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India

400 पार करने वाले मात्र पीएम राजीव गांधी

प्रो. नीलम महाजन सिंह

ना मालूम क्यों भाजपा का 2024 लोकसभा चुनावों में;
‘इसकी बार 400 पार’ पर ध्यान केंद्रित हुआ? वैसे तो अब 18वीं लोकसभा में सभी निर्वाचित सदस्यों ने शपथ ले ली है, परन्तु अभी भी शायद नरेंद्र मोदी सरकार के गले नहीं उतर रहा कि भाजपा व उन्हें, पूर्ण बहुमत नहीं मिला है। वे चंद्र बाबू नायडू, नीतीश कुमार व अन्य एनडीए के समर्थन दलों से सरकार चला रहे हैं। एक ओर विशेष लोकसभा का सत्र समाप्त हो गया है, परंतु दूसरी ओर राजनीतिक मर्यादा का काफ़ी उलंघन हुआ है। नरेंद्र मोदी ने भी लोकसभा में शपथ ले ली है। सर्वसम्मति से, इ.एन.डि.या. (I.N.D.I.A.) गठबंधन इस लोकसभा में शक्तिशाली विपक्ष है। सार्थक विपक्ष का होना प्रजातंत्र के लिए आवश्यक है। शायद मोदी सरकार इस बदली हुई परिस्थितियों को पचा नहीं पा रही है। राजनीति में पब्लिक संवाद में, भाषा में अत्यधिक गिरावट आ गई है। यह सभी राजनीतिक दलों के बारे में कहा जा सकता है। परंतु चुनावों के उपरान्त ये प्रतिद्वंदी गले मिलते दिखते हैं! केवल एक बार ही लोकसभा में किसी राजनीतिक दल को 400 पार संसद सदस्य मिले हैं; और वे हैं, मेरे परम मित्र; भारत के पूर्व प्रधान मंत्री श्री राजीव गांधी। जब लोकसभा चुनाव में पहली बार कांग्रेस 400 पार हुई, तो राजीव गांधी प्रधान मंत्री चुने गए। साल 1984 के आम चुनाव में कांग्रेस ने 404 सीटों पर जीत दर्ज की थी। यह देश के लोकसभा चुनावों में इतना बड़ा आकंड़ा हासिल करना पहला और ऐतिहासिक था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की, 31 अक्तूबर 1984 में सत्वंत सिंह व बेअंत सिंह, उन्हीं के सुरक्षा कर्मियों ने गोलियों से भुन दिया था। यह 1984 में, आर्मी द्वारा स्वर्ण मंदिर, अमृतसर में संत भिंद्रावाले की हत्या व अकालतख्त को विध्वंस करने के उपरांत हुआ
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में राजीव गांधी और कांग्रेस के लिए जबरस्त सहानुभूति की लहर देखने को मिली थी। 3791 निर्दलीय उम्मीदवारों की चुनाव में भारी भागीदारी भी देखने को मिली थी। जब लोकसभा चुनाव में पहली बार ‘400 पार हुई कांग्रेस’, तो यह भारतीय राजनीतिक इतिहास में अक्षरित हो गया।2024 लोकसभा चुनाव को कुछ ही महीने रह गए थे, और एक ही नारा सुनाई दे रहा था, केवल एक ही सुर: ‘अब की बार 400 पार’! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया था कि इस बार भारतीय जनता पार्टी 370 से अधिक सीटें लेगी। यानि कि पूर्ण बहुमत। वहीं एनडीए का 400 सीटें जीतने का अनुमान लगाया गया था। खैर अगर बीते वक्त की बात करें तो 400 सीट जीतने का इतिहास पहले ही रच जा चुका था। साल 1984 के आम चुनाव में कांग्रेस ने 404 सीटों पर जीत दर्ज की थी। देश के लोकसभा चुनाव के इतिहास में ये इतना बड़ा आकंड़ा हासिल करना पहली बार हुआ। तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की निर्मम हत्या के बाद कांग्रेस के लिए जबरदस सहानुभूति की लहर मिली। राजनीतिक विशेषलकों के अनुसार, कांग्रेस की भारी जीत का कारण ‘इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी के लिए पैदा हुई सहानुभूति लहर रही’। बता दें कि इस आम चुनाव में लगभग 5,312 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा, जिनमें 1,244 राष्ट्रीय पार्टियों से और 151 क्षेत्रीय दलों से थे। 3,791 निर्दलीय उम्मीदवारों की चुनाव में भारी भागीदारी देखने को मिली, जिसमें से केवल 5 उम्मीदवार ही लोकसभा में पहुंचे। आज तक का एकमात्र लोकसभा चुनाव जिसमें 25.62 करोड़ से अधिक कुल मतदाताओं की संख्या के साथ 1984 का चुनाव; 2014 तक का आखिरी चुनाव था, जिसमें किसी एक पार्टी को बहुमत मिला था। इंदिरा गांधी की हत्या 31 अक्टूबर, 1984 को प्रधानमंत्री आवास के लॉन में उनके ही दो अंगरक्षकों द्वारा हुई थी। 1984 के दिसंबर को आम चुनाव हुए, लोकसभा की 514 सीटों के लिए 24-28 दिसंबर, 1984 को वोटिंग हुई। इसके बाद राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री चुने गये थे। दूसरी ओर
भाजपा ने भी चुनाव लड़ा। 1980 में जनसंघ से अलग होकर भाजपा का गठन हुआ था और पार्टी ने कमल को अपना चुनाव चिन्ह घोषित किया। 1984 में भाजपा ने अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा। हालांकि, नवगठित भारतीय जनता पार्टी ने, इस आम चुनाव में कोई छाप नहीं छोड़ी। पार्टी ने 224 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन जीत केवल 2 ही सीटों पर दर्ज की गई। वे थे अटल बिहारी वाजपेयी व लाल कृष्ण आडवाणी। राजीव गांधी ने युवाओं, महिलाओं व राजनीति में अनेक प्रोफेशनल लोगों को शामिल किया था, जिनमें ऐक्टर अमिताभ बच्चन भी शामिल थे। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि विश्व भर में किसी भी राजनेता की पर्सनैलिटी व करिश्माई प्रभाव, राजीव गांधी जैसा नहीं हुआ! 40 वर्षा की आयु में राजीव गांधी ने भारत के प्रधान मंत्री पद की शपथ ली। फिर 2019 में भाजपा के अहंकारी नारा, कॉंग्रेस मुक्त भारत मुंह के बल गिरा। पिछले 10 वर्षों में कॉंग्रेस ने अपनी स्थिति को मज़बूत किया है। फ़िर सच में प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी को राजनीतिक सूझबूझ वाले सलाहाकारों को रखना चाहिए। नरेंद्र मोदी के चाटुकारों पत्रकारों ने, जनता में उनकी छवि को ठेस पहुंचाई है। यह भी सत्य है कि प्रधान मंत्री की राजनीतिक संप्रभुता पर प्रहार करना बहुत निंदनीय है, चाहे वे भारत के प्रथम पीएम पंडित जवाहर लाल नेहरू हों या पीएम नरेंद्र मोदी हों! सभ्यता को तार-तार किया गया है। साम, दाम, दंड, भेद, हर टुच्ची भाषा को चुनावों में बोला जाता है। फ़िर हमें बदलते राजनीतिक परिप्रेक्ष्य को भी स्वीकार करना चाहिए। सरकारों ने सदेव सरकारी प्राचार्य माध्यमों का अपनी हित के लिए प्रयोग किया है। दूरदर्शन हो या अन्य टीवी चैनल, सभी के राजनीतिक जोड़-तोड़ होते हैं। फ़िर ‘एम-वाई-एस’ (M: Muslims, Y: Yadavs, S: SC-ST) की थ्योरी भी विपक्ष के लिए बहुत प्रभावशाली रही। इस सियासी संग्राम में सबसे अधिक एक्टिव नेता, नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, अखिलेश यादव व क्षेत्रीय सतरप थे। मुसलमानों और अन्य समुदायों को टार्गेट नहीं करना चाहिए। चंद्रशेखर आज़ाद, ‘भीम पार्टी’ से जीत गये परंतु बहन सुश्री मायावती की बसपा का एक भी सांसद नहीं जीता। खालसा राज्य व ‘यूपीए -एंटी टैरिरिसट एक्ट’ के बावजूद अमृत पाल सिंह, पंजाब से और बारामूला; कश्मीर से, पूर्व मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्लाह को तिहार जैल में बंद; इंजीनियर राशिद ने पराजित किया। ज़ुबान से नेता नियंत्रित नहीं होते। सारांशार्थ यह कहना सत्य है कि जिस प्रकार, दिवंगत प्रमोद महाजन, पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यालय में मंत्री, ने इंडिया शाइनिंग’ का नारा लगाया व एडवर्टाइजिंग एजेंसीओं ने कई ऐसे चित्र प्रयोग किए जो, भारत के थे ही नहीं, जिससे भाजपा पराजित हुई। इंडिया शाइनिंग तो 2024 तक भी नहीं हुआ। राम मंदिर की स्थापना व उद्घाटन में पीएम नरेंद्र मोदी के मुख्य यजमान होने को विश्वा भर में प्रसारित करने के बाद भी, हिन्दुत्व का फायदा भाजपा को नहीं मिला। 400 पार करने वाले पीएम राजीव गांधी को उन्हीं के विश्वसनीय साथीयों, पीएम वी.पी. सिंह, अरुण नेहरू, अरुण सिंह आदि ने उनका साथ छोड़कर जनता दल का नेतृत्व किया। भारत को ब्रिटेन के विश्वभर के साम्राज्यवाद से मुक्ति 1947 में मिली। ‘आज़ादी के अमृतकाल’ में सभी राजनेताओं को देश हित के मुद्दों पर कार्यरत रहना चाहिए। युवा पीढ़ी के लिए कुछ मानक तो निर्धारित करें, हमारे माननीय राजनेता? विनम्रता और जनहित व देष को सर्वोपरि रखना होगा। राजनीतिक दल कोई भी हो सत्ताधारी पार्टी को घमंड नहीं करना चाहिए। सभी राजनेताओं को मर्यादित भाषा का प्रयोग करना होगा। पीएम राजीव गांधी ने सभ्य व्यावहार का परिचय दिया। 40 वर्ष की आयु में वे प्रधान मंत्री बने और 46 वर्ष की आयु में उनकी (LTTE) ने अति निंदनीय, अंतरराष्ट्रीय क्षयंत्रणा के तहत हत्या कर दी। 54 वर्षीय राहुल गांधी अब लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं। उन्हें भी किसी पर व्यक्तिगत प्रहार नहीं करने चाहिए और ना ही अन्य लोगों को उनपर भी ऐसा नहीं करना चाहिए। मुद्दों, नीतियों व देश हित की रक्षा व विकास अत्यंत महत्वपूर्ण रहना चाहिए।

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