google.com, pub-9329603265420537, DIRECT, f08c47fec0942fa0
India

राष्ट्रपति को देश के अहम सवालों पर अवश्य संज्ञान लेना चाहिए जैसे अग्निवीर योजना के पश्चात घटी निंदनीय और चिंतनीय घटनाएं

महेश चंद्रा , वरिष्ठ समाजसेवी लेखक , चिंतक व् ब्यूरोक्रेट ( सेवानिवृत)

21 जून, 2022 को विपक्षी दलों ने संयुक्त रुप से यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति पद हेतु अपना उम्मीदवार बनाने की सहमति दी। इसके पश्चात बिना शोर-शराबे के भाजपा ने उड़ीसा से आने वाली और झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रोपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया। आज देश की राजनीति दो स्पष्ट विपरीत विचारधाराओं में बंटने के बदले दो विरोधी खेमों में बंट गई है, एक भाजपा और उसकी साथी दलोः का राजग का है और दूसरा कॉन्ग्रेस तथा भाजपा विरोधी क्षेत्रीय दलों का है। इन दोनों खेमों को राष्ट्रहित के बदले आपसी मतभेद ज्यादा महत्वपूर्ण जान पड़ते हैं और अपने अहंकार में देश हित में एकजुट होने के बदले अपने अपने हितों के लिए एकजुट होकर आरोप-प्रत्यारोप में संलिप्त रहते हैंl
स्वतंत्रता के पश्चात के प्रथम दशक में व्याप्त राष्ट्रवाद, नैतिकता और धर्मनिरपेक्षता के साथ मौजूद प्रजातंत्र की भावना समय के साथ घटती चली गई और आज प्रजातंत्र के ये आधारभूत स्तंभ किसी भी राजनीतिक पार्टी के कार्यक्रमों में नहीं दिखते।
देश की स्वतंत्रता के पश्चात जब देश में कॉन्ग्रेस एकमात्र राजनीतिक पार्टी वजूद में थी, उस समय भी कांग्रेश पार्टी के दिग्गजों ने देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की इच्छा के विपरीत बाबू राजेंद्र प्रसाद जी को राष्ट्रपति के पद के लिए चुना, जिससे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति एक दूसरे के कट्टर समर्थक होने के बदले नैतिक मूल्यों के आधार पर स्वतंत्र निर्णय ले सकें और उनके आपसी मधुर संबंध से राष्ट्रहित के मुद्दे प्रभावित न हों।
राष्ट्रपति का और प्रधानमंत्री का पद हमारे प्रजातंत्र में एक दूसरे के पूरक होने के बदले एक दूसरे को कसौटी में कसने के पद हैं और देश के सुरक्षित भविष्य के लिए ये दोनों पद, दो मित्रों या गुरु शिष्य को कभी भी नहीं जाने चाहिए।
राजग और भाजपा के समर्थकों आज देश नहीं दिखाई देता, बल्कि उन्हें अर्जुन की तरह धनुर्धर बनने के लिए केवल और केवल मोदी दिखाई देता है और वह हर क्षण, हर पल मोदी के गुणगान को ही देशभक्ति, राष्ट्रभाक्ति एवं प्रजातंत्र मानते हैं।
येसे समय में, जब देश में एक के बाद एक चाहे वह नोटबंदी हो, चाहे वह एनआरसी-सीएए का विषय रहा हो, चाहे वह कृषि कानून और उनका विरोध रहा हो या अभी अभी अग्निपथ तथा अग्निवीर का सवाल हो, इन पर देश के सर्वोच्च पद पर पदासीन राष्ट्रपति ने देश में चल रहे विरोधों का कोई संज्ञान नहीं लिया। वर्तमान राष्ट्रपति के प्रति संपूर्ण सम्मान की भावना रखते हुए, मेरा व्यक्तिगत विचार है कि देश के राष्ट्र व्यापक मसलों पर उन्हें अवश्य संज्ञान लेना चाहिए था, जिसे वे शायद अपने प्रधानमंत्री मोदी के साथ मधुर संबंधों के कारण नहीं ले सके।
हमारे देश में हमेशा ही स्त्रियों को सर्वोच्च स्थान दिया गया है और इसी भावना के साथ स्त्री जाति एवं आदिवासियों को अपने पक्ष में करने के लिए भाजपा ने आदिवासी महिला द्रोपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है, जिन्हें आज तक केंद्र में काम करने का एक दिन का भी अनुभव नहीं है। राजग के राष्ट्रपति उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के प्रति पूर्ण सम्मान के साथ मेरा मन आशंकाओं से घिरा है कि क्या वह राष्ट्रपति बनने के पश्चात देशहित पर निर्णय लेने के लिए अपने और भाजपा कि संबंधों को भुला पायेंगी और क्या वह भाजपा सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों को व्यापक राष्ट्रहित के चश्मे से देख पाएंगी?
आज देश में छोटे-छोटे खेमों में बंटे विपक्ष को राष्ट्रहित में एक साथ आने के बदले अपने अपने स्वार्थों के लिए अलग-अलग रहने में ही अपना भला दिखाई दे रहा है और वह जितना भाजपा सरकारों का विरोध कर रहे हैं उससे ज्यादा अपने मुख्य विरोधियों, विपक्षी दलों का कर रहे हैं, जो जनहित में नहीं है।
ऐसे समय में यह निश्चित करने के लिए कि राष्ट्रपति अपने विवेक से काम करें और वह केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री का रबड़ स्टैंप न हो, विपक्ष ने पहली बार सूझ भूझ कर यशवंत सिन्हा को विपक्ष का साझा उम्मीदवार चुनकर देश को एक नई दिशा देने का कार्य किया है।
जिस प्रकार 1977 में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में विखरे विपक्ष ने एकजुट होकर कांग्रेस को हराया था, उसी प्रकार आज 2018 में यशवंत सिन्हा के नाम से एकजुट होकर संपूर्ण विपक्ष देश हित में राष्ट्रपति का चुनाव करके वर्तमान सत्ताधारी पार्टी के कार्यकलापों पर अंकुश लगाने का कार्य कर सकती है।
1969 के राष्ट्रपति चुनाव में नीलम संजीव रेड्डी कांग्रेस के राष्ट्रपति पद के आधिकारिक प्रत्याशी थे लेकिन उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अंतरात्मा की आवाज को सुनने की बात कहने पर वीवी गिरी राष्ट्रपति चुने गए। यशवंत सिन्हा जी वर्तमान सरकार के कट्टर आलोचक रहे हैं और वे भाजपा के लौह पुरुष लालकृष्ण आडवाणी के कट्टर समर्थक और शिष्य रहे हैं। मुझे आशा है कि लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जी देश हित में आगे आएंगे और भाजपा के सांसद एवं विधायकों को वर्तमान राष्ट्रपति के चुनाव में अपनी अंतरात्मा की आवाज के अनुसार वोट देने के अपील करेंगे। यदि ऐसा होता है तो संपूर्ण विपक्ष के साथ भाजपा के अनेक सांसद एवं विधायक यशवंत सिन्हा के पक्ष में वोट देंगे और उन्हें विजई बनाकर राष्ट्र की राजनीति को एक सकारात्मक मोड देंगे।

( Mahesh Chandra is a writer, thinker and retired Senior bureaucrat always engaged in spcio political activities for the good of Uttarakhand n the society)

( ये लेखक के निजी विचार हैं यू के नेशंस न्यूज़ किसी प्रकार से जिम्मेदार नहीं है )

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button