स्वर्गीय दयासागर धस्माना जी के समग्र व्यक्तित्व का दर्शन – पौड़ी – उनके बहाने
बीना नयाल
“पौड़ी उनके बहाने” पुस्तक स्वर्गीय दयासागर धस्माना जी के समग्र व्यक्तित्व को बेहद संजीदगी और जीवंतता से बयां करती है । पुस्तक में पौड़ी की विभिन्न विभूतियों के लेखो का संकलन किया गया है, जिन्होंने दयासागर धस्माना जी को बेहद करीब से देखा और समझा है। इस पुस्तक का संपादन उनके सुपुत्र डॉ योगेश धस्माना जी द्वारा किया गया है जो स्वयं पेशे से पत्रकार, लेखक ,सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यकर्ता है । पुस्तक में पौड़ी के सामाजिक व सांस्कृतिक उत्थान में दयासागर धस्माना जी की भूमिका को रेखांकित किया गया है जिसमें दिखाया गया है कि किस प्रकार उनके समय में छोटा सा पौड़ी उनके निर्देशन और सक्रियता में सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बना। वे पौड़ी की संस्कृति के पुरोधा थे । बहुमुखी प्रतिभा की धनी दयासागर धस्माना जी का नाटक, रंगमंच , धार्मिक व सांस्कृतिक गतिविधियों से बहुत गहराई से जुड़ाव था। पौड़ी की रामलीला के संवाद लिखने से लेकर उनके द्वारा रावण के पात्र का दमदार अभिनय आज भी लोगों के जेहन में है। वर्तमान समय में रामलीला के पात्रों को उनके पात्र की मिसाल दी जाती है । पौड़ी की खड़ी होली की ना केवल उन्होंने शुरुआत की बल्कि उसे खूब समृद्ध किया। गढ़वाल कुमाऊं की एकता और सांप्रदायिक सद्भाव को प्रोत्साहित करने में उनके महत्वपूर्ण योगदान को विभिन्न लेखकों ने रेखांकित किया गया है । पुस्तक में गढ़वाल के रंगकर्मियों तथा संस्कृति प्रेमियों के साथ कुमाऊं के सांस्कृतिक प्रेमियों की जुगलबंदी का भी बखूबी वर्णन किया गया है । पुस्तक मे दर्शाया गया है कि अल्मोड़ा यदि कुमाऊं का सांस्कृतिक केंद्र है तो पौड़ी गढ़वाल का । गढरतन नरेंद्र सिंह नेगी जी का लेख भी पुस्तक मे संकलित हैं जिसमें उन्होंने पौड़ी की रामलीला तथा होली गायन में उनके योगदान का बखूबी वर्णन किया है।
पुस्तक के माध्यम से स्वर्गीय दया सागर धस्माना जी के आत्मीय और सक्रिय सहयोगी स्वर्गीय मोहन उप्रेती एवं नइमा खान उप्रेती जी के बारे में जानना काफी रोचक रहा, जिसके पश्चात उनके बारे में गहराई से पढ़ने की उत्सुकता जागृत हुई।
पुस्तक के माध्यम से पौड़ी की होली और रामलीला को धस्माना जी के योगदान को बेहद विस्तार देने के साथ यहां की होली को समृद्ध करने में स्थानीय मुस्लिम भाइयों का क्या योगदान रहा है, योगेश धस्माना जी के लेख में बहुत सुंदरता से वर्णन किया गया है । पुस्तक में संकलित रंगीन चित्रों के माध्यम से पौड़ी के अतीत की झलकियां देखना भी बेहद सुखद है।
पुस्तक में स्वर्गीय दयासागर धस्माना जी की स्मृतियों को अलग-अलग खंडो में संजोया गया है । खंड 1 में विभिन्न लेखो द्वारा उन्हें श्रद्धांजलि दी गई है , तो खंड 2 मैं पौड़ी के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन को समृद्ध करने में उनके योगदान, खंड 3 में उनके द्वारा लिखित कहानियां और खंड 4 में उनकी कविताओं का संकलन किया गया है।
खंड 5 में पौड़ी की विभिन्न हस्तियों का पौड़ी मैं योगदान और बॉलीवुड की मशहूर हस्तियों जैसे प्रेम नाथ और बीना राय का पौड़ी में आगमन से संबंधित लेख संकलित किए गए हैं।
समग्र रूप से पुस्तक के माध्यम से दयासागर धस्माना जी के बहाने पौड़ी को जानना बेहद रोचक रहा।
गढ़वाल की महान विभूति के रूप में अपने पिता की सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत को पुस्तक का रूप देकर डॉ योगेश धस्माना जी ने बेहद सराहनीय कार्य किया है, इसके लिए भी बधाई के पात्र हैं।
मेरी और से डॉक्टर योगेश धस्माना भाई साहब जी को बहुत-बहुत शुभ कामनाएं । उम्मीद है आगे भी इसी प्रकार पहाड़ से संबंधित उनकी अन्य पुस्तके पढ़ने को मिलेंगी।