एक प्रधानमंत्री बनने के लिए सांसदों का बहुमत चाहिए, लेकिन एक बादशाह खान बनने के लिए ईश्वर की कृपा.
राजीव नयन बहुगुणा
यह भारत उपमहाद्वीप के एक देव तुल्य नेता खान अब्दुल ग़फ्फार खान हैं, जो न केवल पाकिस्तान, बल्कि भारत का भी प्रधानमंत्री बनने लायक योग्यता, क़द और अधिकार रखते थे.
हम सिर्फ़ नेहरू, पटेल, जिन्नाह, शेख अब्दुल्ला आदि को अधिक जानते हैं. लेकिन गाँधी के पट्ट शिष्य जवाहर लाल नेहरू नहीं, बल्कि विनायक नरहरी भावे उर्फ़ विनोबा थे, जो आमरण वर्धा जिले के पवणार नामक एक गाँव में रहे.
बादशाह खान भी ऐसे ही थे.
भारत विभाजन का पत्थर सर्वाधिक गाँधी और बादशाह खान के सीने पर पड़ा.
गाँधी ने अपने निर्णायक भारत छोडो आंदोलन का प्रथम सत्याग्रही नेहरू की बजाय विनोबा को बनाया था.
आज़ादी की बेला निकट आयी, तो गाँधी ने आह्वान किया, कि कांग्रेस के प्रथम श्रेणी के नेता गावों में बैठें, क्योंकि अब महत्व पूर्ण प्रश्न ग्राम स्वराज्य है.
दिल्ली का राज चलाने का काम दूसरे दर्ज़े के नेताओं को सौंपा जाये.
गाँधी के आदेश का पालन करते हुए विनोबा, जयप्रकाश, प्रभावती, रवि शंकर महाराज, बादशाह खान, दादा धर्माधिकारी, साने गुरू जी आदि अनेक नेताओं ने गाँव में बैठ कर स्वयं को प्रथम श्रेणी का नेता साबित किया.
तब देश के लिए समर्पण की ललक थी.
देश की भूमि समस्या के निदान वास्ते विनोबा भावे ने 1952 के आसपास भूदान यात्रा शुरू की. वह ज़मीनदारों से भूमि की भिक्षा मांगते भारत भर में घूमने लगे.
उड़ीसा के मुख्यमंत्री, शायद नव कृष्ण चौधुरी एक दिन वास्ते उनकी यात्रा में पैदल चले. अपने ड्राइवर, पीए और सुरक्षा अधिकारी को कहा कि अगले पड़ाव पर पहुंचो. शाम को राजधानी वापस लौटूंगा.
फिर शाम को पड़ाव पर पहुंच कर बोले, कल भर बाबा ( विनोबा ) के साथ और पैदल चल लेता हूँ. कल शाम वापस लौटेंगे.
फिर अगली शाम अपने स्टॉफ और ड्राइवर से कहा – तुम लोग लौट जाओ. अब मैं वापस नहीं लौटूंगा. फिर वह विनोबा के साथ चल पड़े, और कभी राजधानी वापस नहीं लौटे.
मैं इसी लिए एक प्रधानमंत्री के रूप में मोदी जी का यथोचित सम्मान करता हूँ, लेकिन उन्हें अपना नेता नहीं मानता.
क्योंकि इससे पहले मैं मनमोहन सिँह जी को भी अपना नेता नहीं मानता था.
मैं किसी भी राजनितिक को अपना नेता नहीं मानता.
बल्कि मेरे नेता बादशाह खान, विनोबा, मल्लिकार्जुन मंसूर, महादेवी वर्मा, फणीश्वर नाथ रेणु, शंकर गुहा नियोगी और भीम सेन जोशी रहे हैं.
एक प्रधानमंत्री बनने के लिए सांसदों का बहुमत चाहिए, लेकिन एक बादशाह खान बनने के लिए ईश्वर की कृपा.