सीपी के बरामदों में अखबार

विवेक शुक्ला , वरिष्ठ पत्रकार
बिंदेश्वरी राय कनॉट प्लेस का स्थायी चेहरा हैं। झुलसती गर्मी, ठंड की ठिठुरन या फिर बरसात, राय रीगल ब्लॉक में अखबारों, पत्रिकाओं और किताबों के साथ मौजूद रहते हैं। वे गुजरे 45 सालों से इसी जगह पर बैठ रहे हैं। उन्होंने जब अपना ठिया लगाना शुरू किया था तब कनॉट प्लेस के बरामदों में उनके जैसे करीब दसेक लोग और थे। सब अखबार, पत्रिकाएं और नॉवेल वगैरह बेचते थे। अब सिर्फ दो रह गए हैं। उनके करीब ही इलाहाबाद बैंक के आगे पांडे भी बैठते हैं। पांडे सबको अपना नाम सिर्फ पांडे ही बताते हैं। उनसे पूछो कि अपना पूरा नाम बताओ तो उनका उत्तर होता है- ‘पांडे ही काफी है।’
राय और पांडे के पास दर्जनों पत्र-पत्रिकाएं होती हैं। हालांकि कनॉट प्लेस में सिर्फ नॉवेल बेचने वाले कुछ और भी लोग हैं। आप राय और पांडे से दुनिया भर की बातें कर सकते हैं। ब्रिटेन में आज 4 जुलाई को होने वाले आम चुनावों से लेकर टी-20 वर्ल्ड कप के फाइनल में भारत की विजय पर यह दोनों विस्तार से प्रकाश डाल सकते हैं। आपको इन दोनों के पास सुबह से शाम तक अखबार लेने वाले आते हुए मिलेंगे। मजाल है कि इनसे इनका ग्राहक कुछ मांगे और इनके पास वह उपलब्ध ना हो।

इस लिहाज से ये सेंट्रल न्यूज एजेंसी के संस्थापक आर.पी.पुरी और शंकर मार्केट की मशहूर राम गोपाल शर्मा बुक शॉप की परंपरा को आगे लेकर जा रहे हैं। पुरी साहब और शर्मा जी कनॉट प्लेस, गोल मार्केट, राउज एवेन्यू, जनपथ वगैरह में सुबह अखबार बांटने के बाद कनॉट प्लेस के बरामदों में अपने माल के साथ बैठ जाते थे। इन दोनों ने आगे चलकर यहां अपनी दुकानों को खोला और खूब नाम कमाया। कनॉट प्लेस के इन दोनों पुराण पुरुषों को गुजरे हुए कई साल हो गए हैं। पिछले साल सेंट्रल न्यूज एजेंसी कनॉट प्लेस से गोल मार्केट शिफ्ट हो गई थी। हां, मथुरा वाले शर्मा जी की बुक शॉप अब भी आबाद है।

राय और पांडे परम संतोषी हैं। इन्हें इस बात का कतई मलाल नहीं है कि ये अपनी खुद की दुकानें नहीं बना सके। इन्हें खुशी इस बात से मिलती है कि बिहार के समस्तीपुर से खाली हाथ दिल्ली आने के बाद भी इन्होंने यहां साख और सम्मान तो भरपूर पाया। दिल्ली में अपनी छत भी बनवा ली और बच्चों को पढ़ा-लिखाकर स्वावलंबी भी बना दिया। ‘क्या ये कम है।’ राय नहीं मानते कि अखबार पढ़ने वाले घट रहे हैं। वे बताते हैं, ‘हम जितने अखबार कोविड काल से पहले बेचते थे, उससे कम अब नहीं बेच रहे।’

दरअसल कनॉट प्लेस के बरामदों में बैठकर अखबार और मैगजीन बेचने वालों के पास राम मनोहर लोहिया, इंद्र कुमार गुजराल,एम.एफ. हुसैन, दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री चौधरी ब्रहम प्रकाश, खुशवंत सिंह,एच.के.एल.भगत जैसी हस्तियां आती रही हैं। ब्रहम प्रकाश जी तो कहते थे कि वे कनॉट प्लेस का चक्कर लगाते हुए यहां से अखबार और मैगजीन जरूर खरीद लेते खरीदते हैं। बिंदेश्वरी राय ने बीते चार दशकों के दौरान कनॉट प्लेस के चेहरे को बदलते हुए देखा है। सबसे बड़ा बदलाव क्या महसूस करते हैं ? ‘ मुझे लगता है कि कनॉट प्लेस की भाषा बदल गई है। हमने जब इधर बैठना शुरू किया था तब इधर ज्यादातर लोग अंग्रेजी में बतिया रहे होते थे। अब सब हिन्दी बोल रहे होते हैं,’ राय ने अपनी बात खत्म की और चाय़ का ऑर्डर दिया।
नवभारत टाइम्स, 4 जुलाई 2024
फोटो :साथी राय के साथ।

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