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गन्ना भुगतान न होने पर किसान की आत्मदाह की धमकी

K.P. MALIK Sr. JOURNALIST

गन्ना भुगतान न होने पर किसान की आत्मदाह की धमकी पश्चिम उत्तर प्रदेश की गन्ना बेल्ट के ज़िले शामली की सुप्रसिद्ध और अंग्रेजों के जमाने की चीनी मिल पर क्षेत्रीय गन्ना किसान धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। कई बार धरना देने के बावजूद प्रशासन और सियासी नेता कुंभकरण की नींद सोए हुए हैं। इन किसानों का दुर्भाग्य देखिए कि तमाम सियासी दलों के नेता, विधायक और मंत्री सत्ता की मलाई खाने में इस कदर मदमस्त हैं कि उनको इस निरीह किसान की पीड़ा से कोई सरकार नहीं है। जाहिर है प्रदेश में हाल फिलहाल कोई चुनाव नहीं है, लोकसभा का चुनाव हाल ही में खत्म हुआ है और विधानसभा चुनाव में अभी देरी है। इसलिए सियासी दलों के तमाम नेता किसानों के ठेकेदार भली-भांति जानते हैं कि अभी किसानों के बीच में जाना जरूरी नहीं, जब किसानों के गांव, खेतों और खलियानों से सत्ता के लिए वोटों की फसल काटनी होगी। तब वें इन किसानों के बीच पहुंच कर लच्छेदार भाषण, झूठ सच्चे वादे और तमाम जुमलेबाजी इन भोले भाले किसानों से करेंगे। जैसा कि नीचे वीडियो में आप देख रहे हैं कि आज जहां कई किसान अपने हकों को मांगते हुए गिड़गिड़ा रहे हैं, वहीं एक किसान और सामाजिक कार्यकर्ता आत्मदाह करने पर तैयार है। लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। कई बार इस तरह के आंदोलन और धरनों को देखकर आंखें नम होना स्वाभाविक है, क्योंकि इसी शामली चीनी मिल में मैंने अपने दादाजी, पिताजी और अपने बड़े भाई को गन्ना ले जाते देखा है। आज मेरा छोटा भाई और मेरा भतीजा लगातार गन्ने की सप्लाई कर रहे हैं। दुर्भाग्य से किसान पुत्र होने के नाते मेरी भी कुछ बीघा जमीन गांव में है। मेरे भी खाते में भी गन्ना भुगतान आता है, लेकिन जब मैं पासबुक पूरी करवाता हूं तो उस बिना ब्याज के मामूली भुगतान को देखकर मुझे शर्म आती है और मजबूर हो जाता हूं यह सोचने पर कि एक साधारण किसान परिवार इतने कम पैसे में कैसे गुजारा कर सकता है? और इस किसान के साथ मजाक देखिए की सालों साल इसकी फसल का पैसा भी नहीं मिलता और ब्याज का तो कोई जिक्र ही नहीं होता? जबकि माननीय न्यायालय का आदेश है कि अगर चीनी मिलें 15 दिन के बाद भुगतान करती हैं तो उनको निश्चित अवधि का ब्याज किसान को देना होगा, लेकिन सरकार के अधिकारी, नेता, मंत्री और चीनी मिल प्रशासन मिल बांटकर किसान के ब्याज का पैसा डकार जाते हैं और उसको उसकी फसल का भी पैसा देने के लिए तिल तिल तरसा देते हैं। मेरा सवाल है कि क्या दुनिया में किसी भी अन्य व्यवसाय में इस प्रकार से उद्योगों को कच्चा माल उधार मिलता है? जिसका सालों साल के बाद पैसा अपनी मर्जी से दें या ना दें? दुर्भाग्य देखिए कि जब आज भी हमारी चौथी पीढ़ी आधुनिक युग में किस की इस दुर्दशा को देखती है। तो उनका दुखी और भावुक होना स्वाभाविक है। दरअसल मुझे उस दौरान थोड़ी राहत मिली थी, जब मैंने सुना था कि शामली शुगर मिल को शादी लाल के वंशजों से त्रिवेणी ग्रुप ने खरीद लिया है। क्योंकि इसमें कोई दौ राय नहीं है कि उत्तर प्रदेश में त्रिवेणी ग्रुप अच्छा माना जाता है। क्योंकि बाकी चीनी मिलों के मुकाबले इसका गन्ना भुगतान बहुत अच्छा और समय पर होता है। लेकिन त्रिवेणी शुगर मिल का प्रबंधन भी इस मामले को संभाल नहीं पा रहा है। इसकी टेक्निकल परेशानियां क्या है? उनकी मुझे अभी तक कोई खास जानकारी नहीं है। लेकिन कुंभकरणी नींद सोई योगी सरकार से मेरा आग्रह है कि तत्काल इन किसानों की ओर ध्यान देकर इनको राहत प्रदान करने का काम करे। क्योंकि जल्द ही किसानों को उनकी गन्ने की फसल की कटाई और अगली गेहूं की फसल की बुवाई करनी है। इसलिए शुगर मिल के न चलने और ना भुगतान करने से उनके सामने बड़ी समस्या खड़ी हो गई है। तो सरकार को चाहिए किसान को राहत देने के लिए उनके गन्ने की व्यवस्था अन्य चीनी मिलों में करें और उनको अगर 100 फीसदी नहीं तो कम से कम 50 से 60 फीसदी गन्ना तत्काल भुगतान करने की व्यवस्था करे। गन्ना किसान की लड़ाई लड़ने का डिडोरा पीटने वाले तथाकथित किसान हितैषी सियासी दलों को भी सत्ता की मलाई छोड़कर उनके दुख दर्द में शामिल होना चाहिए। लेकिन आज उन किसानों की आह सुनने वाला कोई नहीं है। बहरहाल मैं उन सियासी नेताओं को खासतौर पर नींद से जागना चाहता हूं जो इस क्षेत्र के किसान हितैषी बनकर दशकों से राजनीतिक फसल काट रहे हैं और किसानों के लिए कुछ खास जतन नहीं कर रहे हैं। ध्यान रहे अगर किसानों ने उनसे नाराज की मौत ले ली, तो उनको बहुत भारी पड़ेगी क्योंकि किसानों के नाम पर जिस सट्टा की मलाई खाकर जंगली कर रहे हो वही किसान उसे जंगली को बंद करना भी भली भांति जानता है।

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