उत्तराखंड में बिजली कटौती को लेकर एक घंटे का व्रत रखेंगे हरीश रावत और दे रहे हैं शाबाशी शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत को की उन्होंने प्राइवेट स्कूलों को खोलने के लिए आर्थिक मदद की पेशकश की
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के हौंसले निरंतर तीन विधान सभा चुनावो और २०१९ के लोक सभा चुनाव हारने के बाद भी बेहद बुलंद हैं . २०१९ का संसदीय चुनावो वे नैनीताल से करीब तीन laaख मतों से हारे थे और २०१७ व् २०२२ में तीन विधान सभा चुनावो में भी उन्हें पराजय का मुँह देखना पढ़ा. २०२२ के चुनाव में उनके नेतृत्व में कांग्रेस को १९ सीटें मिलीं और भाजपा दूसरी baaर सत्तासीन हुई. २० वर्षों का मिथ भी टुटा की हर चुनाव ke बाद विरोधी पार्टी राज्य की सियासत पर सत्तासीन होती है. खैर बुलंद हौंसलों बाले हरीश रावत ७४ साल की उम्र में भी न सिर्फ इतने दर्द झेलने के बाद भी पुनः मैदान में आ चुके हैं . उन्होंने कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और नेताओं से इस शर्मनाक पराजय के लिए सार्वजानिक तौर पर माफ़ी भी मांग ली है और उन्हें २०२७ के चुनाव के लिए बैटिंग करने हेतु आवाहन भी किया. कहा की हम २०२७ का चुनाव डंके की चोट पर जीतेंगे.
इसी आवाहन के चलते २ अप्रेल से वो देहरादून में प्रदेश में बिजली की कटौती और महंगाई के विरुद्ध अपने घर में एक घंटे का symbolic व्रत रख सर्कार की किसान न जनविरोधी नीतियों के बखान करेंगे ताकि मीडिया में उन्हें कवरेज मिल सके.
सोशल मीडिया में अत्यंत सक्रीय रहने वाले हरीश रावत आये दिन अपने राइट ups से मीडिया की वाहवाही बटोर रहे हैं. एक घंटे के भाजपा सर्कार विरोधी बिजली कटौती से सम्बन्ध में रखे जा रहे व्रत पर रावत लिखते हैं : #राज्य के चाहे शहरी क्षेत्र हों या ग्रामीण क्षेत्रों हों, बहुत विकट #विद्युतकटौती का सामना कर रहे हैं और कुछ दिनों बाद खेती को भी पानी की जरूरत पड़ेगी, ट्यूबल आदि के लिए बिजली नहीं मिल पाएगी। उद्योग अलग परेशान हैं। हमारा एक एडवांटेज था कि हम विद्युत कटौती मुक्त और सबसे सस्ती बिजली देने वाले राज्य थे, अब यह दोनों विशेषताएं गायब होने जा रही हैं, जिसका दुष्परिणाम औद्योगिक क्षेत्रों पर पड़ेगा। कई क्षेत्रों में बिजली की कटौती के कारण पीने के पानी का संकट भी पैदा हो गया है। जंगलों की आग नियंत्रण में आ नहीं रही है। #सरकार कुछ और कामों में लगी है, उन्हें कभी अपने चुनाव लड़ने की सीट का सत्यापन करना है, तो कभी जो है यहां आने वालों का सत्यापन करना है। लेकिन जनता विद्युत कटौती से परेशान है। कल इस अघोषित विद्युत कटौती और राज्य के सम्मुख उत्पन्न विद्युत व पेयजल संकट की ओर ध्यान आकृष्ट करने के लिए मैं अपने देहरादून आवास पर दोपहरी धूप में कल दिनांक- 22 अप्रैल 2022 को 11 से 12 बजे तक, 1 घंटे का “#मौनउपवास” रखूंगा।
इसी बीच अपनी एक दूसरी पोस्ट में हरीश रावत ने उत्तराखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री पर तंज कस्ते हुए और साथ साथ उनकी पीठ भी थपथपाते हुए अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में कहा की यूँ तो उन्होंने अभी तक कोई ऐसा उपलब्धिपूर्ण कार्य नहीं किया की उनकी प्रसंशा की जा सके लेकिन हाल ही के दिनों में प्राइवेट इंटरप्रेन्योर को प्राइवेट स्कूल खोलने के लिए उन्हें इजाजत देने और आर्थिक सहयोग देने की पेशकश काबिले तारीफ़ है जिसपर उनकी सर्कार में भी प्रयास किये गए .
हरीश रावत ने लिखा : Dr Dhan Singh Rawat जी का कोई काम शाबाशी के लायक मुझे दिखाई नहीं देता है। हाॅ पहाड़ों में निजी स्कूल खोलने के लिये भूमि और उच्च सुविधाएं देने की बात उन्होंने कही है, उसके लिये मैं उन्हें शाबाश कहूंगा।
मैंने यह प्रयास वर्ष 2015-16 में किया था और इस तरीके की लीज पर जमीन देने का प्रयास किया था। पर्वतीय व ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षण संस्थाओं व चिकित्सालयों को स्थापित करने के लिये आगे आने वाले लोगों को हमने सरकारी जमीन 33 साल की लीज पर और निजी जमीन उन्हें खरीदने की अनुमति देने की बात कही थी और इसके लिये एक पाॅलिसी जिसको हमने लीजिंग पाॅलिसी कहा था वो तैयार की और उस लीजिंग पाॅलिसी में ऐसे खुलने वाले विद्यालयों या शिक्षण संस्थाओं के लिये हमने 30 प्रतिशत सीटें राज्य के लोगों के लिये और 10 प्रतिशत सीटें निकटवर्ती क्षेत्रों के लोगों के लिये आरक्षित करने का प्राविधान रखा और यह भी प्राविधान किया गया है कि तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पदों पर स्थानीय लोगों को भी रखा जायेगा। इस पाॅलिसी के तहत पोखड़ा में एक विश्व विद्यालय, सतपुली के ऊपर एक पाॅलीटेक्निक और नैनीसार अल्मोड़ा में एक नामचीन प्राइवेट स्कूल आया था। नैनीसार को लेकर विरोध पैदा हो गया, विवाद हाईकोर्ट तक गया है। माननीय हाईकोर्ट मामला लंबित है। बल्कि एक तकनीकी विश्व विद्यालय अल्मोड़ा आना चाहता था, वो जगह इत्यादि देखकर के भी गये थे। मगर नैनीसार को लेकर जो विवाद खड़ा हुआ उसके बाद अल्मोड़ा के अन्दर तकनीकी विश्व विद्यालय खोलने का निर्णय बदल दिया।
यदि आज की सरकार ऐसा कोई प्रयास करती है तो लीजिंग पाॅलिसी आदि बनकर के तैयार है और मैं समझता हॅू कि ग्रामीण अंचल के उच्च पहाड़ी क्षत्रों से पलायन का एक बड़ा कारण, उचित शिक्षण संस्थाएं न होना और अच्छे चिकित्सालय न होना भी रहा है। यदि निजी क्षेत्र शिक्षा व चिकित्सा के क्षेत्र में आता है तो प्रोत्साहन देना राज्य के हित में है। इसलिये कभी-कभी न चाहते हुये भी शाबाश कहना पड़ता है। मैं और धन सिंह जी यदि इस आइडिया को क्रियान्वित कर पाते हैं तो मैं जरूर शाबाशी दूंगा।