेशन की अध्यक्षता पद्मश्री डॉ श्याम सिंह शशि ने की। मंचस्थ सभी विशिष्ट अतिथि का स्वागत शाल एवं स्मृति चिन्ह भेंट करके किया गया।
मुख्य अतिथि के रूप में बधाई देते हुए प्रोफेसर आर चंद्रशेखर ने हिंदी में कहा – “कादम्बिनी के संपादक महर्षि राजेंद्र अवस्थी जी की सोच आज वट वृक्ष की भांति बढ़कर विभिन्न भाषाओं के साहित्यकारों को सम्मिलित कर संपूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व करती है।” उन्होंने बताया – “तमिल भाषा लगभग 2000 साल की यात्रा पूरी कर विकास दिखने लगी है। भाषा संस्कारों को स्थापित करती है। तमिल के साहित्यकारों का साहित्य आज भी उपलब्ध है। ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया अनुवादों को उत्साहित करें ताकि तमिल साहित्य अन्य भाषाओं में उपलब्ध हो सके।
अनुवाद की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए विशिष्ट अतिथि तमिल भाषा के प्रख्यात विद्वान वी मालन नारायण ने अनुवाद विषय को व्याख्यायित करते हुए कहा की अनुवादक को दोनों भाषाओं के व्याकरण और शब्दों का वृहत ज्ञान होना चाहिए अन्यथा लेखक की लेखनी और अनुवाद में फर्क हो जाता है और कभी-कभी तो विवाद भी खड़ा हो जाता है।
अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए डॉ श्याम सिंह शशि ने कहा – “एजीआई का राष्ट्रीय एकता में बड़ा योगदान है। देश की समस्त भाषाओं में लिखने वाले लेखक इस आयोजन में एकत्रित होकर उत्तम साहित्य का आदान-प्रदान करते हैं। इससे देश का साहित्यिक संसार समृद्ध बनता है। डॉ शशि ने लेखकों से आह्वान किया कि अच्छे शब्दों को सदैव गढ़ते रहना चाहिए।
इंडियन रेपोग्राफिक राइटरस ऑर्गेनाइजेशन के उपाध्यक्ष एवं ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के महासचिव शिवशंकर अवस्थी ने ए जी आई के बारे में विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने पचास वर्षों की संक्षिप्त जानकारी दी। डॉ शिवशंकर अवस्थी ने बताया – “भारतीय लेखकों के अधिकारों और हितों की देखभाल करने के लिए गिल्ड एकमात्र गैर-सरकारी संगठन है। इसके संस्थापक सदस्य- न्यायमूर्ति जी डी खोसला, द टाइम्स ऑफ इंडिया, इंडियन एक्सप्रेस के पूर्व संपादक डी आर मानकेकर, उत्तरी रेलवे के पूर्व महाप्रबंधक जी एस खोसला और हिंदुस्तान टाइम्स समूह में पूर्व संपादक राजेंद्र अवस्थी आदि – पेशेवर पत्रकारों में लेखकों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक दृष्टिकोण था। भारतीय संविधान द्वारा प्रदान किए गए भाषण की स्वतंत्रता को सदैव बनाए रखना इन प्रबुद्धजनों का उद्देश्य भी था। तब से इस उस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया काम कर रहा है।
उद्घाटन सत्र के अंत में ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के सदस्यों द्वारा लिखित पुस्तकों का लोकार्पण हुआ। पत्रिका इंडियन ऑथर सहित लगभग 15 पुस्तकों का विमोचन भी किया गया। डॉ शिवशंकर अवस्थी द्वारा संपादित पुस्तक “मीडिया और भाषा”, नरेंद्र परिहार की पत्रिका “मेरा दीवान”, अशोक जैन की पुस्तक “हिंदी बोलचाल बोधिनी”, राधेश्याम बंधु की “नवगीत का मानवतावाद”, लता तेजेश्वर रेणुका की “जिजीविषा”, परसराम डेहरिया की “नीलम का पारस” ,आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी की “भारतीय दर्शन की चिंतन धारा”, प्रभा मेहता की “वैष्णव जन तो”, जमीर अंसारी की “सेतु”, सहदेव कोहले की “मशाल”, डॉ . राजलक्ष्मी कृष्णन की “उत्कृष्ट तमिल साहित्य और संस्कृति”, प्रदीप गौतम सुमन की “राष्ट्रीय आगम सोचे” का अक्टूबर अंक, जय बहादुर सिंह राणा की “सरहद की आवाज”, संपादक किरण कोकर की “गुमान तक राष्ट्रभाषा विद्यापीठ पत्रिका” आदि पुस्तकों का लोकार्पण हुआ।
अधिवेशन में देशभर के 70 से अधिक साहित्यकार सदस्यों ने भाग लिया। वार्षिक अधिवेशन में संगोष्ठी के लिए “लेखकों का अधिकार एवं बहुभाषी भारत” एवं “भारतीय भाषाएं और अनुवाद” विषय थे। दोनों विषयों पर हिन्दी, तमिल, कन्नड़, मराठी, तेलुगु, मलयालम सहित अन्य भाषाओं में प्रपत्र वाचन हुआ। भाषाओं की एकता को दर्शाता है।
महासचिव डॉ शिवशंकर अवस्थी ने साहित्य में महात्मा गांधी के शांति सत्याग्रह को टॉलेस्टॉय की थ्योरी से भी आगे रखा और कहा लिखा हुआ कभी खत्म नहीं होता बल्कि वह संस्कृति की प्रगति को और बदलाव को दिखाता है।
गिल्ड के राष्ट्रीय संयोजक अजय अवस्थी ने कहा कि वह सभी साहित्यकारों की प्रकाशित कृतियां और अनुवाद को प्रगति देने हेतु देश की 114 विश्वविद्यालय में लगाने का मदद करेंगे। उन्होंने आगे कहा लेखकों को बदलते सांस्कृतिक परिवेश और प्रकृति के साथ एलाइनमेंट करना चाहिए।
डॉक्टर अशोक पांड्या ने कहा आज लेखक को कम आंका जाता है स्वतंत्र लेखन ही खत्म हो रहा है लेखकों को जीने के लिए रॉयल्टी की जरूरत तो है ही।
आई आर आर ओ के उपाध्यक्ष डॉ शिव शंकर अवस्थी ने 1455 में लिखी पहली पुस्तक का जिक्र किया और कहा – “पुस्तकों ने क्रांति लाडी के उपरांत प्रिंटिंग और सन् 1990 में आई फोटोग्राफी मशीन में तो माहौल ही बदल दिया लेखक और प्रकाशित को इकट्ठा किया तो विवाद भी खड़े हुए इनको सुलझाने के लिए संस्था सामने आई।” उन्होंने आगे कहा लेखक के मूल लेखन को टोडा मरोड़ा नहीं जा सकता आज प्रकाशक नाम बदलकर जो उसके छाप रहे हैं उन्हें चैलेंज कर सकते हैं। उन्होंने कहा सभ्यता सुरक्षित रखती है पहले भी उसके पीछे लेखक का आगे भी उसके साथ लेकर ही होगा परंतु लेखन और अनुवाद के साथ न्याय होना चाहिए इसलिए अधिकारों का ज्ञान देने के लिए संस्था है।
बहुभाषिकता और राष्ट्रीय एकता अनुवाद विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए लता तेजेश्वर रेणुका ने कहा – “भाषा संवाद का माध्यम है।” रामा देवी ने कहा – “भारतीय संस्कृति में विविधता है व्यक्ति को बहुभाषी होना चाहिए।” के जी प्रभाकरण ने कहा – “बहु भाषिकता विविधता को साकार करती है वैदिक कालीन साहित्य ब्रह्म चैतन्य पर आधारित था अब समग्र चेतना और पर्यावरण केंद्रित साहित्य को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।” डॉ सलमा जमाल ने संगोष्ठी को उत्कृष्ट निरूपित करते हुए कहा – “भाषा के अनुवाद से भक्ति का भी अपना प्रभाव है।” डॉ लक्ष्मी कृष्णन ने कहा – “भारतीय संस्कृति की सुंदरता है। नेहा भंडार कर ने अपने भक्ति कॉल और अनुवाद के मध्य क़ौमी एकता का महत्व रखा। डॉ सुजाता दास ने पुलिस विभाग में एक मामले के माध्यम से भारत के त्योहारों की रोचकता को प्रस्तुत किया।
अधिवेशन में बहुभाषीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। वरिष्ठ कवि राधेश्याम बंधु ने कवि सम्मेलन की अध्यक्षता की और नरेंद्र सिंह परिहार के संचालन किया। देश भर से आए विभिन्न भाषाओं के कवियों ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। डॉ जयप्रकाश शर्मा ने भक्ति गीत से कवि सम्मेलन का शुभारंभ किया। राजलक्ष्मी कृष्णन, डा कृष्ण कुमार द्विवेदी, जमील अंसारी, जयप्रकाश सूर्यवंशी, डॉ के चेल्लम, डॉ आशा मिश्रा, बाबा कानपुरी, कोयल विश्वास, जे एस राणा कंचन, उषा रानी राव, डॉ हरीश अरोड़ा, मंजू लंगोटे, लक्ष्मण डेहरिया, सलमा जमाल, मुकेश अग्रवाल, रामा देवी, मीना कौशल, डॉ चंद्र चतुर्वेदी, उन्नी कृष्णन उल्लेरी, डॉ बाल कृष्णा महाजन, अजिथा राजन, ए के संध्या, पी बी रमादेवी, संध्या अरक्कल, डा सुजाता दास, सरिता सेल, टी मैनेथ, डा अजीत मनौत, डॉ जय प्रकाश शर्मा, पुष्पन आरा रिक्कूनू , नेहा भंडार कर, शिल्पी भटनागर आदि ने मलयालम, कन्नड़, तमिल, अंग्रेजी, हिंदी, गुजराती, राजस्थानी, आसामी आदि भाषाओं में काव्य पाठ किया।
दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन का समापन करते हुए ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के अध्यक्षता डॉ श्याम सिंह शशि ने चेन्नई के अधिवेशन की सार्थकता पर प्रकाश डालते हुए सभी सदस्यों का आभार व्यक्त किया। आयोजन को सफल बनाने में डॉ अशोक जैन, डॉ सरोज सिंह एवं शंकरलाल सुंदरबाई शसुन जैन महिला महाविद्यालय के सभी सदस्यों का धन्यवाद किया।
समापन समारोह के विशिष्ट अतिथि राजस्थान पत्रिका के संपादक संतोष ने इसे दक्षिण भारत में भाषाओं का एक सफल कार्यक्रम निरूपित किया। इसके पश्चात ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के सभी चैप्टरों के संयोजकों ने अपने-अपने क्षेत्र की गतिविधियों का संक्षिप्त रूप प्रस्तुत किया। किरण पोपकर गोवा, उषा रानी राव कर्नाटक, सलमा जमाल जबलपुर, अशोक जैन चेन्नई, डॉ अहिल्या मिश्र, हैदराबाद, डॉ. वर्गीज केरला, नरेंद्र परिहार नागपुर आदि प्रमुख थे। इस अवसर पर कार्यकारिणी का पुनर्गठन भी हुआ।

प्रस्तुति : नरेंद्र परिहार एवं डॉ संदीप कुमार शर्मा

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