हरीश जोशी, “पहाड़ का सच” पोर्टल

*हरीश जोशी, “पहाड़ का सच” पोर्टल*
लगभग 47 साल बाद भागीरथी की इस सहायक नदी खीर गंगा ने अपनी वास्तविक राह पकड़ी तो अपने साथ तबाही लेकर आई। खीर गंगा में बेशुमार बोल्डर और मलबे को लेकर आया जल सैलाब उसकी राह में आने वाली धराली की नई बसावट को अपने साथ बहा ले गया।
दून विश्वविद्यालय के नित्यानंद हिमालयन रिसर्च सेंटर के प्रोफेसर डीडी चौनियाल ने अपने विश्लेषण में कहा कि वास्तव में धराली में जो हुआ वह बीते वर्षों में मानवीय हस्तक्षेप का ही
नतीजा है। पुराने धराली गांव को तो यह जल प्रलय छू भी नहीं सका। प्रोफेसर डीडी चौनियाल ने बताया कि खीर गंगा धराली गांव के भागीरथी नदी में मिलती है। वर्षों से यह नए-नए फ्लड प्लेन बनाती आ रही थी। इस बीच एक फ्लड प्लेन बना और स्थानीय लोग इस पर खेती करने लगे। इसी कृषि भूमि से होकर खीर गंगा भागीरथी में जाकर मिलती थी। .उनका कहना है कि बीते कई वर्षों में फ्लड जोन पर निर्माण कार्य होने लगा। दर्जनों होटल और बाजार बन गए।
अतिक्रमण के चलते खीर गंगा अपने वास्तविक पथ को छोड़कर दूसरी तरफ से जाकर भागीरथी में मिलने लगी। यह रास्ता नदी के लिए बिल्कुल भी सहज नहीं था। हालात ये कि इस अतिक्रमण के चलते खीर बने गंगा अपना रास्ता छोड़कर उल्टी (उत्तर की दिशा में) बहने को मजबूर हो गई। उसे कभी न कभी अपने वास्तविक पथ पर आना ही थी। यही मंगलवार की दोपहर को हुआ। नदी का पानी तीव्र ढलान से होते हुए लाखों टन बोल्डरों के साथ नीचे उतरा और अपना वास्तविक रास्ता पकड़ लिया और नई बसाई गई बस्ती को तबाह करते हुए भागीरथी में जा मिला। प्रोफेसर चौनियाल ने उपग्रह के चित्रों में खीर गंगा के उद्गम स्थल (ग्लेशियर) को भी दिखाया। उन्होंने विश्लेषण करते हुए बताया कि यहां पर सैकड़ों छोटे-छोटे ताल बने हुए हैं।ग्लेशियर एक तीव्र ढाल पर है। यहां पानी इकट्ठा हुआ तो सभी ताल भरने लगे। एक ताल टूटा तो उसने अगले ताल को भर दिया। पानी का दबाव तालों से सहा नहीं गया तो यह बोल्डर व अन्य मलबा लेकर आगे बढ़ा और नीचे धराली में तबाही मचा दी। *पूर्वजों द्वारा बसाया गया धराली गांव आज भी पूर्ण सुरक्षित है।*
धराली एक पुराना गांव है जो भागीरथी के पूर्व में एक छोटी पहाड़ी पर बसा है। धराली गंगा के फ्लड जोन से पूरी तरह बाहर है। धराली की पहाड़ी की तलहटी से होकर नदी दक्षिण दिशा की ओर मुड़ती थी। नया धराली इसी दक्षिण दिशा में बने फ्लड जोन में बसा दिया गया। पूर्वजों ने भी इस तरह की आपदा के मद्देनजर सुरक्षित स्थान का चयन किया होगा। साल 1978 तक खीर गंगा का यही रास्ता था।खीर गंगा अब उसी में किए गए निर्माण को ढहाते हुए भागीरथी से जा मिली।
उत्तरकाशी अपनी प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक आस्था का पुरातनकाल से केंद्र रहा है लेकिन लगातार भूकंप के झटकों और बड़ी आपदाओं ने इसे बार-बार हिलाया है। यह दो बड़ी नदियों गंगा यमुना का उद्गम स्थल और तमाम धार्मिक मान्यताओं का पोषक भी रहा है।
गंगा की सहायक नदियों में असी गंगा, राणों की गाड, गंगनानी के साथ खीर गंगा भी शामिल है। इस बार खीर गंगा का रौद्र रूप देखने को मिला है। पुराने लोगों की मानें तो 1978 में खीर गंगा का यही पुराना रास्ता था लिहाजा वह सब कुछ बहाते हुए पुराने मार्ग से भागीरथी से जा मिली। उत्तरकाशी हमेशा से संवेदनशील जोन में रहा है। इसके बावजूद मनमाने ढंग से निर्माण की निगरानी भी नहीं हुई। उत्तरकाशी में जब 1991 में भूकंप आया था उसके बाद मास्टर प्लान से निर्माण करने और भूकंपरोधी मकान बनाए जाने पर लंबी बहस हुई लेकिन जमीन पर हुआ कुछ भी नहीं। 2013 और फिर 2023 में भी बादल फटने की घटनाएं हुई। जिसने सतर्क होने और नदियों से दूरी बनाने का इशारा किया। नदियों से दूरी रखने के फैसले पर सरकारों और न्यायालयों ने भूमिका निभाई पर नदियों के किनारे से अतिक्रमण नहीं हटा। नदी की राह में और जलागम क्षेत्र में मानकों के विपरीत निर्माण हो रहे हैं। बात सिर्फ उत्तरकाशी के इस स्थान की नहीं है जहां नदी का नजारा दिखाने के लिए बहुमंजिला इमारतें खड़ी की गई थीं। अनदेखी पूरे पहाड़ में है। यही हाल उन शहरों का है जो नदी के तट पर बसे हैं। हाइकोर्ट के उस आदेश की भी अनदेखी हो रही है जिसमें नदियों के किनारे से 200 मीटर के दायरे में निर्माण पर रोक है।
इस पहाड़ी राज्य उत्तराखंड का दुर्भाग्य है कि जब-जब संभलकर उठकर प्रगति पथ पर दौड़ना चाहता है आपदा का दंश उसे पीछे ढकेल देता है। राज्य में लगातार पहाड़ों के दरकने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। मानवीय गलतियों के कारण नदियों का प्रवाह विकराल रूप ले रहा है। इन सबको जकड़ कर रखने वाले पेड़ों को घटती संख्या जिम्मेदारों को एक बार फिर और बड़े विध्वंस की खुली चेतावनी दे रही है। अब समय आ गया कि नीति नियंता पहाड़ों की धारण शक्ति को परखें और उसके अनुसार नव निर्माण करें।
हाल के कुछ वर्षों में उतराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में अंधाधुंध निर्माण हुआ है। पहाड़ के आकार को समतल कर और पेड़ों का अंधाधुंध कटान कर सीमेंट और सरियों का भार उन लादा जा रहा है। ऐसा न हो कि अत्यधिक भार सह रहे ऐसे शहर आबादी को लेकर नीचे आ जाएं। विकास के नाम पर नदियों और वादियों का नजारा दिखाने वाले तमाम होटल/रिजॉर्ट्स की चमक-दमक में पहाड़ की पीड़ा भी कम सुनाई दे रही है।