From the results of Haryana elections it has become crystal clear that over confidence can lead any party to doldrums/ of no where.
Keeping this in mind, the Uttar Pradesh’s former CM and SP supremo Akhilesh Yadav should taking clue from the Haryana instance shouldn’t consider his winning chances absolutely in the 2027 elections.
Only that party or political conglomeration can sit on the saddle of Uttar Pradesh who could ensure triumphs on 75 seats each in Western, Central and Eastern Uttar Pradesh.
We shouldn’t forget that the evolution of Samajwadi Party and Bahujan Samajwadi Party took place in Uttar Pradesh during nineties when the Congress and BJP were on its weakest positions but going by today’s UP political scenerio – the BJP stalwart and UP CM Yogi Adityanath and the saffron party is in a very strong and comfortable political position at the grass roots.
For Samajwadi Party, Western Uttar Pradesh is the weakest belt and if SP supremo Akhilesh fails to win 75 seats in Western UP it will be like a nightmare for him to become the UP CM.
In order to make a mark in Western UP, Akhilesh Yadav will have give enough leverage and priority to the Gujjars and Jat communities bringing them into his party’s influence, especially to the farmers of both the communities.
Bringing Jat leaders from Haryana to UP or believing on those Jat and Gujjar leaders who are exhibiting themselves in TV debates would not serve his purpose.
It won’t be possible for him to influence the Jat and Gujjar communities. It is so because if these two castes/ communities ( Jats and Gujjars) detract from the Samajwadi Party due to one reason or the other, the SP won’t win more than forty or fifty seats.
Moreover, it won’t be able to fulfil this loss by bringing seats from central or eastern UP because the BJP and Yogi Adityanath’s roots are very strong here too n entire UP.
It won’t be so convenient for Samajwadi Party to uproot the BJP or its influence.
Western Uttar Pradesh’s regional party RLD, which has sided with the ruling BJP, may have to suffer a big loss in the upcoming elections due to anti incumbency. Akhilesh Yadav has almost ignored Western UP because today there are no special faces in SP representing the farmer caste i.e. Jat or Gurjar from Western UP, nor does SP have its base vote i.e. Yadav in Western UP.
So in such a situation, it does not seem easy for the party to get success in Western UP. The nature of a Muslim is to vote to defeat the BJP, but if the Muslims get divided and the farmer communities like Jat, Gurjar etc. in western UP do not vote majority for SP, then Akhilesh’s dream of sitting on the throne of Lucknow in 2027 will remain a dream only.
Therefore, Akhilesh Yadav will have to prepare a strong leadership of the farmer class in Western UP as soon as possible.
पश्चिम को साधे बिना अखिलेश के लिए यूपी की गद्दी दूर! हरियाणा चुनाव के नतीजों से स्पष्ट है कि अति आत्मविश्वास किसी भी पार्टी को लेकर डूब सकता है। इससे सबक लेते हुए अखिलेश यादव को यूपी में 2027 की जीत को सुनिश्चित नहीं मानना चाहिए। लखनऊ की गद्दी पर वही पार्टी बैठ सकती है जो उत्तर प्रदेश के तीनों क्षेत्र- पश्चिमी यूपी, मध्य यूपी और पूर्वी यूपी में कम से कम 75-75 सीटें जीतकर आए। हमें नहीं भूलना चाहिए कि सपा और बसपा का उत्थान 90 के दशक में तब हुआ था जब भाजपा और कांग्रेस दोनों ही उत्तर प्रदेश में बहुत मजबूत स्थिति में नहीं थे परंतु आज योगी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में भाजपा बहुत ही मजबूत स्थिति में है। सपा के लिए सबसे ज्यादा कमजोर कड़ी पश्चिमी यूपी है, यदि अखिलेश पश्चिम से 75 सीटें जीतने में कामयाब नहीं हुए तो उनके लिए लखनऊ की गद्दी एक दिव्य स्वप्न बनकर ही रह जाएगी। पश्चिमी यूपी को साधने के लिए अखिलेश को किसान जातियों विशेष कर जाटों और गुर्जरों आदि को प्रमुखता देनी होगी। हरियाणा से आयातित जाट नेता हो या अखिलेश की पूंछ बने फोटूबाज़ जाट नेता या टीवी पर फ़ुदकने वाले एक गुर्जर नेता के भरोसे इन जातियों को साधना संभव नहीं है। क्योंकि अगर किसी भी वजह से यह दोनों जातियां सपा के हाथ से खिसकी तो सपा पश्चिम यूपी में 40-50 से ज्यादा सीटें नहीं जीत पायेगी। और इन सीटों की पूर्ति मध्य और पूर्वी यूपी से होना भी संभव नहीं होगा, क्योंकि आज भाजपा प्रदेश के सभी क्षेत्रों में मजबूत जड़ जमाए हुए है जिसको उखाड़ना सपा के लिए इतना आसान नहीं होगा। पश्चिम यूपी का क्षेत्रीय दल रालोद जो सत्ताधारी भाजपा के साथ चला गया है आगामी चुनाव में एंटीकंबेंसी के चलते उसको बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। अखिलेश यादव ने पश्चिम यूपी को जैसे लगभग नजरअंदाज किया हुआ है क्योंकि सपा में पश्चिम यूपी से आज किसान जाति यानि जाट या गुर्जर का प्रतिनिधित्व करने वाले ना तो कोई ख़ास चेहरे हैं और ना ही पश्चिम यूपी में सपा का अपना बेस वोट यानि यादव है। तो ऐसे में पार्टी को पश्चिमी यूपी में सफलता मिलना आसान दिखाई नहीं देता। मुसलमान का स्वभाव भाजपा को हराने के लिए वोट देना होता है, लेकिन यदि मुसलमान बटा और पश्चिम यूपी में जाट गुर्जर आदि किसान बिरादरियों ने सपा को अधिकांश वोट नहीं दिया तो 2027 में अखिलेश का लखनऊ की गद्दी पर बैठने का ख्वाब, ख्वाब ही रह जाएगा। अतः अखिलेश यादव को शीघ्र अति शीघ्र पश्चिमी यूपी में किसान वर्ग की मजबूत लीडरशिप तैयार करनी होगी।