हर्षिल कथामृत, जहाँ बनी थी, राम तेरी गंगा मैली
राजीव नयन बहुगुणा
अपनी गंगोत्री, हर्षिल, राड़ी, लाखा मंडल यात्रा का वृतांत सुनाते हुए मैं उपाख्यानो के विस्तार पर अधिक बल दे रहा हूँ.
यह हमारे एक महान भारतीय वांग्मय महाभारत की पद्धति है, जो मूल आख्यान से अचानक हट कर अनेक उप कथाओं का सृजन करते चलता है.
प्राचीन तिब्बती संस्कृति का भी यही मुख्य निष्कर्ष था कि भू गर्भ में स्थित सुवर्ण, तांब्र और हीरक जैसे रत्नो को भविष्य के लिए यथावत रहने दो. हीरे की खदान के आसपास जमे पत्थरों का संस्कार करो और उन्ही की व्याख्या करो.
अस्तु. कल मैं हर्षिल में मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के
खच्चर की पीठ से पतित होने की कथा सुना चुका हूँ. यह कथा मुझे आज भी बहुत प्रिय है, जिसका कारण मैं आगे बताऊंगा.
उन दिनों लखनऊ आकाशवाणी में अपने लोक गीतों की रिकॉर्डिंग वास्ते मैं हर दूसरे महीने जाता था, और छात्र नेता तथा युवा नेता होने के कारण कई दिन तक वहीँ पड़ा रहता था.
लखनऊ में रहने की व्यवस्था तो पर्वतीय विधायकों के फ्लेट पर स्थित हाल में सामूहिक रूप से होती थी, लेकिन भोजन की व्यवस्था स्वयं करनी होती थी. तब युवा नेताओं को भी भोजन के लाले रहते थे. वह इतने बेशर्म और खाऊ नहीं थे.
जब मैंने मुख्यमंत्री के खच्चर से गिरने की कथा एक आध को सुनाई तो वह आग की तरह फैल गई और अनेक राजनेता, अफसर तथा अन्य जन यह कथा सुनने के लिए मुझे आमंत्रित करने लगे.
मैं तिवारी की खक्चर पतन कथा स स्वर तथा अभिनय समेत प्रस्तुत करता था. यथा उनके गिरने पर कैसी आवाज़ आयी, यह आवाज़ निकाल कर बताता था. तथा चचमुंड होने के बाद उनकी दोनों टांगे कैसे ख़डी हो गयीं, यह कुर्सी पर बैठे अपनी दोनों टांगे भरसक ऊपर उठा कर चित्रण करता था.
फिर लखनऊ आये उत्तरकाशी के कलेक्टर ने वापस जाकर
मेरे कथा सूत्र डिप्टी साहब को फटकार बताई कि तूने यह वर्णन राजीव से क्यों किया? वह एक कटोरी भात और एक बियर के लिए लखनऊ भर को वह कहानी बताता फिर रहा है.
मैंने इस कथा का मंचन अपने प्रिय नेता हेमवती नंदन बहुगुणा के सामने भी किया, जो मेरे संरक्षक तुल्य थे, और मुझे वजीफा अथवा पेंशन देते थे.
वह इस कथा को सुन बहुत प्रसन्न हुए, तथा कई दिनों तक भाषणों में कहते रहे, देखो, नारायण दत्त घोड़े से गिर पड़ा.
घोड़ा अपने सवार को पहचानता है. अब यह मुख्य मंत्री पद से भी एक दिन ऐसे ही गिर पड़ेगा.
मैं बता ही चुका हूँ कि मेरी माँ का जन्म हर्षिल, मुखबा में ही हुआ है, जब मेरे नाना वहां फॉरेस्ट रेंजर थे.
अतः हर्षिल मेरे लिए ननिहाल की तरह है, जहां आकर मुझे नई प्रेरणाओं और उल्लास की सौगात मिलती है.