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तार तार होती संबंधों की मर्यादाओं की रिलेशनशिप : पार्थसारथि थपलियाल

विभिन्न आकाशवाणी केंद्रों पर रेडियो ब्रॉडकास्टर के रूप में काम करते हुए अपनी सेवा के संध्या काल मे मेरा तबादला नागौर से दिल्ली हुआ।

मैंने अपना कार्यभार प्रसारण भवन दिल्ली में (2011) संभाला। . लिव इन रिलेशन की सबसे महत्वपूर्ण शर्त यह है कि दोनों व्यक्ति का पहले से कोई पति या पत्नी नहीं होना चाहिए. अगर दिनों वामी कामी विचारधारा के लोगों से दिल्ली अटी हुई थी।

उन दिनों दिल्ली में निजी स्वतंत्रता कहूँ या स्वच्छंदता? को लेकर अनेक विचार दिल्ली के विचारमण्डल में बादलों की तरह धरती के ऊपर देखे /सुने जाते थे।

एक दिन अखबारों में खबर छपी की अशोका रोड से जंतर मंतर तक स्लट वॉक का आयोजन कल होगा। उस दिन से पहले मुझे slut शब्द का ज्ञान नही था।

अनेक वामपंथी विचारकों के चिंतन भी कोटेशन की तरह छपे थे। मुझे लगा कि भारत मे “सा विद्या या विमुक्तये” का ज्ञान जे एन यू से बाहर निकलकर आम जनता तक फैल चुका है।

इस दौरान नारी स्वतंत्रता के कई आयाम उभर के आये, जैसे गर्भ धारण महिला ही क्यों करे? महिला मांग को भरे और महिला करवा चौथ का व्रत क्यों रखे?

खैर, साहब! निर्धारित दिन व समय पर स्लट वॉक किया गया। भारतीय संस्कृति और पुरुषों के प्रति वामी दृष्टिकोण के स्लोगन लगाए गए।

बड़े बड़े तर्क, वितर्क और कुतर्क करनेवाले समाज ने सिर्फ यह व्यक्त किया कि लोगों की विरोध करने की क्षमता खत्म हो गई या समाज मक्कार हो गया।

उसके कुछ समय बाद सम लैंगिकता पर बड़ी बड़ी बातें हुईं, समलैंगिक विवाह को मान्यता देने को लेकर अभियान चलाए गए।

आखिर 2018 में वयस्क समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया। दूसरी ओर घरेलू हिंसा से संबंधित 2005 के कानून की धारa 2(f) में प्रावधान है कि दोनों व्यक्ति का पहले से कोई पति या पत्नी नहीं होना चाहिए।

इस कानून को लागू करते समय इसे बाद मानवीय पहल बताया गया।

विवाह परिवार की पवित्र आधारशिला है जबकि लिव इन रिलेशनशिप शारीरिक संबंधों की पूर्ति।

वर्तमान में वैवाहिक दायित्व के प्रति उदासीनता का बहुत बड़ा कारक है यह प्रवृत्ति। एक अन्य प्रकरण में भारतीय दंड संहिता की धारा 497 में विवाह के बाद भी सहमति के आधार पर अन्य पुरुष या महिला से शारीरिक संबंध बनाए तो वह अपराध नही है।

इस कानून बनने के बाद एक दिन मैं अपने किसी काम से नोएडा के एक थाने में बड़े अफसर का इंतज़ार कर रहा था। कुछ देर बाद एक जवान पुरुष और महिला वहां पर आए। पुलिस वाले ने उन्हें बताया साहब अभी गश्त पर गए हैं। इशारा कर बताया उनके ऑफिस के सामने इंतजार करें। वे दोनों चले गए। पीठ मुड़ते ही पुलिसवाले ने मुझे बताया कि ये दोनों पति पत्नी हैं। विवाह हुए 6 माह ही हुए हैं लेकिन महिला अपने पति के अविवाहित दोस्त के साथ एकदम सामने वाले फ्लैट में उसके साथ अधिक समय बिताती है। विवाहित व्यक्ति की समस्या बढ़ी तो बढ़ी, समस्या तो पुलिस की भी बढ़ी है कि इनकी FIR भारतीय दंड संहिता की किन सुसंगत धाराओं की जाय।

कानूनों ने हमारी सामाजिक मर्यादाओं को धूल चटा दी। क्या लिव इन रिलेशनशिप नें सामाजिक मान्यताओं और मर्यादाओं को तार तार नही कर दिया है।

इस रिलेशनशिप की बाध्यता नही कि वे स्थाई अथवा विधिवत पति पत्नी की तरह रहें। इस कानून के बनने से पहले इस प्रकार के संबंधों को व्यभिचार कहते थे।

क्या भारतीय समाज उस दौर में पहुंच गया जहां वर्णसंकर संताने होंगी? सनातन संस्कृति में तो वर्णसंकर संतान को पितृ तर्पण का अधिकार भी नही।

कितना अच्छा होता कि समाज में उचित और उपयुक्त समय पर शादी संबंध तय किये जाते और भारत की परिवार प्रणाली को भी सुदृढ किया जाता और जवान युवक युवती – पति पत्नी के रूप में अपने संबंध को सुदृढ करते।

एक दूसरे के प्रति निष्ठा रहती। आज बड़ी उम्र में विवाह की स्थिति में आदतें परिपक्व होने के कारण लड़ाई, झगड़े और तलाक के मामले बहुत बढ़ गए हैं। कल लिव इन रिलेशनशिप के जोड़े में से एक युवक ने अपनी महिला मित्र की हत्या इसलिए कर दी क्योंकि महिला विवाह करने का दबाव बना रही थी। ( लेखक पार्थसारथी थपलियाल)

( ये लेखक के अपने निजी विचार हैं)

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