हिंदी के जाने-माने कथाकार शेखर जोशी का गाजियाबाद के अस्पताल में निधन
वरिष्ठ पत्रकार,जगमोहन रौतेला ,
हिंदी के जाने-माने कथाकार शेखर जोशी का गाजियाबाद के अस्पताल में निधन हो गया I कथा लेखन को दायित्वपूर्ण कर्म मानने वाले शेखर जोशी की कहानियों का अंग्रेजी, चेक, पोलिश, रुसी और जापानी भाषाओं में अनुवाद हुआ है। उनकी कहानी दाज्यू पर बाल-फिल्म सोसायटी द्वारा फिल्म का निर्माण किया गया है।
गत 10 सितम्बर को ही अपने जीवन के 90 साल पूरे करने वाले शेखर जोशी का जन्म उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के ओलिया गांव में 10 सितम्बर 1932 को हुआ था। शेखर जोशी की प्रारंभिक शिक्षा अजमेर और देहरादून में हुई। इन्टरमीडियेट की पढ़ाई के दौरान ही सुरक्षा विभाग में जोशी का ई.एम.ई. अप्रेन्टिसशिप के लिए चयन हो गया, जहां वो सन् 1986 तक सेवा में रहे। तत्पश्चात स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लकर स्वतंत्र लेखन करने लगे।
दाज्यू, कोशी का घटवार, बदबू, मेंटल जैसी कहानियों ने शेखर जोशी को हिंदी साहित्य के कथाकारों की अग्रणी श्रेणी में खड़ा कर दिया। उन्होंने नई कहानी को अपने तरीके से प्रभावित किया। पहाड़ के गांवों की गरीबी, कठिन जीवन संघर्ष, उत्पीड़न, यातना, प्रतिरोध, उम्मीद और नाउम्मीदी से भरे औद्योगिक मजदूरों के हालात, शहरी-कस्बाई और निम्नवर्ग के सामाजिक-नैतिक संकट, धर्म और जाति में जुड़ी रुढ़ियां – ये सभी उनकी कहानियों के विषय रहे हैं। शेखर जोशी की प्रमुख प्रकाशित रचनाओं में : —
कोशी का घटवार 1958, साथ के लोग 1978, हलवाहा 1981, नौरंगी बीमार है 1990, मेरा पहाड़ 1989, डागरी वाला 1994, बच्चे का सपना 2004, आदमी का डर 2011, एक पेड़ की याद, प्रतिनिधि कहानियां आदि शामिल हैं।
हिंदी साहित्य को अपनी एक कालजई रचनाओं से समृद्ध करने वाले शेखर जोशी जी को भावपूर्ण नमन!
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