google.com, pub-9329603265420537, DIRECT, f08c47fec0942fa0
India

हरफनमौला, मस्तमौला और प्रतिभा का परफैक्ट कॉकटेल देखना हो तो राजेंद्र धस्माना जी सर्वोत्तम मिसाल हैं।

टीवी के सामने बैठा हूँ, पिछले दो घंटों से कर्नाटक के विधानसभा चुनाव के नतीजे देख रहा हूँ। कांग्रेस लगातार बढ़त ले रही है। दोपहर के 1 बजकर 21 मिनट हुए हैं। कांग्रेस 133, बीजेपी 66 और जेडीएस 22 सीटों पर बढ़त लिए हुए हैं। सभी राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अब तस्वीर साफ हो गई है।कांग्रेस सरकार बनाएगी, यह तय हो गया है। आगे आँकड़े अपना आकार बदल सकते हैं। आँकड़ों की आदत ही बदलना; बदलें तो भी हमें कोई फर्क़ नहीं पड़ता। ‘कोउ नृप होउ हमहि का हानी। चेरि छाड़ि अब होब कि रानी।।’ जब भी चुनावी नतीजे आते हैं तब बाबा तुलसीदास की ये पंक्तियाँ हर समय याद रखता हूँ।
चुनावी रूझान और नतीज़ों के बारे में इतना लिखने के पीछे मंशा यह नहीं थी कि आपका सामान्य ज्ञान बढ़ाऊँ। मेरी पोस्ट का चुनावी रूझान से कोई सीधा संबंध नहीं है। यदि संबंध है तो इतना ही है कि नतीजे देखते समय यूं ही अनायास, अचानक, अकारण मीडिया की एक शख्सियत जेहन में आ गई। उनके साथ मैंने आकाशवाणी और दूरदर्शन दोनों जगह काम किया है; आकाशवाणी में बहुत कम और दूरदर्शन में काफी अधिक समय उनके साथ बीता है। हरफनमौला, मस्तमौला और प्रतिभा का परफैक्ट कॉकटेल देखना हो तो राजेंद्र धस्माना जी सर्वोत्तम मिसाल हैं। उनसे सदेह मुलाक़ात तो अब संभव नहीं है क्योंकि वे इस नश्वर संसार से कई साल पहले प्रयाण कर चुके हैं। उनके सैकड़ों क़िस्सों में से चुनिंदा दो-चार क़िस्से बता कर उनसे परिचय करवाने का प्रयास करूँगा। अब टीवी छोड़ कर धस्माना जी से परिचय करवाता हूँ।
पहले आकाशवाणी वाले राजेंद्र धस्माना जी से परिचय करवाता हूँ। सबसे पहले वो क़िस्सा, जिसे सुनकर कोई भी हतप्रभ हो जाएगा। शायद कुछ लोग अपने नज़रिए से भी उनके व्यक्तित्व का विश्लेषण करें। लेकिन, मैं इतना जानता हूँ कि धस्माना जी के अलावा कोई अन्य व्यक्ति ऐसा क़दम नहीं उठा सकता। स्पष्ट सोच और समर्पण भाव से कर्तव्यनिष्ठ होने के कारण वे ऐसा कर सके।
यह क़िस्सा आदरणीय Triloki Nath जी ने सुनाया था। उस दिन धस्माना जी की ड्यूटी उन्हीं के साथ थी। सुबह की ड्यूटी ख़त्म होते ही धस्माना जी ने कहा कि अब घर जाऊँगा। पहले कभी ड्यूटी ख़त्म होते ही घर जाने की बात नहीं करते थे। उस दिन चेहरे पर उदासी भी थी। त्रिलोकी जी ने कहा- धस्माना जी! आप कुछ परेशान लग रहे हैं।
इस पर उन्होंने जो जवाब दिया उससे त्रिलोकी जी सन्न रह गए। उन्होंने कहा- सुबह तीन बजे पिताजी का निधन हो गया। अब घर जाकर उनका दाह संस्कार की व्यवस्था करूँगा। घर में किसी को नहीं बताया। बताता तो उसी समय घर में रोना-पीटना शुरू हो जाता। जिस कमरे मे पिताजी ने प्राण छोड़े हैं, उस पर ताला लगा कर आया हूँ।
त्रिलोकी जी ने कहा कि आप ड्यूटी पर क्यों आए। धस्माना जी का जवाब था- मेरे वहाँ बैठने से पिताजी जीवित तो नहीं हो जाते! वहाँ बैठ कर भी मैं सुबह होने की ही प्रतीक्षा करता। वहाँ बैठने से बेहतर था ड्यूटी पर आ जाऊँ। अब घर जाकर दाह संस्कार कर देंगे।
यह धस्माना जी ही थे जो पहाड़-सा दुःख अपने दिल पर रख कर सही समय पर ड्यूटी पर पहुँच गए और पूरे मनोयोग से काम किया।
दूरदर्शन में उस ज़माने में कैजुअल सम्पादकों की भी बुकिंग होती थी। धस्माना जी के पास भी ऑफर आई। उनकी शर्त थी कि एडिटर इंचार्ज बन कर आऊँगा, असिस्टेंट बन कर नहीं। उनकी क़ाबिलियत देख कर दूरदर्शन ने शर्त मान ली। जिस दिन कोई एडिटर इंचार्ज छुट्टी पर होता था उन्हें बुक कर लेते थे। एक दिन दूरदर्शन का एडिटर इंचार्ज अपनी छुट्टी रद्द कर ड्यूटी पर पहुँच गया। धस्माना जी से कहा गया कि अब एडिटर आ गए हैं, आप इनके असिस्टेंट के तौर पर काम करें या घर जाएँ। धस्माना जी ने कहा कि मैं सुबह उठ कर घर से आया हूँ; काफी सारा बुलेटिन बन गया है। अपने एडिटर से कहो कि वो चले जाएँ; मैं नहीं जाऊँगा और ना ही असिस्टेंट बन कर बुलेटिन बनाऊँगा। इस दो टूक जवाब के बाद भी दूरदर्शन के अधिकारी अड़े रहे तो धस्माना जी ने अपना बनाया हुआ बुलेटिन फाड़ कर फेंक दिया और घर चले गए।
हिंदी न्यूज यूनिट के सम्पादकीय विभाग के लोग ड्यूटी सम्पन्न होने के बाद आकाशवाणी भवन के बाहर सड़क पार घंटे वाले गुप्ता जी के खोखे पर जाते हैं। रिजर्व बैंक की बाउंड्रीवाल के साथ खोखा था। उसी के साथ एक चाय वाला बैठता था। खोखा पर पान सिगरेट मिलती थी और बग़ल में चाय। थोड़ी देर के लिए अड्डा मारने का यह सर्वोत्तम स्थान माना जाता था। जिन लोगों को अधिकारियों के कान में चिरकने (समाचार वाचक मनोज कुमार मिश्र जी चुगली के लिए यही शब्द इस्तेमाल करते थे) का रोग नहीं था वे चिरकने के ‘रोग से ग्रसित’ लोगों पर चर्चा के लिए इसी अड्डे पर जाते थे। एक दिन चर्चा के बीच एक अनजान व्यक्ति आया और पूछा- मुझे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन जाना है, कौन सी बस मिलेगी। उसे बता दिया कि सामने से 602 नंबर बस ले लो। तुरंत धस्माना जी बोले-थोड़ी देर रूको तो मैं छोड़ दूँगा। वहाँ एक साथी ने पूछा- धस्माना जी! आपके पास स्कूटर है? वो बोले, नहीं, स्कूटर नहीं है, पैदल जाऊँगा, इन्हें भी वहाँ छोड़ दूँगा। इस पर सभी लोगों ने ठहाका लगाया और धस्माना जी मंद मंद मुस्कुराए।
एक वो समय आया जब धस्माना जी दूरदर्शन के उसी न्यूज़ रूम में पहुँच गए जिसका बुलेटिन फाड़ कर घर चले आए थे।
वे दूरदर्शन में प्रायः सुबह की ड्यूटी करते थे। मैं भी सुबह और दोपहर का बुलेटिन पढ़ता था। मेरे संपादक ने दूरदर्शन में समाचार वाचन की स्वीकृति इसी शर्त पर दी थी कि जनसत्ता का काम प्रभावित नहीं होना चाहिए। सुबह 7:00 बजे का बुलेटिन 7:15 बजे समाप्त हो जाता था।मेकअप उतार कर 7:30 से पौने आठ बजे तक फ्री होकर घर चला जाता था। पूरा दिन मेरे पास होता था। यह ड्यूटी मुझे सबसे सुविधाजनक लगती थी। धस्माना जी भी सुबह की ड्यूटी पसंद करते थे इसलिए मेरी उनसे अक्सर मुलाक़ात होती थी। बुलेटिन ख़त्म होने के बाद चाय भी साथ पीते थे।
वहाँ का भी एक रोचक किस्सा है। दो-तीन दिन लगातार उनके घर गाड़ी देर से पहुँची। वे मोती बाग़ या उसके आसपास कहीं रहते थे। ठीक से याद नहीं आ रहा। उन्होंने अधिकारियों को शिकायत की कि ट्रांसपोर्ट विभाग की कोताही से मैं न्यूज़ रूम देर से पहुँचता हूँ। बुलेटिन के लिए समय कम मिल पाता है। लिहाजा क्वालिटी पर असर पड़ता है। ट्रांसपोर्ट विभाग को निर्देश दें कि गाड़ी समय पर पहुँचे। ढाक के वही तीन पात। ट्रांसपोर्ट विभाग में कोई सुधार नहीं हुआ। अफसरों की निष्क्रियता पर उन्होंने गाँधीवादी तरीके से विरोध किया। उन्होंने कहा, जब तक ट्रांसपोर्ट विभाग के निकम्मे कर्मचारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं करेंगे और मुझे समय पर गाड़ी मिलने का आश्वासन नहीं देंगे, तब तक मैं अपने घर से दूरदर्शन तक पैदल आऊँगा। जब पहुँच जाऊँगा तब बुलेटिन बनाना शुरू करूँगा; जितना बुलेटिन बनेगा उतना टेलीकास्ट करवा दूँगा। तीन-चार दिन वे अपने घर से दूरदर्शन तक पैदल आए। सुबह क़रीब तीन बजे घर से निकल जाते थे और पूरा प्रयास करते थे कि समय पर न्यूज़ रूम पहुँच जाएँ। अंततः अफसरों को झुकना पड़ा और ट्रांसपोर्ट विभाग के लोगों को समय पर गाड़ी भिजवाने के सख्त निर्देश दिए गए।
बुलेटिन बनाने के दौरान उन्हें कभी तनाव में नहीं देखा। हमेशा इस मूड में रहते थे-यारो! उधार ले लो मस्ती। ऐसे मस्तमौले राजेंद्र धस्माना जी को बारंबार नमन।
(16 मई को आदरणीय राजेंद्र धस्माना जी की पुण्यतिथि है। 16 मई 2017 को 81 वर्ष की उम्र में परलोक गमन किया था)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button