हर्षिल जहाँ ४० साल पहले आये थे राजकपूर अपने ६० लोगों का काफिला लेकर
राजीव नयन बहुगुणा
अनेक जवान हैं, जो हर्षिल को ” राम तेरी गंगा मैली ” नामक फ़िल्म की वजह से भी नहीं जानते होंगे.
यह कश्मीर फाइल्स, केरला फाइल्स और टपोरी भाषा वाले हनुमान की फिल्म तक ही सीमित पीढ़ी है.
लेकिन मैं हर्षिल को सैकड़ो साल पहले से जानता हूँ.
भले ही चालीस साल पहले अपने खेल की शूटिंग करने हर्षिल आये और उत्तरकाशी में एक दिन रुके राजकपूर की तीतीक्षा, गवेष्णा, उत्कनठा और खिलन्दड़ पन का मैं साक्षी हूँ.
वह रात को दो बजे पटियाला होटल नामक एक ढाबे पर भोजन वास्ते अपने कम से कम साठ लोगों के दल के साथ आये.
बुरी तरह धुत होने के कारण वह भोजन किये बगैर ही ढाबा मालिक से हुज्जत कर वापस लौटे, और हम लड़कों ने उनके खूब लत्ते लिए.
सुबह मैं कलेक्टर केसी मल्होत्रा के साथ उनसे मिलने pwd के डाक बंगले पहुंचा. उन्होंने कलेक्टर को तीन घंटे इंतज़ार कराया, और आठ की बजाय 11 बजे सोकर उठे.
उठते ही नींद और नशे की झोंक में उन्होंने हमसे माफ़ी मांगी, और कहा – कलेक्टर साहब, हम खेला वाले लोग हैं.
हमारे लिए दिन और रात में कोई भेद नहीं होता.
पता चलने पर राज कपूर ने मुझसे एक गढ़वाली लोक गीत सुनना चाहा, लेकिन मैंने यह कह कर मना कर दिया, कि मेरे पास एक ही गीत था , जो मैं उनकी प्रतीक्षा करते समय अन्य लोगों को सुना चुका.
मेरे नाना और दादा दोनों यहाँ वन अधिकारी के रूप में तैनात रह चुके हैं. जबकि मेरी मां का जन्म ही यहाँ का है.
मैं हर्षिल में सेब, राजमा, आलू और मनुष्यों की नई नई नस्लों का बीजारोपण करने वाले साहसी तथा रंगीले विल्सन की कथा कई बार सुना चुका.
हर्षिल मेरे भीतर भी है, और बाहर भी.
राजीव नयन बहुगुणा लिखते हैं उनके मित्र द्वारा बनाये गए इस कार्टून पर : अनूठे चित्र कटाक्ष कार कमल किशोर ने मेरी यह छब ऐसे अवसर पर बनाई जब मैं हारमोनियम लेकर हर्षिल की तरफ़ वन देवी से काफल की भिक्षा मांगने आया हूँ .
(ये लेखक के अपने निजी विचार हैं )