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हिमालय को लेकर पांच तरह के लोग आपको मिलेंगे

SARASWATI P SATI ( Garhwal)

हिमालय को लेकर पांच तरह के लोग आपको मिलेंगे.
1.पहले वे जो हिमालय में ही गुजर बसर करते हैं. हिमालय को संवारते हैं, उसे जीते हैं.

  1. दूसरे वे जो हिमालय में अपने तरह से छोटे बड़े अतिरिक्त प्रयास कर रहे हैं. वे ग्रासरूट पर काम करते हैं, ज्यादातर गुमनाम ही रहते हैं.
  2. तीसरे वे जो हिमालय को खोद खाद काट पीट कर खूब धन् कमा रहे हैं.वे ठेकेदार हैं वे नेता हैं..वे हिमालय के मित्र नहीं हैं.
    4.चौथे किस्म के वे लोग हैं जो धराताल पर सीधे तौर पर पर्यावरण कि गतिविधियों में या तो लिप्त हैं या नहीं भी हैं परन्तु हिमालय के बड़े सवालों पर बहस संभाले हुए हैं. उन पर लड़ भी रहे हैं. इनकी भी तादाद धीरे धीरे बढ़ रही है..
  3. और पांचवी जमात जो हिमालय की सबसे बड़ी दुश्मन है. ये जमात मूल मुद्दों से बहसों को भटकाती है. ये जमात तीसरी जमात के लोगों के लिए शानदार ज़मीन तैयार करते हैं और चौथी जमात के लोगों की लड़ाई बहुत कठिन बना देते हैं.. ये इतने जालिम होते हैं कि पहली और दूसरी जमात के भोले भाले लोगों के कार्यों पर अक्सर अपना लेबल लगाने से भी नहीं चूकते.. ये हिमालय के लुटेरों के असल सरदार हैं.. ये हिमालय के सवालों को भटका कर सरकारी इनाम भी झटकते हैं और धन् भी हड़पते हैं.. हिमालय के असल दीमक की तरह हैं ये…

मैं हिमालय की गोद में बसें
एक छोटे से गांव में रहता हूं
रात को जितना हिमालय
ओढ़ कर सोता हूं
सुबह जब उठता हूं तो
मुठ्ठी भर कम पाता हूं.
इस तरह हर रोज
मुट्ठी दर मुट्ठी
हिमालय कम मिलता है मुझे

दादी कहती थी उसके बचपन में
सामने वाले नेतणी के डांडे की चोटी
हर रोज अंगुल दर अंगुल
बढ़ती जाती थी इस कदर कि
जब किसी के आँख में
अंजना होती थी तो
नेतणी के डांडे को चिढ़ाना होता था
कि नेतणी का डांडा छोटा
और मेरी आँख का अंजना बड़ा
ताकि खीज कर
नेतणी का डांडा
उसकी आँख के अंजना को मिटा दे
पर अब हमारी आँखों में
नहीं होता अंजना
शायद उसे पता है
कि उसे मिटाने वाला
नेतणी का डांडा
खुद अस्तित्व कि लड़ाई लड़ रहा है
क्योंकि अब नेतणी का डांडा
सरपिलाकार सड़कों से
इस कदर लपेटा गया है
कि खुद ही हर रोज बालिस्त भर
छोटा होता जाता है

हिमालय मुठ्ठी भरी रेत हो गया है गोया
जो हर पल हर रोज
ज़र्र-ज़र्र फिसल रहा है
उम्मीद की मुट्ठी से
और बह जाता है
विकास के दरिया में हर पल
इस तरह सुबह मिलता है
पिछले रोज से कम

हिमालय का फिसल कर
कतरा कतरा दरिया हो जाना
कुपढो की किताब में
विकास कहलाता है.. एसपी सती
@highlight

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