google.com, pub-9329603265420537, DIRECT, f08c47fec0942fa0
Uttrakhand

उत्तराखंड में भी आ सकता है टर्की जैसा भूकंप

ऐसी भविष्यवाणियां हो रही हैं कि टर्की की तरह उत्तराखंड में भी एक अत्यंत प्रभावशाली भूकंप भविष्यवाणियां में आ सकता है जो बहुत बड़े पैमाने पर तबाही लाएगा. हालांकि कई नामी सीस्मोलॉजिस्ट्स जिनमे विदेशी अर्थ और भूकंप वैज्ञानिक भी शामिल हैं ने पहले ही – कई वर्षों पूर्व इस बात की घोषणा कर दी थी कि अब से पचास वर्षों के बीच कभी भी उत्तराखंड में रिचटर स्केल ८ से अधिक पैमाने पर प्रभावशाली भूकंप आ सकता है जो उत्तराखंड सहित दिल्ली तक अपने भयंकर बर्बादी के निशाँ छोड़ेगा लेकिन किसी ने निश्चित वर्ष, दशक या एक्यूरेट टाइम पीरियड पर प्रकाश नहीं डाला और तब से अब तक लगभग एक दशक तो बीत ही चूका है . हालाँकि इससे पूर्व उत्तराखंड ने कई विनाशकारी भूकम्प अवश्य देखे . १९९१ का विनाशकारी उत्तरकाशी भूकंप किसी से छिपा नहीं है जिसमे सैकड़ों गाँव तबाह हो गए और लगभग ७५० लोगों को अपनी बेशकीमती जानों से हाथ धोना पड़ा. २०१३ का केदारनाथ घाटी का फलेश फ्लूड्स का भयंकर मंजर भी किसी से छिपा नहीं है जिसने न सिर्फ हज़ारों लोगों की बेशकीमती जानें लील ली बल्कि उत्तराखंड , गढ़वाल के हज़ारों भवन तहसनहस हो गए और ग्रामीण पूरी तरह से बर्बाद. सर्कार को हज़ारों हज़ार करोड़ का खामियाजा भुगतना पड़ा. इसके बाद २०२१ के धौली गंगा नदी तबाही ने लगभग २०० लोगों की जाने ली और चिपको आंदोलन की प्रणेता गौरा देवी के गाँव को भूसंकलित कर दिया. आज ये पूरा गाँव खली हो चूका है . मौजूदा जोशीमठ भूंधसाव और लगभग एक हज़ार से अधिक घरों में आयी दरारों के चलते आज पूरा जोशीमठ नगर आंदोलित है और जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के अध्यक्ष अतुल सती और हज़ारों पीड़ित और कुंठित जनता इस भूधसाव के लिए सीधे और स्पष्ट तौर पर ५२० मेगावाट क्षमता वाली विष्णुगाड तपोवन परियोजना के साथ साथ मारवाड़ी बद्रीनाथ हाईवे को जिम्मेदार मानती है और इनको तात्कालिक तौर पर बंद करने की मांग कर रही है. दरअसल उत्तराखंड सीस्मिक जोन ५ के अंतर्गत आता है और पूर्व में भी यह प्रदेश कई भयानक भूकंप , फ़्लैश फ्लूड्स प्राकृतिक आपदाएं और जान माल का नुक्सान झेल चूका है लेकिन समय समय पर यहाँ सत्ता में आरूढ़ राजनैतिक दल उत्तराखंड की इकोलॉजी और पर्यावरण के प्रति बिलकुल लापरवाह और गैर चिंतित हैं , उत्तराखंड में विशाल हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स और उनकी सैकड़ों किलोमीटर लम्बी टनल्स ने उत्तराखंड के पहाड़ों को अंदर खोखला कर दिया है और यहाँ हो रहे अन्दाधुन विस्फोटों ने पहाड़ों को जर्जर बना दिया है जो आये दिन भयंकर प्राकृतिक आपदा और बहुसंकलनों और भूंधसाव को जन्म दे रहे हैं. स्वयं तदेन केंद्रीय जल मंत्री के संसद में उत्तराखंड में धड़ल्ले से निर्माणाधीन हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स को बंद करने की मांग की थी और इन्हे उत्तराखंड के पर्यावरण और इकोलॉजी के लिए अत्यंत घातक माना था लेकिन बाद में भाजपा और कांग्रेस की सरकारों ने आपसी समझौता कर माननीय सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर इन्हे अपनी हरी झंडी दे दी थी. उत्तराखंड में मौजूदा समय में निर्माणाधीन चारधाम यात्रा परियोजनाओं और ऋषिकेश से कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट ने रही सही कसर पूरी कर दी जिनके चलते हज़ारों पेड़ कटे , लाखों टन मलबा चलती नदियों में गिराया गया और ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक ७० फीसदी रेल टनल्स बनाई गयी, पहाड़ों को भीतर से खोखला कर . इसी बीच टाइम्स आफ इंडिया की एक ताज़ा रपट के मुताबिक उत्तराखंड की भूगर्भीय फाल्ट लाइन्स में टर्की की तरह भविष्य में एक भयंकर भूकंप अपेक्षित है. ये जानकारी टाइम्स ऑफ़ इंडिया को नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट के चीफ साइंटिस्ट ऑफ सीस्मोलोग्य श्री डॉ पूर्ण चंद्र राओ ने दी. उन्होंने चेतावनी दी कि उत्तराखंड के नीचे बहुत तेजी से स्ट्रेस एनर्जी पैदा हो रही है और इस संगृहीत ऊर्जा के यकायक रिलीज़ होने पर उत्तराखंड क्षेत्र में भविष्य में एक भयंकर भूकम्प अपेक्षित है . उन्होंने कहा कि फिक्स तारिक़ हालाँकि नहीं बताई जा सकती लेकिन इसमें मल्टीप्ल फैक्टर्स इन्वॉल्व हैं जो एक जेओग्रीकल एरिया से दूसरे एरिया तक डिफर कर सकते हैं. टाइम’स ऑफ इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया की उत्तराखंड पर केंद्रित उन्होंने ८० सीस्मिक स्टेशंस बनाये हैं और उत्तराखंड में चल रही भूगर्भीय हलचलों का गहराईयों से अध्ययन कर रहे हैं.

Related Articles

One Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button