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Uttrakhand

हरीश रावत रखेंगे अग्निवीर रोजगार योजना के विरोध में एक घंटे का सांकेतिक उपवास

गज़ब की बात है , विरोध हर मुद्दे पर है , विरोध इनकी नज़र में गंभीर मुद्दों पर है . खासकर बेरोजगारी के सवाल पर , इनकी चिंता कितनी बड़ी , गंभीर और गहरी है इसका अंदाजा स्वतः ही लगाया जा सकता है , खासकर तब ,जब ये वरिष्ठ नेता अपना विरोध अपने घर में एक घंटे के उपवास के साथ करते हैं. वैसे पहले भी आदरणीय नेताजी एक एक घंटे के कई सांकेतिक उपवास रख चुके हैं. खैर , हमें उनकी सेहत की भी चिंता है और होनी भी चाहिए क्योंकि उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री सदैव जनसवालों पर चिंता करते आये हैं बावजूद इस हकीकत के की वे ७५ वर्ष के हो गए हैं. मैं उनकी हिम्मत , सक्रियता , मुद्दों पर पकड़ , वाक्पटुता , लोगो को पहचानने और उनकी पीठ पर प्यार भरी मुस्कान के साथ थपथपाने की कला पर जैसे कभी हेमवती नंदन बहुगुणाजी किया करते थे , का कायल हूँ. यही यही बल्कि उत्तराखंड के भोजन , फलों , गुड़ चाय की ढेरों पार्टियां देने के माहिर हरीश रावतजी की कांग्रेस पार्टी के प्रति सेवा भाव देकते ही बनता है. मैं उन्हें पिछले लगभग चालीस वर्षों से देख रहा हूँ , बतौर सांसद सेवा दल के उपाध्यक्ष , दो मन्त्रालयों के केंद्रीय मंत्री , प्रदेश के मुख्यमंत्री पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और कांग्रेस वर्किंग समिति के सदस्य. वे हमेशा सक्रीय रहे. चलते रहे, भागते रहे , और उत्तराखंड पृथक राज्य आंदोलन में ही अत्यंत सक्रीय रहे. मैंने अक्सर देखा है की तीन चुनावो निरंतर हारने के बाद और पार्टी की पराजय के बाद अच्छे अच्छे राजनेता धराशाही हो जाते हैं या अपने बच्चो को आगे कर सक्रीय राजनीती से संन्यास ले लेते हैं. लेकिन हरीश रावत आज भी सक्रीय हैं , पहले से दुगुनी शक्ति, ताकत और स्फूर्ति के साथ. उनकी सक्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की निरंतर दो दिन वे दिल्ली में एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट के दफ्तर के बहार प्रदर्शन करते रहे और बाकायदा जवानो की तरह नारे लगते हुए पुलिस से भीड़ कr, प्रियंका गाँधी के साथ गिरफ्तारी दी . वे निरंतर कई घंटे तुगलक रोड थाने में रहे और सोशल मीडिया में अपने विडिओ के जरिये विरोध दर्ज़ करते रहे. उनकी स्फूर्ति देखिये, अगले दिन वे दिल्ली से पौड़ी गढ़वाल के पाबो ब्लॉक के भट्टी गाँव में जाते हैं , जहाँ एक महिला को नरभक्षी तेंदुवे ने अपना निवाला बनाया कुछ दिन पहले . वे पहाड़ के इस गांव में पैदल गए, अपनी संवेदनाएं व्यक्त की और फिर दिल्ली के लिए रवाना हो गए . कल वे एक घंटे की सांकेतिक भूक हड़ताल कर रहे हैं अपने दिल्ली के घर में . ये प्रोटेस्ट केंद्र सर्कार की अग्निपथ रोजगार योजना के विरोध में है . अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में हरीश रावत कुछ इस प्रकार अपना विरोध प्रकट करते हैं ,वे लिखते हैं : अग्निपथ_वीर, अग्नि जरूर है बेरोजगारी की, पेट के भूख की, एक अनिश्चित भविष्य की और पथ इस सरकार की गलत नीतियां हैं, और वीर हमारे वो नौजवान हैं जो पिछले कई  वर्षों से, चार-पांच वर्ष से भी ज्यादा से सेना में रेगुलर भर्ती निकलने की प्रतीक्षा कर रहे हैं और उसके लिए तैयारियां कर रहे हैं। सरकार ने एक ढकोसला योजना घोषित कर जिसको अग्निपथ वीर योजना कहा गया है। इन नौजवानों की भविष्य पर अंधकार काले बादल थोप दिए हैं, 4 साल बाद क्या होगा! एक अंतर जरूर होगा कि फिर से 2024 में फिर से भाजपा सरकार बने इसके लिए झूठ और कूट, दोनों रचा जा रहा है। 2024 के बाद फिर बेरोजगार यूं ही भटक रहा होगा और फिर न अग्निपथ होगा, न पेट होगा, न रोजगार होगा और न सम्मान होगा! तब केवल भटकाव ही भटकाव होगा! हमारे लिए यह चिंता का विषय इसलिए भी है, हमारी बहादुर रेजिमेंटें, कुमाऊँ रेजीमेंट, गढ़वाल रेजीमेंट, नागा रेजीमेंट आदि ये सारी रेजिमेंटों का एक वीरता का इतिहास है, वर्षों-वर्षों का इतिहास है, उस परंपरा को इस तरीके की योजनाएं लागू कर समाप्त किया जा रहा है। अब आप ही अंदाज लगाइए 10-15 दिन की ट्रेनिंग से किसी को NCC का B सर्टिफिकेट भी नहीं मिलता है और ये उसमें फौज के सिपाही तैयार कर रहे हैं? तो इस धोखेबाज योजना के विरोध में मैं, कल दिनांक-17 जून, 2022 को अपने दिल्ली स्थित आवास पर 1 घंटे का सांकेतिक #मौन_उपवास रखूंगा और इसके बाद पार्टी द्वारा निर्धारित जो भी विरोध कार्यक्रम तैयार होगा उसका हिस्सा बनूँगा.

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2 Comments

  1. उत्तराखंड के नेताजी हर बात पर अपनी नाराजगी जताना ठीक नही। सुनिए गुनिये और अपने सुझाव दीजिए अगर आप वास्तव में कुछ करना चाहते है जवानों के लिए। सरकार ने अपने से ही नही चुनी ये योजना। गहन परिश्रम से गहन सलाह मशवरा लेकर ही सोचा कि ऐसी योजना भी सकारात्मक परिणाम ला सकती है।

  2. अग्निपथ को आंदोलन लिया जाय या प्रदर्शन ? पर इसके अतिरिक्त भी कुछ लिया जा सकता है इस पर मंथन तो होना ही चाहिये था?
    4 वर्ष ही क्यों?? 5 क्यों नही??
    5 वर्ष में राजनेताओं की भांति पेंशन के भी अधिकारी बन सकते थे।
    मेरी समझ से तो बाहर की बात लग रही है।
    हरीश जी का क्या तर्क है आंशिक उपवास का??? या उनका तर्क पार्टी के तर्क में समाहित है??

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