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India

2024 के आम चुनावी युद्ध की रेखाएँ खिंची

प्रो. नीलम महाजन सिंह

लोकसभा के लिए आम चुनाव सात चरणों में होंगे और उसके बाद परिणाम घोषित किए जाएँगे। एनडीए बनाम आई.एन.डी.आई.ए. (I.N.D.I.A.) गठबंधन के लिए यह करो या मरो की लड़ाई है। ‘चुनावी बॉन्ड घोटाले’ का बम, मतदाताओं की पसंद को प्रभावित करने की संभावना रखता, हालांकि मामूली रूप से ही। भाजपा सबसे अधिक उम्मीदवारों की घोषणा करने में अग्रिम है, जबकि अन्य राजनीतिक दल अभी भी संघर्ष कर रहे हैं। आगामी लोकसभा चुनावों के लिए मंच तैयार है क्योंकि भाजपा व विपक्षी दलों ने अपने चुनाव अभियान शुरू कर दिए हैं। चुनावी फैसला उन वादों पर निर्भर करेगा जो मतदाताओं को पसंद आएंगे, जो हमारे देश के भविष्य की नियति को आकार देंगें। 2024 के आम चुनाव भारत के राजनीतिक क्षितिज में एक गहन अध्याय की शुरुआत करते हैं, जो विचारधाराओं, घोषणापत्र व दृष्टिकोण का जटिल ताना-बाना बुनते हैं। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली एनडीए की कहानी, ‘राम मंदिर व हिंदुत्व’ से जुड़ी हुई है, जो ‘हिंदू मतदाताओं’ में गहरी प्रतिध्वनि और उनमें उत्साह व दृढ़ निष्ठा पैदा करती है। कांग्रेस और विपक्ष के बैनर ‘मोहब्बत की दुकान’ के उत्साह के साथ लहरा रहे हैं, जो समावेशिता का प्रतीक है। सार्वजनिक विमर्श के कैनवास पर ये ब्रशस्ट्रोक एकता, स्वीकृति व एक उज्जवल कल का वादा करते हैं, ऐसा कहा जा सकता है! जैसे-जैसे चुनावी नाटक सामने आता है, पाँच महत्वपूर्ण विषय हमारे राष्ट्र की दिशा को निर्देशित करते हैं: विविधता में एकता, आर्थिक पुनरुत्थान, सामाजिक न्याय, पर्यावरण संरक्षण और वैश्विक कूटनीति। विचारधाराओं के इस जटिल नृत्य में, मतदाता हमारे राष्ट्र के भाग्य की दिशा को आकार देते हुए दिशा-निर्देशक होते हैं। 2024 के आम चुनाव सामने हैं, जिसमें ‘राम मंदिर का निर्माण’ व भाजपा द्वारा हिंदू धर्म के उपयोग जैसे विवादास्पद विषय केंद्रित हैं। भाजपा की कहानी हिंदुत्व को भारत की विरासत के साथ जोड़ती है, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल व देशभक्ति के जोश से बल मिलता है। इसके विपरीत, विपक्ष सावधानी से आगे बढ़ रहा है, ‘हिंदुत्व के उदय’ और एक स्पष्ट ‘रक्षात्मक रुख’ से जूझ रहा है। राम मंदिर के उद्घाटन समारोह में उनकी अनुपस्थिति भाजपा के कथानक को बल देती है व उन्हें ‘हिंदू विरोधी’ बताती है। राम मंदिर भाजपा के नए जोश का प्रतीक है, जबकि विपक्ष हिंदुत्व की अपील का मुकाबला करने के लिए संघर्ष कर रहा है। ‘मोदी की गारंटी’ बनाम विपक्ष का आर्थिक पुनरुत्थान प्रमुख कारक हैं। भारतीय स्टेट बैंक ने ‘अल्फ़ान्यूमेरिक संख्याओं’ सहित सभी विवरणों के साथ भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अनुपालन हलफनामा दायर किया है। इसमें अधिकांश राजनीतिक दलों ने चुनावी बांड के खरीदारोंं से धन-चंंदा लिया है। भाजपा का चुनावी गान, “मोदी की गारंटी”, समाज के सभी लोगों के कल्याण और सुरक्षा के वादों से गूंजता है। इसके विपरीत, विपक्ष की धुन में सामंजस्य की कमी है, असंगत छंद एक आकर्षक कहानी बनाने में विफल हैं। जबकि कांग्रेस युवाओं व महिलाओं के पर प्रकाश डालती है, यह असंगत वादों के बीच सामंजस्य बनाने के लिए संघर्ष भी करती नज़र आ रही है। सी.ए.ए. अधिसूचना जैसे दृढ़ कार्यों के साथ भाजपा की गति बढ़ती है, जो वादों के प्रति प्रतिबद्धता दिखाती है। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35-ए के तहत विशेष दर्जा समाप्त करने की व्यापक रूप से सराहना की जा रही है। जम्मू-कश्मीर के लोग युवा पीढ़ी के लिए शैक्षिक संसाधन व आर्थिक समृद्धि चाहते हैं। 2024 के चुनावों में अल्पसंख्यक मतदाताओं का क्या प्रभाव होगा? भाजपा का एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है। भाजपा द्वारा हाल ही में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का अनावरण, आगामी चुनावों में, विशेष रूप से पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत में गेम-चेंजर साबित होने वाला है। अल्पसंख्यक मतदान व्यवहार पर नज़र रखी जाएगी, संभावित एकीकरण के साथ, राजनीतिक परिदृश्य को नया रूप दिया जाएगा। उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल में यह अधिसूचना, ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के लिए मुस्लिम समर्थन को प्रेरित कर सकती है। जैसा कि कहा गया है, इलेक्टोरल बॉन्ड का मामला एक ‘लिटमस टेस्ट’ होगा। जहां विपक्ष ने एक बार इलेक्टोरल बॉन्ड को दुर्जेय हथियार के रूप में पेश किया था भाजपा व कॉरपोरेट दिग्गजों के बीच ‘क्रोनी कैपिटलिज्म’ व लेन-देन के आरोप बड़े पैमाने पर हैं, जो राजनीतिक नैतिकता पर छाया डाल रहे हैं। जैसे-जैसे नागरिक सत्ता व विशेषाधिकारों के बीच गठजोड़ की जांच कर रहे हैं, ‘चुनावी बॉन्ड’ राजनीतिक ईमानदारी व जवाबदेही के स्पष्ट बैरोमीटर के रूप में सामने आ रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शक्तिशाली वक्तृत्व कौशल व भविष्य के लिए दृष्टि ने विपक्ष के कथानक को धूमिल कर दिया है। भाजपा की कथित विभाजनकारी रणनीतियों, द्विध्रुवीय रुख व “मोहब्बत की दुकान” के बैनर तले समावेशिता की उसकी दलील पर विपक्ष का ध्यान एक सम्मोहक तर्क प्रस्तुत करता है। फिर भी, इन आख्यानों के प्रति जनता की भावना की नब्ज़ अनिश्चित बनी हुई है। राष्ट्रवाद पर भाजपा का ज़ोर, भारत के लिए उसके दूरदर्शी दृष्टिकोण के साथ प्रतिध्वनित होता है। समान नागरिक संहिता और एक राष्ट्र, एक चुनाव की अवधारणा जैसे प्रस्ताव इस दृष्टिकोण को समाहित करते हैं, सुव्यवस्थित शासन और सामाजिक सामंजस्य का वादा करते हैं। सारांशाार्थ इस वैचारिक टकराव के बीच तो मतदाता यह समझने में उलझे रहते हैं कि कौन सा दृष्टिकोण उनकी आकांक्षाओं व राष्ट्र के भविष्य के साथ अधिक निकटता से जुड़ा हुआ है। यह दु:खद है कि भारत की आज़ादी के सत्ततर वर्षों में, हम अपने नागरिकों को जीवन जीने की बुनियादी संरचना प्रदान करने में असफल रहे हैं। यह लोकतंत्र के जश्न का एक और अभ्यास मात्र है, क्योंकि नागरिक वोट डालने के अपने विकल्पों का आनंद लेते हैं। सच तो यह है कि हम भारत के हर नागरिक को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में विफल रहे हैं। कुछ हाथों में धन का ‘संकेन्द्रण, क्रोनी पूंजीवाद’ की प्रतिध्वनि है, जो संसाधनों के समान वितरण की जीवन शक्ति ko कम कर रहा है। भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है। आइए सुनिश्चित करें कि मतदाता भारत के भविष्य को ध्यान में रखते हुए अपना वोट डालें। अन्यथा 2024 का आम चुनाव, मात्र हर पांच सालों में होने वाली एक औr घटना बनकर रह जायेगाI

(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं और uknationnews इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं है)

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