आज दो अभी दो , उत्तराखंड सशक्त भू क़ानून दो : सुनील नेगी अध्यक्ष उत्तराखंड जर्नलिस्ट्स फोरम
उत्तराखंड में नए सशक्त भूमि क़ानून पर काफी शोर है . उत्तराखंड सहित देश के सभी महानगरों में,जहाँ उत्तराखंड के निवासी बहुतायत में हैं वहां भी इसकी गूंज सुनाई दे रही है . ये मांग तब से उठ रही है जब से उत्तराखंड में कुछ उद्योगों की आड़ में १२.५ एकड़ भूमि पर से सीलिंग पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में हटा दी गयी और उद्योगों के नाम पर बाहर के पूंजीपतियों और संपन्न वर्ग के लोगों ने जमीन खरीदनी शुरू कर दी . पहाड़ के बड़े बड़े चक बिक गए और हज़ारों एकड़ जमीन पूंजीपतियों ने खरीद ली . नतीजतन पहाड़वासियों के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लग गया . उत्तराखंड पैसेवालों और अपराधियों की सैरगाह बन गयी. गरीब लोगों को दबाव में रुपयों का लालच देकर उनकी बाइशकीमती जमीने खरीदे जाने लगी बाहरी लोगों द्वारा और वहीँ के जमीनमालिक वहां नौकर बन गए कुछ रुपयों की खातिर गुमराह कीये जाने के बाद. वैसे भी आबादी के आधार पर डीलिमिटेशन की आड़ में पहाड़ के विधायक पहले ही काम हो रहे हैं नतीजतन पहाड़ का अस्तित्व खतरे में है . वहां की डेमोग्राफी खतरे में है, खासकर इसलिए भी क्योंकि उत्तराखंड के गाँव तेजि से खाली हो रहे हैं . अभी तक तीस लाख से अधिक लोग उत्तराखंड के गाँव छोड़ चुके हैं . वहां बंदरों नरभक्षियों और जंगली रीछों, सुवरों का हमला जारी है. कुल मिलाकर जिन मूल उद्देश्यों को लेकर उत्तराखंड पृथक राज्य लिया गया, ४६ बेशकीमती जानें दी गयीं , उनके मायने ही बदल गए हैं मानो ये राज्य अकूत धन कमाने की मशीन बन गया हो. अवैध खनन माफियाओं के लिए , ठेकेदारों के लिए जमीन हड़पने वालों के लिए , शराब माफियाओं के लिए , प्रॉपर्टी डीलरों के लिए,बिल्डरों के लिए , अपराधियों के लिए नेताओं के लिए या फिर प्रसाशन तंत्र और अफसरशाही के लिए. आज उत्तराखंड में कई महत्वपूर्ण सवाल तैर रहे हैं. इनमे भू क़ानून का सवाल सबसे बड़ा है . उत्तराखंड की जनता चाहती है की उत्तराखंड में हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर सशक्त भू कानून बने , जहाँ २५० गज़ या ५०० गज़ जमीन की ही खरीद हो सके इससे ज्यादा नहीं, ठीक वैसे ही जैसे हिमाचल प्रदेश में है.हम इस कानून की गहरायी में नहीं जाना चाहते , बस यही चाहते हैं की सिर्फ और सिर्फ उत्तराखंडियों को ही ये अधिकार मिले और बहरी व्यक्ति को सिर्फ २५० गज़ की इजाजत. शर्त ये ही है की पूर्व की लैंड सीलिंग की १२.५ एकड़ की छूट भी ख़तम हो और जो कानून खांदूरीजी के समय था वही पुनः लागू हो. साथ ही यहाँ आर्टिकल ३७१ भी लागू हो और पहाड़वासियों को रोजगार में आरक्षण मिले . पुष्कर सिंह धामी जी के वायदे इस दिशा में क्या रंग लाते हैं ये तो वक़्त ही बताएगा लेकिन ये तय है की जो भी मुख्यमंत्री ईमानदारी से इस दिशा में फैसला लेगा उसका नाम उत्तराखंड के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अवश्य लिखा जाएगा.गैरसैण राजधानी का सवाल भी बाइस वर्षों के बाद, आज तक भी अनुत्तरित है.
सुनील नेगी अध्यक्ष उत्तराखंड जर्नलिस्ट्स फोरम
उत्तराखण्ड में ज़मीन की खरीद -फ़रोख़्त को रोकने के लिए हिमांचल प्रदेश की तर्ज़ पर भू-कानून ज़रूरी है।