एलटीजी में प्रदर्शित दो नाटक – बघैन और फट जा पंचधार वास्तव में सफल रहे
आज की प्रथम प्रस्तुति थी- नवीन जोशी की कहानी पर आधारित व संगीत नाटक अकादमी से उस्ताद बिस्मिल्लाह खां सम्मान प्राप्त कैलाश कुमार द्वारा निर्देशित नाटक बाघैन। बाघैन नामक चर्चित कहानी पहाड़ी परिवेश पर आधारित है। नाटक का मुख्य पात्र सुबेदार आनंद सिंह , एक आर्मी का रिटायर्ड सिपाही है। अपनी मिट्टी से आनंद सिंह को बेपनाह प्रेम है साथ ही वो कर्तव्यपरायण, जिम्मेदार और मेहनती बुजुर्ग है। आनंद सिंह के साथ उसके सिवा एक शेरू नाम का कुत्ता रहता है। वह उसके लिए एक कुत्ता ही नहीं, बल्कि उसके सुख-दुःख का साथी है। उन दोनों के अलावा उस गांव में कोई नहीं रहता है नाटक की शुरुआत शहरी परिवेश से होती है धीरे-धीरे नाटक पहाड़ में रह रहे आनंद सिंह पर केंद्रित हो जाता है। आनंद सिंह की यादों में उसकी पत्नी और उसके गांव के पुरानी साथी हमेशा आते रहते हैं। बेटी के आग्रह पर आनंद सिंह मजबूरन कुछ दिन शहर जाने के लिए तैयार हो जाता है, बेटी और पिता का रिश्ता नाटक में मार्मिक पूर्ण स्थिति उत्पन्न कर देता है। नाटक विकास के मॉडल को प्रश्नांकित करने के साथ-साथ बुजुर्ग पीढ़ी के अपने मिट्टी से लगाव और नई पीढ़ी की अपनी मिट्टी को छोड़ने की विवशता को जीवंत और मर्मस्पर्शी ढंग से दिखाता है। नाटक के विभिन्न विषयों में पलायन, बेरोजगारी, स्वास्थ्य समस्या, पत्नी के अकेले बाप को जंवाई द्वारा सहारा ना देने की पीड़ा, टिहरी के जलमग्न गांवों कि पीड़ा व मुक्तेश्वर बांध की संभावित विनाश लीला के संदर्भों को उकेरा गया है। इन सभी विषयों पर सशक्त स्क्रिपट निर्देशन व अभिनय से सभी कलाकारों ने दर्शकों को बांधे रखा व ज़ोरदार तालियां बटोरीं।
फट जा पंचधार- संभव परिवार मंच देहरादून
इसके इतर उत्तराखण्ड की सामाजिक कुरीतियों में से मात्र एक कुरीति के विषय पर आधारित नाटक ‘फट जा पंचधार’ था जो कि विद्यासागर नौटियाल जी की विलक्षण कहानियों में से एक कहानी पर आधारित है और इसे प्रस्तुत किया संभव परिवार मंच देहरादून ने। इसके निर्देशक थे हिंदी और गढ़वाली फिल्मों के अभिनेता और हिंदी नाटकों के जाने- माने निर्दशक अभिषेक मैंदौला जी।
कहानी की केन्द्रीय पात्र एक युवती ‘रक्खी’ है। रक्खी का पूरा जीवन शोषण, उत्पीड़न, उपेक्षा, तिरस्कार, घृणा के अनेक धरातलों से गुजरता है जो आखिर में एक अंधी गुफा के मुहाने की कगार पर आकर मार्मिक चीत्कार, झुंझलाहट, दहाड़ व अंतर्नाद का रूप ले लेता है और फूटता है उस विशेष स्थान पर जिसे पंचधार के नाम से जाना जाता है। इस जगह पर पांच गांवों की सीमा मिलती है। जहां से दोहरे मापदंड, सवर्ण खोखली मानसिकता, गिरते जीवन मूल्य, नारी दोहन, दलित उत्पीड़न की बात समाज को दूषित करती आ रही है वो भी सदियों से। सडी़-गली व्वस्थाओं के रहते मानवीय संवेददाओं के कपाट जहां जड़ हैं वहीं रक्खी से छुटकारा पाकर चंद्रायन जैसे अमानवीय कर्मकांड से ठाकुर वीरसिंह तो सुच्चा हो जाता है और रक्खी असहाय और बेसहारा होकर ताउम्र के लिए जंगल की एक गुफा में धकेल दी जाती है मरने के लिए। जब रक्खी के लिये सब कुछ सहना असहनीय हो जाता है तो वो एक ऐसे भूकंप, प्राकृतिक आपदा का आह्वाहन करती है और चीख-चीखकर उन अमानवीय मान्यताओं को अपना श्राप देती है कि यह स्थान जो यह पंचधार के नाम से जाना जाता है जहां समाज विशेष के प्रति पक्षपातपूर्ण रव्वैया अपनाया जाता है वह स्थान दुनिया के नक्शे से मिट जाय ताकि फिर किसी रक्खी जैसे इंसान का जीवन बर्बाद न हो पाये। नारी जीवन के दर्शन की पड़ताल करता यह एक दुःखांत चित्रण ही “फट जा पंचधार है। नाटक की समाप्ति पर दर्शक दीर्घा की हर आंख नम थी।
इस एकल प्रस्तुति को ‘संभव’ परिवार मंच देहरादून की ओर से कुसुम पंत ने किया। कुसुम पंत रंगमंच का एक अंतर्राष्ट्रीय फलक पर एक सुपरिचित नाम है।
दोनों नाटकों का सफल संचालन प्रज्ञा आर्ट्स थियेटर की संयोजिका, निर्देशिका व अभिनेत्री लक्ष्मी रावत जी ने किया जो कि धन्यवाद व बधाई की पात्र हैं।
अभिव्यक्ति कार्यशाला, को दो दिवसीय इतने सुंदर आयोजन के लिए हार्दिक बधाई।
Dr.Satish Kaleshwari