डॉ. मोहन भागवत ने दिखाया भाजपा को आयना
प्रो. नीलम महाजन सिंह
डॉ. मोहन भागवत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक हैं तथा बहुव्यापक व उदारवादी दृष्टिकोण रखते हैं। पिछले दिनों, डॉ. भागवत का सरकार पर कटाक्ष चर्चा का विषय बना हुआ है। क्या हैं आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी के आपसी
संबंध? आरएसएस को पहले तो ‘संस्कृतिक संस्था’ माना जाता था। परंतु इसमें कोई संदेह नहीं है, कि साँस्कृतिक संस्था का हमेशा राजनीतिक कार्य भी रहा है। भारतीय जान संघ के संस्थापक, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी व स्वयं प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, आरएसएस में सक्रिय रूप से कार्यकर्ता थे। 2024 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं हुआ। इस कारण एनडीए की गठबंधन सरकार बनाई गई है, जिसमें विशेष रूप से तेलुगु देशम पार्टी व जनता दल यूनाइटेड का समर्थन प्राप्त है। भाजपा का ‘इसकी बार 400 पार’ का नारा, ठीक वैसे ही था, जैसे कि पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्री, प्रमोद महाजन द्वारा दिया गया नारा, ‘इंडिया शाइनिंग’, मुहँ के बल गिरा। जबकि अनेक कठिनाइयां देश के समक्ष थीं। डा: मोहन मधुकर भागवत (Mohan Madhukar Bhagwat) एक राष्ट्रवादी नेता हैं, व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के छठे सरसंघचालक के रूप में मार्च 2009 से कार्यरत हैं। वे के.एस. सुदर्शन के उत्तराधिकारी बने व गुरु गोलवलकर और डॉ. के.बी. हेडगेवार के बाद, सबसे कम उम्र के आरएसएस प्रमुख बने। मोहन भागवत के सरसंघचालक बनने के बाद, भाजपा को कई चुनावों में भारी सफलता मिली है। उनका नाम 2019 में ‘सबसे शक्तिशाली लोगों’ की सूची में भी आया। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा, लोकमान्य तिलक विद्यालय से पूरी की व नागपुर के जनता कॉलेज से विज्ञान में स्नातक किया। डा. मोहन भागवत भारत के लिए पूर्णकालिक रूप से काम करने वाले आरएसएस स्वयंसेवकों के प्रभारी के रूप में पदोन्नत हुए। भारत सरकार द्वारा केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) को सुरक्षा प्रदान करने का आदेश देने के बाद 2015 में भागवत को ज़ेड Z+ VVIP सुरक्षा कवर दिया गया है। 2017 में वे भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा राष्ट्रपति भवन में आधिकारिक रूप से आमंत्रित होने वाले पहले आरएसएस प्रमुख बने। भाजपा अध्यक्ष जय प्रकाश नड्डा ने चुनावों के दौरान कहा था, कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता इतनी अधिक है कि जनता भाजपा को 400 से अधिक सीटें मिलेंगीं। नड्डा ने यह भी कहा कि आरएसएस स्वयं सेवकों की आवश्यकता तब होती, अगर नरेंद्र मोदी के चेहरे से बीजेपी को वोट नहीं मिलते। वह क्या बात कही नड्डा ने! इससे स्वयं सेवकों की भावना को ठेस पहुंचा। जे. पी. नड्डा ने चाटुकारिता कुछ अधिक ही कर दी ! एक ओर तो मोहन भागवत ने कहा था कि ’20-30 साल में भारत विश्वगुरु बनेगा’? यह डॉ. मोहन भागवत का बड़ा ब्यान था। ‘मुसलमानों पर हमले रुक नहीं रहे, आप आवाज़ उठाएं’, देश के प्रबुद्ध मुसलमानों ने आरएसएस सरसंघचालक को चिट्ठी द्वारा अग्राह्य किया था।आरएसएस की बैठक मे संघ प्रमुख मोहन भागवत और दत्तात्रेय होसबले ने महिलाओं की संघ में एंट्री, मुस्लिमों में पैठ, जैसे 6 प्वाइंट सामने रखे थे। 2024 चुनाव से पहले का यह बड़ा दांव रहा। आरएसएस मिडिया के डॉ. मनमोहन वैद्य ने पत्रकारों से बातचीत में यह जानकारी दी। “सालभर में एक लाख जगहों तक आरएसएस पहुंचेगा”। क्या संघ प्रमुख मोहन भागवत का ब्यान सरकार पर टिप्पणी नहीं थी ? डा. मोहन भागवत ने लोकसभा चुनावों में प्रचार के तरीकों का भी ज़िक्र किया। उन्होंने कहा, “चुनाव में एक दूसरे को लताड़ना, टेक्नोलॉजी का गलत इस्तेमाल और झूठ प्रसारित करना सही बातें नहीं हैं। ये अनुचित आचरण है। क्योंकि चुनाव सहमति बनाने की प्रक्रिया है”। हाल में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों, राजनीति और राजनीतिक दलों के रवैये पर डॉ. भागवत ने अपनी राय रखी थी। विपक्ष की तरफ से भागवत के ब्यान के अलग-अलग मायने निकाले जा रहे हैं। नागपुर में संघ के कार्यकर्ता विकास वर्ग के समापन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए, सेवाभाव, मानवता व अन्य मुद्दों पर उन्होंने अपनी राय रखी थी। भागवत ने कहा कि जो सेवक होते हैं, उनमें अहंकार नहीं होना चाहिए। ‘अहंकार’ को आलोचकों ने मोदी सरकार से जोड़ दिया। संघ के कार्यकर्ता विकास वर्ग के समापन कार्यक्रम में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था, “काम करते सब लोग हैं, लेकिन काम करते समय मर्यादा का पालन करना चाहिए। मर्यादा ही अपना धर्म व संस्कृति है”। सारांशाार्थ उस मर्यादा का पालन करके जो चलता है, वो कर्म करता है, लेकिन कर्मों में लिप्त नहीं होता। उसमें अहंकार नहीं आता कि मैंने यह किया है। ‘वो ही सेवक कहलाने का अधिकारी है’। चुनावों में झूठ प्रसारित करना सही बात नहीं है। मोहन भागवत ने लोकसभा चुनावों में प्रचार के तरीकों का भी ज़िक्र किया। मोहन भागवत ने कहा था, “इस देश के लोग भाई-भाई हैं, इस बात को हमें अपने विचारों और अपने कामों में लाना होगा”। संसद में सरकार के विरोधियों को प्रतिपक्ष कहने की अपील की गई। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने विवाद के बीच ‘आरक्षण का समर्थन’ किया। मोहन भागवत ने कहा, “समाज में एकता चाहिए, लेकिन फ़िर भी अन्याय होता रहता है। इसलिए आपस में दूरी है, मन में अविश्वास है, हजारों-हजार वर्षों का काम होने के कारण चिढ़ भी है। हम सब एक हैं। सबके मत सही हैं। सब समान है, तो फिर अपने मत पर ही रहना ठीक है। दूसरों के मत का भी उतना ही सम्मान करना चाहिए”। उपलब्धियों का ढिंढोरा पीटने की ज़रूरत नहीं है। आजकल जब ‘हिन्दू राष्ट्र’ की चर्चा होती है तो, अनेक राजनीतिक विद्यार्थियों को ये नहीं मालूम कि, इस शब्द को किसने उजागर किया था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, देश की राजनीतिक व्यवस्था पर विशेष रूप से पथ-प्रदर्शक है। डॉ: केशव बलिराम हेडगेवार (01 अप्रैल 1889 – 21 जून 1940), जिन्हें उनके उपनाम ‘डॉक्टरजी’ के नाम से भी जाना जाता है, एक चिकित्सक व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संस्थापक सरसंघचालक (प्रमुख) थे, की याद में मनाया जा रहा है। हेडगेवार ने ‘हिंदू राष्ट्र बनाने के इरादे से हिंदुत्व की विचारधारा’ के आधार पर, 1925 में नागपुर में आरएसएस की स्थापना की। डॉ: केशव बलिराम हेडगेवार, कंदकुर्थी, मध्य प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान निज़ामाबाद, तेलंगाना) से संबंध रखते थे। उनका मानना था, “हिंदुओं की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत भारतीय राष्ट्रीयता का आधार होनी चाहिए”। 1939 में आरएसएस की एक बैठक के दौरान हेडगेवार और उनके शुरुआती अनुयायी; विजयादशमी के दिन आरएसएस की स्थापना, हिंदू समुदाय को उसके सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उत्थान के लिए संगठित करने और ‘अखंड भारत’ के लिए ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ प्राप्त करने के लिए एक उपकरण बनाने के उद्देश्य से की थी। हेडगेवार ने अपने हिंदू संगठन के लिए ‘राष्ट्रीय’ शब्द का सुझाव दिया, क्योंकि वे ‘राष्ट्रीय के साथ हिंदू पहचान को फिर से स्थापित करना चाहते थे’। अंततः यह कहना सत्य है कि हम सब भारतवासी, संविधान के अनुयायी हैं। जब राजनेता स्वयं को ‘जनसेवक’ कहते हैं तो फ़िर सत्ता का अहंकार क्यों? ‘अंत्योदय’ को लागू करना चाहिए, जिससे अंतिम पंक्ति में खड़े होने वाले, प्रत्येक जन को स्वावलंबी बनाने का प्रयास किया जाए। इतिहास घटनाक्रम का संकलन है परन्तु इसकी व्याख्या विविध प्रकार से की जानी चाहिए।
THE VIEWS IN THIS ARTICLE ARE PERSJBAL VIEWS OF प्रो: नीलम महाजन सिंह
(वरिष्ठ पत्रकार, विचारक, राजनैतिक समीक्षक, दूरदर्शन व्यक्तित्व व मानवाधिकार संरक्षण सॉलिसिटर)
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