उन्हें वास्तव में ज़िन्दगी जीना आता था
व्योमेश जुगरान
उन्हें जिन्दगी जीना आता था……। बगैर भेदभाव के सबको अपना बनाने का गुण उनमें कूट-कूट कर भरा था…….। वह शांतचित्त हो मनोयोग से बात सुनते थे और फिर चिंतन-मनन के बाद पूरी शालीनता और मृदुभाषी अंदाज में अपनी प्रतिक्रिया देते थे……..। पत्रकारिता का उनका मंत्र था कि आप बेशक विचारधारा के साथ रहिए, मगर अपनी लेखनी में उसे घुसपैठ मत करने दीजिए……। उनका सपना था कि हिन्दी पत्रकारिता अंग्रेजी की चेरी न रहे और अपना श्रेष्ठ मुकाम हासिल करे……। वह मृत्यु को मुक्ति कहते थे और मातम मनाने के पक्षधर नहीं थे…..।
ये बातें हिन्दी पत्रकारिता के आधार स्तंभ रहे डॉ. वेदप्रताप वैदिक की स्मृति में आयोजित एक कार्यक्रम में उन वक्ताओं ने कहीं, जिन्हें किसी न किसी रूप में उनका निकट सानिध्य प्राप्त था। इस कार्यक्रम का आयोजन 26 मार्च को प्रेस क्लब, नई दिल्ली में डा. सूर्य प्रकाश के संयोजन में ‘पर्वतीय लोक विकास समिति’ ने किया। डॉ. वैदिक इस संस्था के संरक्षक भी थे।
कार्यक्रम में डॉ. वैदिक और 26 मार्च को ही दिवंगत हुए मूर्धन्य पत्रकार श्री हरीश चन्दोला की स्मृति में दो मिनट का मौन भी रखा गया। यह संयोग ही था कि जहां डॉ. वैदिक की गिनती देश के सर्वश्रेष्ठ हिन्दी पत्रकारों में होती है, वहीं श्री चंदोला की अंग्रेजी के दिग्गज पत्रकार माने जाते हैं। दोनों लगभग समकालीन थे और वैदेशिक विषयों के अध्येता रहे हैं। हिन्दुस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया और इंडियन एक्सप्रेस में रहे श्री हरीश चंदोला की छवि नेहरू-इंदिरा युगीन ‘वार जर्नलिस्ट’ के रूप में रही है। वह ऐसे पहले पत्रकार थे जिन्होंने सन 62 के युद्ध से बहुत पहले तिब्बत की यात्रा कर यह स्टोरी ब्रेक की कि चीन सिचियान के गंतोक होकर ल्यासा तक गुपचुप सड़क बना रहा है। इंग्लैंड के ‘आब्जर्वर’ और अन्य विदेशी अखबारों ने उनकी इस खबरों का संज्ञान लिया और खूब तहलका मचा। हालांकि भारत का तत्कालीन नेतृत्व इसे मानने को तैयार नहीं था और इन खबरों को उनकी दिमागी उपज बता रहा था। श्री चंदोला ने नार्थ ईस्ट के विशेषज्ञ भी थे और इंदिरा गांधी के कार्यकाल में नगा शांति वार्ता के निमित्त भूभिगत नगाओं व भारत सरकार के सर्वाधिक विश्वसनीय मध्यस्थों में थे।
बहरहाल, श्रद्धांजलि सभा में जिन शिक्षकों, पत्रकारों, समाज सेवियों और उद्यमियों व अन्य विद्वतजनों ने अपने विचार रखे, उनमें बीकानेर इंटरनेशनल के मुख्य कार्यकारी नवरत्न अग्रवाल, प्रधानमंत्री कार्यालय से जुड़े और डॉ. वैदिक के सहयोगी राजेंद्र प्रसाद, प्रोफेसर सुषमा चौधरी, एडवोकेट सुधीर सजवान, अणुव्रत से जुड़े योग प्रशिक्षक रमेश कांडपाल, नेशनल एक्सप्रेस के संपादक विनीत गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार पीयूष पंत, भानुप्रताप नारायण मिश्र, ए. के. अवस्थी, कैलाश चंद्र पांडेय, सुनील नेगी, देव सिंह रावत, विष्णु गुप्त, एडवोकेट सुधीर सजवान और उद्यमी विनोद नौटियाल शामिल थे। सभा की अध्यक्षता श्री वीरेन्द्र दत्त सेमवाल ने की। कार्यक्रम के संयोजन में श्री दीवान सिंह रावत, श्री दिनेश डिमरी, वीर सिंह राणा और श्री नैनवाल इत्यादि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
(चंदोला जी की तस्वीर ‘बारामासा’ से)