मोदी सरकार की नई ट्रांस्फर पॉलिसी के विरोध में सड़कों पर उतरेंगे केंद्रीय विद्यालय के हजारों टीचर
नई ट्रांस्पर पॉलिसी के खिलाफ केद्रीय विद्यालय के शिक्षक संगठनों का आंदोलन का ऐलान, -मांगें न मानने पर काला बैज पहनने के साथ ही केवीएस और जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन का ऐलान
- मोदी सरकार की नई ट्रांस्फर फॉलिसी से केंद्रीय विद्यालय के हजारों शिक्षक नाराज
- पॉलिसी से 90 फीसदी शिक्षकों-कर्मचारियों के जीवन पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा
- केंद्रीय विद्यालय संगठन के स्कूलों में 80 फीसदी शिक्षक महिलाएं
- मुरली मनोहर जोशी की राह पर शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान
- आरोप –
केंद्रीय विद्यालय संगठन को निजी हाथों में (को) बेचने के लिए मोदी सरकार लाई नई ट्रांस्फर पॉलिसी - मोदी सरकार की नई ट्रांस्फर पॉलिसी महिला शिक्षक विरोधी
- शिक्षा मित्रों की तरह केंद्रीय विद्यालय में भी ठेका प्रथा शुरू करने की तैयारी
नयी दिल्ली। मोदी सरकार के शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की नई ट्रांस्फर फॉलिसी (नई स्थानांतरण नीति) से केंद्रीय विद्यालय के हजारों शिक्षक नाराज हैं। उन्होंने इस नई ट्रांस्फर फॉलिसी के खिलाफ आंदोलन का ऐलान कर दिया है। केंद्रीय विद्यालय संगठन बीते 30 जून 2023 को यह पॉलिसी जारी करने के बाद जुलाई में ही इस पर अमल भी करने जा रहा है। केंद्रीय विद्यालय संगठन प्रबंधन इस मामले में शिक्षक संगठनों की भी नहीं सुन रहा है। इन संगठनों का कहना है कि 2023 के लिए लागू की गई नई ट्रांस्फर फॉलिसी पूरी तरह से कर्मचारी हितों के लिए खिलाफ है। इससे 90 फीसदी शिक्षकों-कर्मचारियों के जीवन पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा।
केंद्रीय विद्यालय संगठन में 80 फीसदी शिक्षक महिलाएं ही हैं। इससे नई ट्रांस्फर फॉलिसी से सबसे ज्यादा बुरा असर महिलाओं पर ही पड़ने वाला है।
आरोप है कि नई ट्रांस्फर फॉलिसी इसलिए लाई गई है कि अधिक से अधिक शिक्षक वीआरएस ले लें, ताकि केंद्रीय विद्यालय संगठन को अडानी या अंबानी समूह को बेचा जा सके। इसलिए मोदी सरकार की नई ट्रांस्फर पॉलिसी महिला शिक्षक विरोधी है।
इसके अलावा केंद्रीय विद्यालय में अब भाजपा की सबसे प्रिय योजना ‘ शिक्षा मित्र’ की तर्ज पर केंद्रीय विद्यालय में भी ठेका प्रथा शुरू करने की तैयारी है। इसके लिए कहा गया है कि स्कूलों में 50 फीसदी शिक्षक कांट्रेक्ट पर रखे जाएंगे। इससे सरकार को ज्यादा वेतन नहीं देने पड़ेगा। कम पैसे पर ठेके पर शिक्षक रखे जाएंगे। इसलिए भी यह ट्रांस्फर पॉलिसी लाई गई है।
अप्रैल 2023 तक देश में कुल 1,253 केंद्रीय विद्यालय हैं और तीन स्कूल विदेश में काठमांडू, मॉस्को और तेहरान में हैं । इनमें कार्यरत शिक्षकों और कर्मचारियों की संख्या लगभग 60 हजार है।यानी इस पॉलिसी से इतनी संख्या में परिवार संकट में फंसने वाले हैं।
केंद्रीय विद्यालय संगठन प्रबंधन ने शिक्षक संगठनों के बार-बार अनुरोध के बाद 12 जुलाई को बैठक तो बुलाई थी, परंतु वह ऑनलाइन बैठक थी। जबकि कोराना काल कब का खत्म हो चुका है। इस बैठक में कमिश्नर की बजाए ज्वाइंट कमिश्नर ही शामिल हुए। उन्होंने यही कहा कि वे शिक्षकों की बात को कमिश्नर के सामने रख देंगे।इसके बाद अब शिक्षकों के सामने आंदोलन ही एक मात्र रास्ता रह गया है।
केंद्रीय विद्यालय के शिक्षकों के तीनों संगठनों ने संयुक्त तौर पर ऐलान किया है कि यदि केवी कमिश्नर शुक्रवार यानी 14 जुलाई तक सिफारिशों और अनुरोधों पर संतोषजनक जवाब नहीं देते हैं, तो 18 जुलाई को सभी स्कूलों में शिक्षक ब्लैक बैज (काला बैज) प्रदर्शन में भाग लेकर अपना असंतोष व्यक्त करेंगे।इस पर भी यदि केवीएस ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो केवीएस के सभी क्षेत्रीय कार्यालयों, मुख्यालय और नई दिल्ली में जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया जाएगा।
केवीएस के शिक्षक केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय से अनुरोध कर रहे हैं कि वे स्थानांतरण नीति 2023 को समझने का प्रयास करें। 2023 के लिए लागू की गई नई स्थानांतरण नीति पूरी तरह से कर्मचारी हितों के लिए हानिकारक है। इस प्रस्ताव से 90 प्रतिशत कर्मचारियों के जीवन पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा। इनमें अधिकतर महिलाएं हैं। इसके साथ ही, हमने आवश्यक बदलाव लागू होने तक स्थानांतरण आवेदन भरने के दूसरे चरण को तत्काल रोकने का भी आह्वान किया है।
यह भी जानने लायक है कि अटल सरकार के समय एचआरडी मंत्री रहे डा. मुरली मनोहर जोशी भी लगभग ऐसी ही पॉलिसी लाए थे। तब अटल सरकार के हारने की एक वजह डा जोशी काकामकाज का यही रवैया जिम्मेदार माना जाता है जो कि अब शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रदान करने जा रहे हैं।
चर्चा है कि मोदी सरकार केंद्रीय विद्यालय को अडानी या अंबानी को बेचने के लिए ही यह ट्रांस्फर पॉलिसी लाई है। इस चुनावी साल में इस ट्रांस्फर फॉलिसी से बड़ी संख्या में टीचरों पर तबादले की तलवार लटक गई है। उनमें भय है कि बिना मांगे तबादला करने से उनके परिवार भी प्रभावित होंगे और केंद्रीय विद्यालय में शैक्षणिक कार्य भी प्रभावित होना तय है।
तबादले के लिए पहले की पॉलिसी में यह था कि वरिष्ठता क्रम से प्रमोशन हो जाने या परीक्षा पास करने प्रमोशन होने पर उस पोस्ट की ज्वाइनिंग से उस स्टेशन पर नए सिरे से वरिष्टता शुरू होती थी। परंतु अब ट्रांस्पर के लिए वरिष्ठता एक स्टेशन पर पहली पोस्ट से मानी जाएगी।एक स्टेशन पर रहने की अवधि पांच साल तय की गई है। यानी एक स्कूल में पांच साल रहने के बाद उसका दूर दराज के क्षेत्र में तबादला हो जाएगा।
अभी तक की पॉलिसी में यह है कि यदि किसी टीचर का प्रमोशन हो जाता है और उसको उसी राज्य में ज्वाइनिंग मिल जाती है तो उसकी ट्रांस्फर की सीनियरिटी नए पद से मानी जाती है । अब नई पॉलिसी में प्रमोशन या परीक्षा पास करके भी नई पोस्ट पर काम करने समेत शुरू से लेकर अंत तक का समय जोड़ कर ट्रांसफर के लिए सिनियरटी मानी जाएगी । यानी एक राज्य में जितने साल रहा है उसको जोड़ा जाएगा।
यह फौजियों की नौकरी के लिए जैसा जैसा नियम है।
इससे दिल्ली, मुंबंई, लखनऊ, चंडीगढ़ समेत सभी शहरों में कार्यरत अधिकतर टीचरों पर तबादले की तलवार लटक गई है। 50-55 साल की उम्र में चल रहे टीचरों को अब अपने परिवार से दूर जाने पर मजबूर होना पड़ेगा या वीआरएस लेना होगा। यह कहा जा रहा है कि दूर-दराज के शिक्षकों को दिल्ली व अन्य शहरों में लाने के लिए यह पॉलिसी लाई गई है। जबकि ऐसे बहुत कम टीचर हैं, क्यों कि अधिकतर स्कूल शहरों में ही हैं, गांवों में नहीं हैं।
यह उसी तरह की पॉलिसी है जिसे एचआडी मंत्री रहते हुए डा मुरली मनोहर जोशी और तब के केवीएस कमिश्नर हर्षमान कैरे लाए थे। तब बहुत से बुजुर्ग व बीमार टीचर्स को देश भर से इधर से उधर ट्रांसफर कर दिया गया था । उससे बहुत से टीचरों के घर बर्बाद हो गए थे । बाद में यूपीए सरकार आने पर एचआरडी मंत्री अर्जुन सिंह ने इस मामले को सुलझाने के लिए कई केंद्रीय विद्यालयों में दो-दो पाली खोली थी।
यह भी जानने लायक है कि टीचर कहीं भी हो उसे तो पढ़ाना ही है। तो क्या वे अपने घरों के आसपास ही नहीं पढ़ा सकते? केंद्रीय विद्यालय का रिजल्ट इसका सबूत है कि वहां के टीचर अच्छा पढ़ाते है।
चुनावी साल में शिक्षा मंत्रालय ऐसा फैसला करने जा रहा जिसे बहुत से टीचर्स के घर बर्बाद हो जाए या बुढापा की ओर बढ़ रहे टीचर घर से दूर दराज चले जाएं या वीआरएस लेने पर मजबूर हो जाएं।
केंद्रीय विद्यालय के लगभग 60 हजार टीचर-कर्मचारी हैं। इनके परिजनों को भी शामिल कर दें तो यह संख्या लगभग तीन लाख हो जाती है। अब चुनावी साल में ये सभी मोदी सरकार को कोसने लगे हैं।