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Uttrakhand

कई वर्षों के राजनैतिक सन्यास के बाद पुनः सक्रीय हुए गोविंदाचार्य . नरोरा में शुभारम्भ किया ५१ दिवसीय कई वर्षों के राजनैतिक सन्यास के बाद पुनः सक्रीय हुए गोविंदाचार्य . नरोरा में शुभारम्भ किया ५१ दिवसीय गंगा संवाद यात्रा

राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संरक्षक सुप्रसिद्ध विचारक के एन गोविंदाचार्य की 11 अक्तूबर से 30 नवंबर 2022 तक चलने वाली 51 दिवसीय गंगा संवाद यात्रा 11 अक्तूबर को प्रातः नरवर घाट नरौरा में गंगा पूजन व कलश स्थापना के साथ आरंभ हुई। घाट पर औषधिय गुणों से भरपूर पवित्र रुद्राक्ष का पौधा भी लगाया गया। एनजीओ उदंयकार के संयोजक आशीष पोखरियाल ने सूखे कचरे से बनी स्वामी विवेकानंद के चित्र से सजी तश्तरी गोविंदाचार्य को भेंट की। यात्रा दूसरे दिन प्रातः नरौरा डैम ब्रिज से शुरु हुई, लगभग 12 कि0मी0 लंबी यात्रा गांव विचपूरी सैलाब व गांव रसलपुर होते हुए दोपहर में गुनौर पहुंची, रात्रि विश्राम गांव जुनावाई में होगा।


गंगा संवाद यात्रा के अगुवाई कर रहे राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संरक्षक सुप्रसिद्ध विचारक के एन गोविंदाचार्य ने कहा कि गंगा केवल जलनिकाय नहीं है बल्कि जैसे प्रभु श्रीराम भारत की अस्मिता की पहचान हैं वैसे ही गंगा भारत की प्राण है। यह यात्रा संवाद के साथ संयम यात्रा भी है, संबंध यात्रा भी है। अगर गंगा से मां का नाता है तो पुत्र का कर्तव्य भी समझना होगा। भारत संबंधों का समाज है, कोरोना महामारी ने यह सिखाया है कि धन, मकान, जमीन महत्वहीन है, संबंधों का आदर और पहचान जरुरी है। संबंथ पुष्ट होंगे, अपनत्व होगा तभी सुरक्षा होगी। यह जरुरी नहीं है कि आधुनिकता के लिए प्रकृति का विनाश हो, विकास की सही अवधारणा परिवार आधारित विकास हो, न कि बाजार आधारित विकास हो।
गोविंदाचार्य ने कहा कि गौ और गंगा भारत की निशानी हैं, वे किसी के साथ पक्षपात नहीं करती, चाहे कोई जात का हो, कोई संप्रदाय का हो, कोई भाषा का हो। गंगा जीवनदायिनी के रुप में सभी को जल प्रदान करती है और गाय अमृत रुपी दूध प्रदान करती है। यात्रा के माध्यम से हम जन-जागरण कर रहे हैं ताकि आने वाली पीढ़ी स्वस्थ एवं सुरक्षित रहे इसलिए कोशिश कर रहे हैं कि गंगा प्रदूषण मुक्त हो, अविरल व निर्मल बहे। गाय जिसने वर्षों तक दूध से पाला-पाशा हो बूढ़ी होने पर उसे छोड़ना उचित नहीं है, गाय किसान के घर के खूंटे पर ही सुरक्षित है। उन्होंने कहा कि सरकारों ने अब तक गंगा की सफाई पर आम जनता के हजारों करोड़ रुपये खर्च कर दिए हैं, इसके बावजूद अनेक स्थानों पर नालों से बिना शोधित हुए गंदा पानी गंगा में पहुंच रहा है। स्वस्थ व स्वच्छ गंगा के लिए सरकार अपना काम करे व समाज अपनी जिम्मेदारी समझे, हम सरकार की बात सरकार से व समाज की बात समाज से करने में विश्वास रखते हैं। यह यात्रा समाज की भूमिका व सक्रिय सहभाग के लिए प्रोत्साहित करने के निमित्त भी है।
गंगा संवाद यात्रा में शामिल होने दिल्ली से पहुंचे, शहरी मामलों के विशेषज्ञ एवं राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के राष्ट्रीय सह-संयोजक जगदीश ममगांई ने सह-यात्रियों व जन समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि गंगा के वेग ने सिकंदर को बेबस कर दिया था, मुगल व ब्रिटिश भी आए लेकिन हजारों वर्षों से गंगा निर्मल और अविरल बहती रही। गंगा अपने जल को खुद ही स्वच्छ करती थी, इसके जल को कितने ही दिनों तक भर कर रखो वह स्वच्छ रहता, दैनिक पीने के लिए, पूजा-पाठार्थी आचमन कर इसे पीते, आखिरी समय आने पर गंगाजल पिलाया जाता लेकिन गंगाजल के दूषित होने की कल्पना तक नहीं थी। परन्तु पिछले 50 वर्षों में आखिर ऐसा कैसे हुआ कि गंगा दूषित हुई और फिर पानी जहरीला होने लगा, स्वतः साफ करने की उसकी प्रवृत्ति समाप्त हो गई। उत्तर प्रदेश के अधिकतर क्षेत्र में प्रदूषण का उच्च स्तर व्याप्त है, आज गंगा का पानी पीने के साथ कृषि के लिए भी हानिकारक है। गंगा की सफाई पर विश्व बैंक व जर्मनी से ऋण लेकर भारत सरकार अरबों रुपया खर्च कर चुकी है, इसके बावजूद प्रदूषण में वृद्धि हो रही है। सफाई अभियान मौकापरस्त व भ्रष्टाचारी गिद्दों की भेंट चढ़ गया। गंगा को माँ मानते हैं लेकिन उसी माँ के उदर को चीरकर बड़े पैमाने पर अवैद्य बालू खनन होता है, यह नदी के प्रवाह में बाधक बन प्रदूषण में वृद्धि करता है। अवैध खनन गतिविधियों में बाहुबली माफिया सक्रिय हैं, इस अवैद्य कमाई के बल पर वे नेता बन जाते हैं, मंत्री बन जाते हैं।
ममगांई ने कहा कि सरकारें नदियों को गंदा होने से नहीं रोकती और प्रदूषित होने पर धनराशि लूटी-लुटाई जाती है, अपशिष्ट पुनर्चक्रण और उसके उपयोग की कोई नीति नहीं बनाती है। गंगा की स्वच्छता की योजना तब तक सफल नहीं हो सकती जब तक लोग अपना नजरिया एवं आदतें नहीं बदलते, उनके दैनिक निपटान का वैकल्पिक प्रबन्ध नहीं होता व गंगा तट पर बसे परिवार इस प्रयास का हिस्सा नहीं होते हों । घरों से निकलने वाला अपशिष्ट खेतों की सिंचाई के लिए उपयोगी साबित हो सकता है, नदी में सीवेज डालने की बजाए खेतों में डालने से यह खाद का भी काम करेगा और शोधन का खर्च भी बच जाएगा। रासायनिक व औद्योगिक कचरे को नदी में गिरने से रोकने के लिए गंगा के समानांतर ट्रंक सीवर बिछाए जा सकते हैं। अधिकतर राज्यों में बावड़ी, जोहड़, पोखर, झील, तालाब आदि जल निकाय मृत स्थिति में हैं, कई जगह इन पर अवैद्य निर्माण हो गए परन्तु सरकारी तंत्र न तो अवैद्य कब्ज़े हटाता है और न ही मृत जल निकायों को पुनर्जीवित करता है, जल निकायों को स्वस्थ व गतिशील रखने से नदियों पर दबाब में कमी आएगी। नदियों में बड़े बांधों का निर्माण और पीने व सिंचाई में पानी की खपत के लिए उनका स्वाभाविक प्रवाह रुक जाता है, अविरल प्रवाह नदी का प्राण है, इसमें कोई भी रुकावट नदी की मृत्यु का कारक होती है।
जे पी आंदोलन के वरिष्ठ नेता एवं सरदार पटेल स्मारक समिति के अध्यक्ष राम नगीना सिंह ने कहा कि आजादी के 75 वर्ष में देश ने बहुत कुछ पाया लेकिन बहुत कुछ खोया भी है। भारत युवा देश है लेकिन युवा बेरोजगार रहें, उन्हें काम न मिले, यह चिंता का विषय है। आज भी माता-बहिनें सुरक्षित नहीं, महंगाई से जनता त्रस्त है। भारत में नालंदा व तक्षशिला जैसे उन्नत विश्वविद्यालय थे, ऐसे विश्व में कई नहीं थे लेकिन आज हमारे बच्चे विदेशों में उन्नत शिक्षा लेने जा रहे हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रम गंगा संवाद यात्रा में समाज के ज्वलंत मुद्दों पर भी चिंतन होना चाहिए।

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